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  • 2 days ago
आंध्र प्रदेश में पलनाडु जिले के नरसारावपेट में हाथ से चलने वाले पारंपरिक 'मग्गा' करघे की लयबद्ध आवाज इन दिनों लगातार गूंज रही है. इस करघे के जरिये कलात्मकता और शिल्प की सदियों पुरानी विरासत का संरक्षण किया जा रहा है. 'मग्गा' महज एक उपकरण ही नहीं, ये परंपरा और कौशल का प्रतीक है. ये शिल्प पूरी तरह हाथों के भरोसे है. लिहाजा इसके लिए धीरज और सटीकता बेहद जरूरी है. इस करघे से सांस्कृतिक पहचान के कपड़े तैयार होते हैं, जिनकी बाजार में अच्छी कीमत है. बेहतर मजदूरी और बढ़ती मांग की वजह से पलनाडु की ओर देश भर के कारीगर आकर्षित हो रहे हैं. त्योहारों का मौसम नजदीक आ रहा है. इसके साथ ही हाथ से बुने कपड़ों की मांग भी बढ़ रही है. इससे बुनकर और करघा मालिक- दोनों ही सुकून महसूस कर रहे हैं. उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि इस शानदार शिल्प के मुरीदों की संख्या बढ़ रही है. 

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00:00आंद्र प्रदेश में पलनाड जिले के नरसाराव पेट में हाथ से चलने वाले पारंपरिक मगगा करगे की लैबद आवाज इन दिनों लगातार गूंज रही है।
00:12इस करगे के जर्ये कलात्मक्ता और शिल्प की सदियों पुरानी विरासत का संडख्षण किया जा रहा है।
00:20मगगा महज एक उपकरण ही नहीं ये परंपरा और कोशल का प्रतीक है।
00:50अकर शिल्प साल अकरशित हो रहे है।
00:51में बधर से आकर गोण में पास साल से कर रहा है।
00:58शारी का फंखिन महूंट धा धा...
01:00और मुन्पर के लिए हमारे पास बदू कर दो किका 5 साओं मारे पास lange करकर है।
01:05कि दर कार लाया है।
01:07ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
01:36ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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