Muharram 2025: हर साल जब मुहर्रम का महीना आता है, तो दुनिया भर के शिया मुसलमान सिर्फ इबादत नहीं करते, बल्कि एक दर्द को जीते हैं... एक इतिहास को याद करते हैं... और एक ऐसे इंसान को सलाम करते हैं, जिसने ज़ुल्म के सामने झुकने से इनकार कर दिया — हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) इसी ग़म, इबादत और सबक का नाम है – मजलिस।
00:00हर साल जब भी महरम का महीना आता है तो दुनिया भर के शिया मुसल्मान सिर्फ अबादत नहीं करते बल्कि एक दर्द को जीते हैं
00:08एक इतिहास को याद करते हैं और एक ऐसे इनसान को सराम करते हैं जिसने जल्म के सामने जुकने से इंकार कर दिया
00:14हजरत इमाम हुसेन इसी घम इबादत और सबक का नाम है मजलिस
00:19मजलिस का मतलब होता है एक बैठक एक सभा एक महफिल जहां बैठकर इमाम हुसेन और उनके साथियों की कुर्बानी को याद किया जाता है
00:27ये कोई शो या ड्रामा नहीं बलकि एक धार्मिक भावुक और आध्यात्मिक महफिल होती है जिसमें लोग रोते हैं मातम करते हैं दूआ मांगते हैं और सबक लेते हैं
00:36सन 680 इसवी दस महरम का दिन जगा इराग का मैदान करबला प्यासा रेगिस्तान एक तरफ था हजरत इमाम हुसेन नभी मुहमद स.लल्लाव के नवासे और दूसरी तरफ था यजीद जो जुल्म और ताकत का प्रतीक था
00:51हुसेन ने जुल्म के आगे जुकने से इंकार कर दिया भूके प्यासे रहकर भी अपने उसूलों पर कायम रहें यहां तक कि 72 सातियों समित शहीद हो गए
00:59मजलिस सिर्फ रोने या मातम करने के लिए नहीं होती इसका असली मकसद होता है हुसेन की कुर्मानी को याद करना
01:06जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत पैदा करना
01:09सब्र और इंसाफ का बैगाम भेलाना और उसूलों पर डटे रहना चाहें कितनी भी मुश्किले क्यों न हो
01:15चलिया बाप को बताते हैं मजलिस कब होती है
01:17मजलिस एक महरम से शुरू होती है
01:19सबसे एहम दिन होता है दस महरम यानि आशूरा का दिन
01:22इसके बाद भी चहलूम यानि 40 में दिन तक मजलिसे जारी रहती है
01:26कई शिया परिवारों में हर हफ्ते गुरुवार शुकुरुवार या किसी शहादत की तारिख को भी साल भर मजलिसे होती है
01:33एक सवाल ये भी आता है क्या महिलाओं की मजलिस भी होती है
01:36जी हाँ शिया समाज में महिलाओं की मजलिस भी बहुत एहम होती है
01:40इसमें महिलाओं बैटकर इमाम हुसेन और उनके परिवार की तकलीफों को याद करती है
01:45जैनब जो इमाम हुसेन की बहन जिनकी तकरीरें करबला के बाद इतिहास में अमर हो गई
01:49उनकी हिम्मत को सलाम किया जाता है
01:51महिलाओं दुआई करती हैं, रोती हैं, سीना पीटती हैं
01:54ये सब घम और महबत के जहार का तरीका है
01:57इन मजलिसों में परदा और इस्दत का पूरा खयाल रखा जाता है
02:00मजलिसों में क्या क्या होता है ये भी जान लीजे
02:03कुरान की तलावत होती है शुरुआत में
02:05मनकबत सलाम नो है
02:06जो इमाम हुसैन और शहीदों की तारीफ
02:09और घम में पढ़े जाते हैं
02:10मसाइब का बयान यानी वो दुख भरी बाते हैं
02:13जैसे हुसैन का प्यासा होना
02:14अले अकबर की शहादत जैनब का सब्र
02:16इसके लावा होता है मातम
02:18लोग सीना पीटते हैं रोते हैं
02:20ये सब्र एक श्रद्धा और इबादत का तरीका है
02:22मजलिस से सीखने को मिलता है
02:24जब हक और बातिल आमने सामने हो
02:25तो हुसैन की तरहां सिर उंचा रखो
02:27दुनिया चाहें साथ ना दे पर
02:29अल्ला की रह न छोड़ो
02:30सब्र करो पर जुल्म का साथ मत दो
02:32और याद रखो हुसैन आज भी जिन्दा है
02:34हर उस इंसान में जो इंसाफ और सचाई पर खड़ा है
02:37तो मजलिस एक रिवाज नहीं है
02:38कि जिन्दा पैगाम है
02:39हर आंसू, हर सलाम, हर मातम
02:41हुसैन की शहादत को जिन्दा रखता है
02:44इस महर्रम अगर आपको मौका मिले
02:46तो किसी मजलिस में जरूर जाए
02:47समझिये महसूस कीजिये
02:48और सोचिये कि अगर आज के यजीदों के सामने
02:50खामोश हैं तो क्या हुसैन को सच में जाना
02:53पिलार इस वीडियो में इतना ही
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