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  • 7/5/2025
Muharram 2025: 10 मुहर्रम यानी Youm-e-Ashura इस्लाम में बहुत अहम दिन है। कुछ लोग पूछते हैं – क्या इस दिन कोई खास नमाज़ होती है? क्या इसे शिया मुसलमान पढ़ते हैं? क्या हदीसों में इसका ज़िक्र है? और अगर होती है, तो उसका तरीका और नीयत क्या होती है? चलिए जानते हैं इस सवाल का जवाब — आसान हिंदी में और इस्लामी स्कॉलर्स की रौशनी में।


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Transcript
00:00दस महरम यानी यौम आशूरा इसलाम में बहुत एहम दिन है
00:06लेकिन इसको लेकर कुछ लोगों के मन में अमेशा ये सवाल रहता है कि क्या इस दिन कोई खास नमाज होती है
00:11क्या इसे शिया मुसल्मान पढ़ते हैं
00:13क्या हदीसों में इसका जिक्र है और अगर होती है तो उसका तरीका और नियत क्या होती है
00:18चलिए जानते हैं इन सबी सवालों के जवाब आसान भाशा में और इसलामी स्कॉलर्स की रोशनी में
00:24सबसे पहले समझिये कि कुरान और सही हदीस में दस महरम की कोई फर्ज, सुन्नत या वाजिब नमाज का सीधा जिक्र नहीं है
00:30हदीस में ये जरूर है कि नभी मुहमद ने दस महरम को रोजा रखने के खिदायत दी
00:36और कहा मैं मुईत करता हूं कि ये रोजा पिचले साल के गुनाहों का कफारआ बन जाए
00:40लेकिन नमाज के बारे में कोई खास हुक्म नहीं दिया गया है
00:43हालागी कुछ स्कॉलर्स नफली नमाज का दिक्र करते हैं
00:46हलांकि कुछ इसलामी किताबों में ऐसी नफल नमास का जिक्र मिलता है जो सिर्फ सवाब की नियत से पढ़ी जाती है
00:52जैसे किताब अलगुनिया और मकामात मजहर में मिलता है
00:56कि जो शक्स दस महरम को चार रकत नमास पड़े हर रकत में सुरह फातिया के बाद 11 बार सुरह इखलास
01:02अल्ला उसके पिछले 50 साल के गुनाब माफ कर देता है
01:04मगर दिहान रहे ये हदीस जाइफ यानि कमजोर माने गई और इमाम नवमी इबन तैमिया जैसे बड़े मुहदिस इसे शरीयत में मानने नहीं मानते
01:13इसलिए सुन्ने उलेमा कहते हैं इससे पढ़ सकते हैं अगर इसे शरीय का हिस्सा या जरूरी अमल ना समझें ये अबादत के तोर पर है बिदत नहीं होनी चाहिए
01:21अब बात करते हैं शिया समुदाय की
01:23शिया मुसल्मान आशूरा को एक अज़ादारी का दिन मानते हैं ना की कोई जशनी या आम अबादत का
01:29वो इस दिन ताजिया मातम नुहा और मरसिया के जरिये इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं
01:36हाँ शिया घरो और इमाम बाडो में इस दिन एक खास दुआ पड़ी जाती है ये कोई नमाज नहीं बलकि एक सलाम और दुआ है जिसमें इमाम हुसैन और उनके साथियों को सलाम पेश किया जाता है और यजीद और उसके साथियों पर लालत की जाती है इस दिन रोजा रख
02:06तो बिलकुल पढ़ सकते हैं, इसका तरीका ये हो सकता है
02:08मैं दो रकात नफल नमास पढ़ता हूं सिर्फ अल्ला की रजा और आशूरा की बरकत के लिए
02:13हर रकात में सुरह फातिया के बाद तीन या ग्यारा बार सुरह इखलास पढ़ सकते हैं
02:17नमास के बार दूआ करें, दुरूद शरीफ पढ़ें और अमाम हुसेन की शहादत को याद करें
02:20अपने कुनाहों की माफी मांगे और तौबा करें
02:22इसे शरीयत से साबित फर्ज या सुन्नत की तरह ना समझें बलकि एक एखलाख से भरी अबादत समझें बस
02:28सुन्य स्कॉलर्स कहते हैं कोई शरीयत में साबित नमाज नहीं है लेकिन नफल अबादत कुरान की तिलावत दूआ और रोजा रखना ये बहुत अफजल है
02:35शिया स्कॉलर्स कहते हैं इस दिन गम अबादत और याद है जियारत पढ़ें सबर करें और हुसैनियत को दिल से महसूस करें मतलब नियत साब हो तो अबादत में सवाब ही सवाब है किसी भी अमल को शरीयत का हिसा ना बनाएं बस इخलास के साथ अंजाम दें
02:48तो आशूरा की नमाज को लेकर हकिकत यही है कोई फर्ज या वाजिब नमाज नहीं लेकिन अगर आप नफल नमाज पढ़ना चाहें तो जरूर पढ़ सकते हैं
02:55फिलाल इस वीडियो में इतना ही वीडियो पसंद आया होते से लाइक करें शेयर करें और चैनल को सब्सक्राइब करना बिलकुल ना भूले

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