00:00एक मैंने कहानी पड़ी थी परदा नाम से, तो एक सहाब होते हैं, पुराने किसी जमीदारों के खानदान से होते हैं, एक मुस्लिम सज्जन, अब वो पुराना वैभफ कपका जा चुका, कुछ बचा नहीं है, लेकिन शान पूरी है अभी भी, कि हम तो अभी भी वही शाही �
00:30पुराने हैं, इंको परजा दे देता है, लेले, तो इन्होंने जो घर बनवा रखा होता है, घर ऐसा होता है, कि मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही, बड़े-बड़े परदे होते हैं, और वो परदे इनकी राजसी ठाट के सूचक होते हैं, तो वो जो पठान है, कई मह
01:00सारे परदे गिर पड़ते हैं तो अंदर का जो द्रिश्य देखता है तो वही चौक जाता है जैसे उसे लकवा मार गया हो
01:09अंदर ढ़ई हुई दिवारे हैं और घर की महिलाएं हैं बच्चे हैं वह सब एकदम खसता हाल हैं फटे कपड़ों में हैं
01:16बहुत पुराने बरतन एकदम भीतर दयनीता की स्थिति है देकिन उन परदों के माध्यम से ये जो मिया साहब थे इन्होंने एक भरम कायम रखा था स्वयम को भी और समाज को भी कि अभी भीतर वैभव कायम है अंकार ऐसा ही होता है वो जगत के सामने कहली जिये परदा कहली �
01:46दुख ही दर्द ही और उसकी आखरी पंक्ती है आखरी पंक्ती बहुत अच्छे से याद है कि अब उसके जाने के बाद भी फिर किसी ने परदा दुवारा लगाया नहीं परदा जिस भावना का अवलंब था वह अब समाप्त हो चुकी थी