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श्री रुद्राष्टकम् | हिन्दी अर्थ सहित | Shri Rudrashtakam | By Jitendra Sharma |

Singer Jitendra Sharma
Editor Pawan Sharma

#maaparmeshwarikripa #rudrashtakam

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Transcript
00:00नमामी समीसान निर्वान रूपम् विभुम्व्यापकं ब्रह्म् वेदैस्वरूपम्
00:24निजम निर्गुनम् निर्विकल्पम् निरीहम् चिदाकास माकास वासंभजेहम्
00:40हे इसान मैं मुक्ति स्वरूप समर्थ सर्वव्यापक ब्रह्म् है वेद स्वरूप निज्वरूपमे स्थित निर्गुन् निर्विकल्पम् निरीह अनंत ज्ञानमय और आकास के समान सर्वत्रव्याप्त प्रभु को प्रणाम करता हूँ
01:01निराकार मोंकार मूलं तुरियं गिराग्यान गोतीत मीसं गिरिसं
01:17करालं महाकाल कालं कृपालं गुनागार संसार पारं नतोहं
01:32जो निराकार है ओमकार रूप आदिकारण है तुरिय है वानी बुद्धी और इंद्रियों के पत्थ से परे हैं
01:46कैलासनात है विक्राल और महाकाल के भिकाल कृपाल गुनों के आगार और संसार से तारने वाले हैं
01:57उन बगवान को मैं नमस्कार करता हूँ
02:00तुसारा द्रिसंकास गौरम गभीरम मनो भूत कोटी प्रभास्री सरीरम
02:16इस्पुरन मौली कलोली निचारु गंगा लसत भाले बालेंदू कंठे भू जंगा
02:31जो हिमाले के समान स्वेत वर्ण गंभीर और करोडो कामदेव के समान कांतिमान सरीर वाले हैं
02:43जिनके मस्तक पर मनोहर गंगाजी लहरार ही हैं
02:48भाल देश में बाल चंद्रमा सुसोवित है और गले में सर्पो की माला सोभा देती हैं
02:58चलत कुंडलं ब्रू सुनेत्रं विसालं प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं
03:12म्रिगाधी सचर्मां बरं मुन्डे मालं प्रियं संकरं सर्वनाथं भजामी
03:26जिनके कानों में कुंडल हिल रहे हैं
03:30जिनके नेत्र और भ्रिकुटी सुन्दर और विसाल हैं
03:35जिनका मुख प्रसन्न और कंठ नील हैं
03:39जो बड़े ही दयालू हैं
03:42जो बाग के चर्म का वस्त्र और मुन्डो की माला पहनते हैं
03:47उन्सर्वा धिस्वर प्रियतम सिवका मैं भजन करता हूँ
03:51प्रचंडम प्रक्रिष्टम प्रगल्भम परेशं अखंडम अजंभान कोटी प्रकासं
04:06त्रयह सूल निरमूल नम्सूल पाणिं भजेहं भवानी पतिम्भाव गम्यं
04:19जो प्रचंड सर्वस्रेष्ट प्रगल्भ परमेश्वर पूर्ण अजन्मा कोटी सूर्य के समान प्रकासमान
04:32त्रिभुवन के सूल ना सक और हाथ में त्रिशूल धारन करने वाले हैं
04:38उन भाव गम में भवानी पति का मैं भजन करता हूँ
04:42कलाती तकल्यान कल्पांत कारी सदाश जनानंद दाता पुरारी
04:55चिदानन्द संदोह मोहा पहारी प्रसीदे प्रसीदे प्रभो मन मथारी
05:08हे प्रभो आप कला रहित, कल्यान कारी और कल्प का अंत करने वाले हैं
05:17आप सर्वदा सत्पुरुसों को आनंद देने वाले हैं
05:22और सदा आनंद देते रहते हैं
05:26आपने त्रिपुरा सुर का नास किया था
05:30आप मोहनासक और ज्ञानानंद घन परमेश्वर है कामदेव के सत्रू है आप मुझे पर प्रसन्द हो प्रसन्द हो
05:41नयावद उमानात पादार विंदम भजन्ती है लोके परेवानराणाम
05:56नतावद सुखम सांति संता पनासम प्रसीदे प्रभोसर्व भूता धिवासम
06:11मनुष्य जब तक उमाकांत महादेव जी के चरणार विंदो का भजन करता है तब तक संपोन सुख पाता है
06:21मगर मनुष्य जब तक उमाकांत महादेव जी के चरणार विंदो का भजन नहीं करते
06:29उन्हें इहलोक या परलोक में कभी सुख तथा सांति की प्राप्ती नहीं होती
06:36और ने उनका संताप ही दूर होता है ये समस्त भूत्व के निवास स्थान भगवान सिव आप मुझ पर प्रसंद हो
06:46नजानामियोगम जपमनैवपूजाम नतोहम सदासरवदा संभुतुभ्यम
07:01जराजन्मदुखोग पातप्यमानम प्रभोपाहि आपन्नमामी ससंभो
07:14हे प्रभो हे संभो हे ईस मैं योग जप और पुजा कुछ भी नहीं जानता हे संभो मैं सदासरवदा आपको नमस्कार करता हूँ
07:30जराजन्म और दुख समुह से संतप्त होते हुए मुझ दुखी की दुख से आप रक्षा कीजिए
07:38रुद्राष्टक मिदम प्रोक्तम विप्रेण हरितो से ये पठंती नरा भक्त्या तेसाम संभुः प्रसीदती
07:53जो मनुष्य भगवान संकर की तुष्टि के लिए ब्राह्मन द्वारा कहे हुए इस रुद्राष्टक का भक्ति पूर्वक पाठ करते हैं उन पर संकर जी प्रसन्न होते हैं
08:08ओम नमह सिवाये

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