00:00च्छतरपूर जले से 55 km दूर सडवा के जंगलों में एक रहस समय गुफा मौजूद है
00:16ये गुफा हजारों साल पुरानी है और इस गुफा का रहस महाभारत काल से जुड़ा हुआ है
00:24गुफा के अंदर भोले नात का विशाल शिवलिंग और पीता मरा का मंदिर मौजूद है
00:31गुफा का रास्ता पाताल तक जाता है ये गुफा अपने अंदर कई रहस समेटे हुए है
00:38प्राचीन काल में इस गुफा के अंदर साधू सन घोर तपस्या कर वर्दान प्राप्त करते थे
00:45लेकिन आज भी बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं
00:49कभी इस गुफा में वनवास के दोरान पांडवों ने भी कुछ दिन बिताए और यहां तपस्या की
00:57जिसके पिर्मान आज भी आसपास मिलते हैं
01:01भोले नात अपने परिवार के साथ यहां वराजमान हैं
01:06इस गुफा में सावन पर भक्तों की भीर उमरती है और मन चाहा वर्दान भोले नात देते हैं
01:14अंदर सीलियों से नीचे उतरने में डर लगता है
01:17जो लोग हिम्मत जुटा पाते हैं वही गुफा में जा पाते हैं
01:23इस गुफा के इतिहास को लेकर पुजारी राजेश्वर नन सचदेव का क्या कहना है आईए जानते हैं
01:30सड़वा ग्राम है बड़ा मलहरा तहसील है जिलाच दरफूर
01:35यहां गुफा की आप कपसे हैं आप यहां मुझे रहते हो गए करिब 24 साल से कैसे के तस्वीर इसकी बल्दी पहले तो बहुत उबल खावर था नीचे उतरने का कोई मार्ग भी नहीं था
01:48सुरू सुरू में मोटे बांस की सीढ़ी बना कर उससे चड़ता उतरता रहा है बाद में फिर यह टंप्रेजी सीढ़िया बने अब देवस्तित धंशे बन रही है और भगवती मां पितामरा भी अंदर बिराजी हो बहतर रहेगा क्या है कि उससे बहुत से लोगों का हित हो
02:18नहींने पार्थियों शुलिंग का निर्मान होना है प्रति दिन पूरे 30 दिन इसलिए आपसे मुख एक मांग है कि वह अगर रस्ता हमारा कंपलीट करवा दे तो बहतर होगा आपने देखा है रस्ता कितना खराब है आने जाने में दिक्कत होती है रस्ता बनवा दे बहुत
02:48अवास काट रहे थे तब इसी गुफा में रुके थे यह गुफा बाहर से छोटी दिखाई देती है लेकिन अंदर से बहुत विशाल है जिसमें हजारों लोग समा सकते हैं गुफा के अंदर माता पीतामबरा और शिवलिंग मौजूद है इसकी अलावा गुफा के अंदर �
03:18अलाल सौनी का गुफा को लेकर क्या कहना है जानते हैं
03:48यह दर्ष्मी इस्तल है बहुत ही अच्छा इस्तान है लोग बाग जो कहां पहुंचते हैं उनको उनकी बनुका अबना फूरी होती है
03:56अभी बर्थवान में तो यह हाल है वहाँ पर कुछ आने जाने लगे हैं लोग लेकिन बरसों से यहाँ पर इतना प्रितितने इस्तान पर आवा गुफा तक पहुंचना मंदर के वहां तक जाने में
04:10तवाम तरही की दिख्केत हो ती पहाड़ों के बीच में जंगल में उवर खाब और मार गए लेकिन हमारा यह मुंदिर कंगा चेट एक और अरजुन कुन दूसरी और भीम कुन तीसरी और जटा संकरदाम और फिर इसके बाद यह अपना यह है धार्मिक है साल्स्कृतिक है
04:40जहां लोग बहुत बहुत दी प्राचिनिस्तल की चीजे बने उए तवच्छी तरका जाता है दार्मिक चेत का मात्त है तिसी बनियों ने तवसा की है यह सांत रभनी किस्तान होने कारण सादु संतों ने इस चेत कुछना इसलिए यहां पर चाहे भीम कॉंडों, चाहे अर
05:10की दर्सन करते हैं अब तो सावन का महीना चल ला और वहां चणवाब है गाओं के लोग आसपास के लोग वहां शिवजी की आरात्ता करेंगे