आंध्र प्रदेश में पलनाडु जिले के नरसारावपेट में हाथ से चलने वाले पारंपरिक 'मग्गा' करघे की लयबद्ध आवाज इन दिनों लगातार गूंज रही है. इस करघे के जरिये कलात्मकता और शिल्प की सदियों पुरानी विरासत का संरक्षण किया जा रहा है. 'मग्गा' महज एक उपकरण ही नहीं, ये परंपरा और कौशल का प्रतीक है. ये शिल्प पूरी तरह हाथों के भरोसे है. लिहाजा इसके लिए धीरज और सटीकता बेहद जरूरी है. इस करघे से सांस्कृतिक पहचान के कपड़े तैयार होते हैं, जिनकी बाजार में अच्छी कीमत है. बेहतर मजदूरी और बढ़ती मांग की वजह से पलनाडु की ओर देश भर के कारीगर आकर्षित हो रहे हैं. त्योहारों का मौसम नजदीक आ रहा है. इसके साथ ही हाथ से बुने कपड़ों की मांग भी बढ़ रही है. इससे बुनकर और करघा मालिक- दोनों ही सुकून महसूस कर रहे हैं. उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि इस शानदार शिल्प के मुरीदों की संख्या बढ़ रही है.