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  • 2 days ago
Transcript
00:00Soch ye, if you have 72 days without a drink or a drink of water and water, then you have what is going to happen.
00:06It is difficult to do, but this is the fact that 45 people will become real.
00:11What happened? How many people are living in this situation?
00:12How many people are living in this situation?
00:14And how many people are living in this situation?
00:16How can we be living in the past?
00:19Today we are going to come to a story.
00:21When the story is a story, it is a story of the story.
00:23The story of Flight 571 is the story of Flight 571.
00:26This is the story of the U.S.
00:56gantavya chilli ki rajani senteya go thaa is wimahan mein raggi ke liaatiyeo ke sath unkei paribar,
01:02rishhtedar aur dost bhi savar thae kul mila kar 45 yatri aur 9 crew sadesse the.
01:08Yhe flight aapne gantavya par pehunchenne ke liye 3 ghenta ka safar taray karne waala thi
01:12lekin ushe indiz ki parwet malayon ko par karna tha.
01:15Durhaha givash moosam ne achanak hi bigaarna شuru کر diya
01:18اور flight ko arjantina ke mendoza shaher mein aapath landing karne padi.
01:22
01:52दृश्यता घट गई। पाइलट अब केवल विमान के इंस्ट्रूमेंट्स पर निर्भर था। एक घंटे बाद पाइलट ने अनुमान लगाया कि उसने एंडीज की पहाड़ियों को पार कर लिया है। और उसने सैंटियागो एयरपोर्ट से लैंडिंग की अनुमती मांगी
02:22उसे एहसास हुआ कि पहाड़ियां अभी भी उसके रास्ते में हैं और सामने एक विशाल चटान है। पाइलट ने तुरंत विमान को उंचाई पर ले जाने की कोशिश की लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। विमान का पिछला हिस्सा चटान से टकरा गया और तूटकर अल�
02:52यात्री गंभीर रूप से घायल हुए जिन में से कई को अपनी स्थिती और स्थान का भी पता नहीं था। विमान का मलबा 3570 मीटर उंचाई पर बरफीले पहाड़ पर बिखर गया था। इस खतरनाक स्थिती में एक घायल यात्री, नांद पराडो, कोमा में चला गया और स
03:22लेकिन भारी बर्फ और कोहरे के कारण उन्हें कहीं भी विमान का मलबा नहीं मिला। रात होते ही rescue operations थगित कर दिया गया। बचे हुए यात्रीों ने सोचा कि वे रात को किसी तरह काट लेंगे और उम्मीद की कि सुबह तक उन्हें बचा लिया जाएगा। इस अंधेरे �
03:52कर ठंड का सामना करना पड़ा। इस कड़ी ठंड में भी उनकी एक उम्मीद थी कि सुबह तक कोई उन्हें ढूंड लेगा। हालांकि पांच यात्री इस भयानक रात को सहन नहीं कर पाए जिससे जीवित बचे लोगों की संख्या 28 हो गई। 14 अक्टूबर को search on operation दोबारा
04:22करते हैं लेकिन लिपस्टिक की कमी के कारण उन्होंने सूट केसों से बर्फ पर एक बड़ा क्रॉस बना दिया। बावजूद इसके हवाई जहाजों ने इन्हें नजर अंदाज कर दिया और दिन बिता। 15 अक्टूबर को भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। बच
04:52लेकिन भोजन की कमी गंभीर समस्या थी। 16 अक्टूबर को नांद पराडो कोमा से जाग गया और उसने पाया कि उसकी मां की मृत्यू हो चुकी है और उसकी 19 वर्षिये बहन गंभीर रूप से घायल है। 8 दिन बीथ चुके थे और रेस्क्यू प्लेन आकर सिर्फ उपर से
05:22दो महीनों के लिए स्थगित कर दिया गया। अधिकारियों को लगा कि अब तक सभी यात्री मारे जा चुके होंगे और मृत शरीरों को बाद में खोजा जाएगा। इस बीच सर्वाइवर्स को विमान के मलबे में एक रेडियो मिला। रेडियो पर समाचार सुनकर उन्हे
05:52मौत को आमंतरित करना है। अब उनके पास दो विकल्ब थे। या तो हालात को अपनी मौत की और ले जाने दिया जाए या इनका डटकर सामना किया जाए। इन चुनौतियों से निपटने के लिए उन्होंने प्लेन की सीटों की रुई को अपने कपड़ों में भर कर ठंड
06:22नहीं किया गया। और जिसे सोच कर ही रूह काप जाए। उन्होंने अपने परिवार के सदस्य, रिष्टेदारों और दोस्तों की मृत बोडीज को खाने का निर्णे लिया। ये फैसला उनके लिए अत्यंत कठिन था। लेकिन जीवित रहने की इच्छा ने उन्हें ऐसा
06:52की कमी हो गई और आठ और लोगों की मौत हो गई। अब केवल 19 लोग जीवित थे लेकिन वे भी बर्फ के नीचे दबे हुए थे। बाहर निकलने में उन्हें तीन दिन लग गए। जैसे ही उन्होंने बर्फ के नीचे से बाहर निकाला, उन्हें एहसास हुआ कि यहां रह
07:22कपड़े लेकर चलने लगे ताकि ठंड से बचा जा सके। 15 नवंबर को 33 दिनों के बाद ये तीन लोग अपनी मदद की खोज में निकल पड़े, शाम होने लगी और उन्होंने अपने अभियान की शुरुआत की, यह सोचते हुए कि अब कोई भी मुश्किल उनकी हिम्मत क
07:52की कोशिश की, बैटरी का वजन 25 किलो ग्राम था, जिसे ले जाना मुश्किल था, इसलिए उन्होंने सोचा कि कम्यूनिकेशन डिवाइस को निकाल कर बैटरी के पास लाना चाहिए, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद डिवाइस चालू नहीं हुआ, 11 दिसंबर को क्रै�
08:22लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वहाँ इंसानी बस्ती मिलेगी या नहीं, उन्हें बस यह उम्मीद थी कि अगर वे इस पहाड़ी को पार कर लेंगे, तो उन्हें मदद मिल जाएगी, उन्होंने तीन दिनों के लिए मांस की सप्लाई साथ ली और एक स्लीपिंग बैग से
08:52नार्ग गलत था, रास्ता समाप्त नहीं हो रहा था, और खाने की सप्लाई भी कम हो रही थी, इसलिए उन्होंने निर्णे लिया कि एक व्यक्ती क्रैश साइट पर वापस जाएगा, और दो लोग आगे बढ़ेंगे, विजन्ट वापस लोट गया, और पराड़ो और कनेस
09:22उन दोनों ने नदी के साथ साथ चलते हुए 20 दिसंबर को नदी के दूसरे किनारे पर तीन लोगों को देखा, पिछले नौ दिनों में वे 61 किमी की हाइकिंग कर चुके थे और बहुत ठके हुए थे, उन्होंने उन लोगों से मदद मांगी, लेकिन वे सिर्फ टुमारो कह
09:52कर आर्मी कमांड से संपर्क किया, जल्द ही एर फोर्स ने रेस्क्यू ऑंपरेशन शुरू किया, 22 दिसंबर 1972 को क्रैश के 70 दिनों बाद बचे हुए सर्वाइवर्स को रेस्क्यू किया गया, इनकी हालत बेहत खराब थी, कुल मिलाकर 16 लोग ही इस हादसे से जिन्दा बच
10:22इन 45 लोगों में से 16 ने अपने जीवन को न केवल बचाया, बलकि उसे एक नई दिशा भी दी, उनकी जिद और साहस ने उन्हें जीवन के नए पहलू देखने का मौका दिया, यह कहानी हमें प्रेरित करती है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद की एक किरण

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