कर्ण: अद्वितीय प्रतिभा, दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति।
कर्ण, महाभारत के महान योद्धा, अपनी वीरता और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म कुंती और सूर्यदेव के पुत्र के रूप में हुआ, लेकिन उन्हें क्षत्रिय राजकुमार के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। जन्म के तुरंत बाद उन्हें गंगा में प्रवाहित कर दिया गया, जहां सारथी और उसकी पत्नी राधा ने उन्हें पाया। राधा के नाम पर उन्हें राधेय भी कहा जाता था।
कर्ण ने धनुर्विद्या में गहरी रुचि दिखाई और गुरु द्रोणाचार्य के पास गए, लेकिन द्रोण ने उन्हें शिष्य मानने से इनकार कर दिया क्योंकि कर्ण एक सारथी पुत्र थे। कर्ण ने हार नहीं मानी और भगवान परशुराम की ओर रुख किया, जो ब्राह्मणों को ही शिक्षा देने की प्रतिज्ञा किए हुए थे। कर्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और भगवान परशुराम के पास पहुंचे। कठिन परीक्षाओं के बाद, भगवान परशुराम ने उन्हें शिष्य स्वीकार किया और कर्ण अद्वितीय धनुर्धर बन गए।
एक दिन, भगवान परशुराम जब आराम कर रहे थे, कर्ण ने अपनी सहनशक्ति का अद्वितीय प्रदर्शन किया। भगवान परशुराम ने कर्ण की जांघ पर कीणे का काटा देखकर पहचान लिया कि कर्ण क्षत्रिय हैं और क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि जब उन्हें भगवान परशुराम की विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तब वे इसे भूल जाएंगे। यही श्राप महाभारत युद्ध में कर्ण की हार का कारण बना, जब वे अर्जुन के साथ युद्ध में अपना ज्ञान याद नहीं रख सके।
कर्ण की यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ और छल से कभी स्थायी सफलता नहीं मिलती। गुरु के प्रति सच्चाई और निष्ठा ही सबसे महत्वपूर्ण हैं। गुरुपूर्णिमा के इस पावन अवसर पर, कर्ण की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने गुरुओं का सम्मान करें, सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलें, और अपने जीवन में सच्चाई और निष्ठा के सिद्धांतों को अपनाएं। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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कर्ण, महाभारत के महान योद्धा, अपनी वीरता और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म कुंती और सूर्यदेव के पुत्र के रूप में हुआ, लेकिन उन्हें क्षत्रिय राजकुमार के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। जन्म के तुरंत बाद उन्हें गंगा में प्रवाहित कर दिया गया, जहां सारथी और उसकी पत्नी राधा ने उन्हें पाया। राधा के नाम पर उन्हें राधेय भी कहा जाता था।
कर्ण ने धनुर्विद्या में गहरी रुचि दिखाई और गुरु द्रोणाचार्य के पास गए, लेकिन द्रोण ने उन्हें शिष्य मानने से इनकार कर दिया क्योंकि कर्ण एक सारथी पुत्र थे। कर्ण ने हार नहीं मानी और भगवान परशुराम की ओर रुख किया, जो ब्राह्मणों को ही शिक्षा देने की प्रतिज्ञा किए हुए थे। कर्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और भगवान परशुराम के पास पहुंचे। कठिन परीक्षाओं के बाद, भगवान परशुराम ने उन्हें शिष्य स्वीकार किया और कर्ण अद्वितीय धनुर्धर बन गए।
एक दिन, भगवान परशुराम जब आराम कर रहे थे, कर्ण ने अपनी सहनशक्ति का अद्वितीय प्रदर्शन किया। भगवान परशुराम ने कर्ण की जांघ पर कीणे का काटा देखकर पहचान लिया कि कर्ण क्षत्रिय हैं और क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया कि जब उन्हें भगवान परशुराम की विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तब वे इसे भूल जाएंगे। यही श्राप महाभारत युद्ध में कर्ण की हार का कारण बना, जब वे अर्जुन के साथ युद्ध में अपना ज्ञान याद नहीं रख सके।
कर्ण की यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ और छल से कभी स्थायी सफलता नहीं मिलती। गुरु के प्रति सच्चाई और निष्ठा ही सबसे महत्वपूर्ण हैं। गुरुपूर्णिमा के इस पावन अवसर पर, कर्ण की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने गुरुओं का सम्मान करें, सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलें, और अपने जीवन में सच्चाई और निष्ठा के सिद्धांतों को अपनाएं। गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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00:00कर्ण, महाभारत के महान योध्धा, अपनी वीरता, शक्ति और दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे।
00:05उनका जन्म कुन्ति और सूर्यदेव के पुत्र के रूप में हुआ था।
00:08लेकिन उन्हें एक ख़शत्रिय राजकुमार के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था।
00:12उन्हें जन्मो प्रांथ गंगा में प्रवाहित कर दिया गया।
00:15बाद में सारथी अधिरत और उसकी पत्नी राधा को वो गंगा किनारे मिले और उनकी माँ का नाम राधा था।
00:20इसी कारण उन्हें राधेय कहकर भी बुलाते थे।
00:23उनको शुरू से धनुर विध्या सीखने में बहुत रुची थी और इसे सीखने के लिए वे गुरु द्रोण के पास गये पर द्रोण केवल पशत्रियों के गुरु थे और करण एक सारथी पुत्र थे।
00:32इसी कारण उन्होंने करण को शिष्च मानने से इंकार कर दिया पर करण ने हार नहीं मानी।
00:36वहां से करण ने अपना रुख भगवान परशुराम की और किया।
00:39परशुराम भगवान विश्णू के अवतार वधनुर विध्या में अद्वितिये थे।
00:43उन्होंने केवल ब्राह्मनों को ही शिक्षा देने की प्रतिग्या ली थी।
00:46करण अपनी शिक्षा की तलाश में ब्राह्मन का वेश धारण कर परशुराम के पास पहुंचे।
00:51परन्तु भगवान परशुराम ने उन्हें शिक्षा देने से इंकार कर दिया।
00:54काफी कठिन परिक्षाओं के बाद भगवान परशुराम ने करण को अपना शिष्य बनाया।
00:58गुरु की अद्भुत शिक्षा से करण कुशल धनुरधर बन गए।
01:01शिक्षा प्राप्त करते हुए एक दिन परशुराम अपने शीष को करण की जांगों पर रख कर एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे।
01:08तभी अचानक एक किहने करण के पैर को काट लिया। पर करण टस से मस नहीं हुआ।
01:12वह नहीं चाहता था कि उसके कारण उसके गुरु को कोई तकलीफ हो। इसलिए वो दर्द सहता रहा। पर थोड़ी देर बाद जब भगवान परशुराम की आँ खुली तो उन्होंने करण के लहुलुहान पैर की ओर देखा।
01:22करण की इस कमाल की सहन शक्ती देखकर वे समझ गये कि करण कोई ब्रामभण नहीं अपितु एक ख्षत्रिय है। चुंकि करण ने शिक्षा प्राप्त करने के लिए जूट का सहारा लिया और खुद को ब्रामभण बताया था। इस बाद से क्रोधित हो भगवान परशुरा
01:52करण की कहानी हम सब के लिए एक प्रेरणा स्रोथ बन गई। जूट की नीव पर कभी धर्म का महल नहीं बनता।
01:58गुरुपूर्णिमा के इस पावन अवसर पर करण की कहानी हमारे लिए एक महत्वपूर्ण सीख बन जाती है। करण की अद्वितिये वीर्ता, सेहन शक्ति और दानशीलता हमारे लिए प्रेरणा का स्रोध है।
02:08गुरुपूर्णिमा की हारदिक शुब कामनाएं। ऐसी ही और जानकारी पाने के लिए चैनल सबस्क्राइब कर हमें सपोर्ट जरूर करें।