Uttarkashi Dharali पर ISRO का बड़ा खुलासा, Satellite तस्वीरों ने बताई तबाही की असली वजह। इस वीडियो में देखिए कैसे इसरो की तस्वीरों ने साबित किया कि ये तबाही सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि इंसानी भूल का नतीजा है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित धराली में आई आपदा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। खीर गंगा में आए उफान ने कई जिंदगियों और बसावटों को तबाह कर दिया, लेकिन इस तबाही के पीछे की कहानी सिर्फ प्रकृति के गुस्से की नहीं है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) द्वारा जारी की गई सैटेलाइट तस्वीरों ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। ये तस्वीरें बताती हैं कि इंसान ने खुद अपनी बसावट प्रकृति के रास्ते में कर ली थी। इसरो के कार्टोसैट-3 (Cartosat-3) सैटेलाइट द्वारा ली गई हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरों से पता चलता है कि खीर गंगा का मलबा उसी कैचमेंट एरिया में फैला है, जो उसका पुराना और मूल रास्ता था। दशकों पहले आए मलबे के ऊपर ही इंसानी बस्तियां बसा दी गईं और अब नदी ने अपना पुराना क्षेत्र वापस ले लिया है। यानी, खीर गंगा अपने मूल स्वरूप में लौट आई है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि प्रकृति से छेड़छाड़ कितनी खतरनाक हो सकती है। धराली से कुछ ही दूर हर्षिल घाटी में भी यही हुआ, लेकिन वहां आबादी न होने से कोई नुकसान नहीं हुआ।
ISRO's latest satellite images from the Cartosat-3 satellite have revealed a startling truth about the recent flash floods in Dharali, Uttarkashi. The report suggests that the disaster was not entirely natural but was exacerbated by human encroachment. Settlements were built on the old floodplain of the Kheer Ganga river, and the river has now reclaimed its original path. This video analyzes the satellite data and discusses the implications for future development in ecologically sensitive Himalayan regions.
00:00धराली की वेदिना में प्रकृति को ना समझने की मानव की भी बड़ी भूल नजर आ रही है।
00:30गया एक सेटलाइट इमिज से पता चलता है।
01:00खेत्रों में इस तरह की घटनाएं होना समान्या है।
01:02खीर गंगा में भी यही हुआ।
01:04लेकिन और समान्य तो यह है कि हम ही प्रकृति की राह में जाकर खड़े हो गए।
01:09इसरों की ओर से अब तक जारी किये गए सेटलाइट इमिज बताते हैं कि जल प्रलय में जो मलबा आया, वह खीर गंगा के मूल कैच्मेंट में ही जाकर पसरा और ठहर गया।
01:19खीर गंगा का कैच्मेंट निचले छेतर में 50-100 मीटर तक फैला है। श्रिकंट परवत के ग्लेशियर से यह छेतर तिवरे ढाल के साथ खीर गंगा के माध्यम से सीधे जुडा हुआ है।
01:49कुछ ऐसी ही कहानी धराली से एक किलोमेटर आगया हर्शल घाटी की भी है, हलाकि वहाँ आबादी न होने के कारण कोई नुकसान तो नहीं हुआ है।
02:19वह है 0.25 मीटर या 50 सेंटिमीटर जो इसे दुनिया के उच्चितम रेजोल्यूशन वाले इमेजिंग उपग्रहों में से एक बनाता है।
02:26इसके साथ ही ये एक मल्टी स्पेक्टरल रिजोल्यूशन है यानि एक मीटर या कुछ सोस के अनुसार तो 1.13 मीटर जिसमें
02:35चार स्पेक्टरल बैंड होते हैं। अब इसके बाद आपको एक और जरूरी बात बताते चलते हैं।
02:40जिसमें कुछ रिपोर्ट्स कहते हैं कि जल ग्राही छेत्र यानि वाटर रिसीविंग एर्याज में अब कोई निर्मान नहीं किया जाना चाहिए।
02:48यह हमारे लिए एक नया सबक भी है कि प्रकृतिक कभी भी अपना छेत्र हमसे वापस ले सकती है।
02:54सरकार को धराली में मलबे से भरे पूरे छेत्र की मैपिंग कराकर वहाँ निर्मान प्रतिबंधित करने होंगे।
03:00ताकि हमें फिर धराली जैसा दंच न झेलना पड़े।
03:03इस लिए भी महत्यपुन हो जाते हैं क्योंकि यह जो इंस्टॉलेशन ही ऐसे सिचुएशन के लिए हुआ था।
03:13अब एक बर यह भी जान लेते हैं कि सेटलाइट कौन-कौन से इमिज प्रदान करने के सक्षम है और इसका उपियोग कहां-कहां होता है।
03:19अब सबसे पहले आपको बता दे कि इसका इस्तेमाल नगरिय योजना में होता है यानि बड़े पैमाने पर मैपिंग और संसाधन प्रबंधन के लिए होता है।
03:27इसके अलावा ग्रामीन संसाधन विकास में बुनियादी धांचे का विकास और भूमी उपियोग योजना के लिए ये यूज किया जाता है।
03:47यानि सामरिक निगरानी और सीमा सुरक्षा के लिए भी सैटेलाइट कार्टो सेट 3 का इस्तेमाल किया जाता है।
03:53खेर ये सब समझने के बाद भी प्रश्न तो अभी वही है कि प्रकृति के साथ छेट छाड हमारे लिए कितना नुकसान दे हो सकता है।
04:00इनसान कब समझेगा पहले किदारनात अब उत्तरकाशी। प्रकृति तो अपना रास्ता धूनी लेती है।
04:06इसमें हमारा कितना नुकसान है और हमारा कितना दोश है ये आप हमें कमेंट करके बताईए।
04:12ये जो घटनाएं हो रही है क्या इसमें सिर्फ प्रकृति का दोश है या मानों की भी इसमें भूमी का है।