00:00एक दूर दराज रेगिस्तान में जहां सूरज की तेज धूप रेत के जरों को भी जलसा देती थी,
00:06वहां एक गाउं के बासी सदियों से शाहबाज कलंदर के करामात के टिस्से सुनकर परवान चड़ते आये थे,
00:12मगर किसी ने कभी ये ना सोचा था कि एक दिन खुद वो कलंदर एक प्यासे चुरवा के लिए उस बेरहम सहरा में कदम रखेगा।
00:21चुरवा एक ऐसा जिनात्ती मखलूक जो इनसानी जबान बोलता, मगर चाला की दगाबाजी और फरेब में शैतान को भी मात दे देता था, पानी उसकी कमजोरी थी, मगर वो पानी के करीब जाते ही राख बनने लगता, यही वज़ा थी कि सहरा में मौजूद एक गहरा कु
00:51एक दिन एक बूढ़ा फकीर काफले से बचर कर उस कुवें के करीब पहुंचा और जैसे ही उसने पानी खेंचने की हिम्मत की, चुरवा एक जोरदार धार के साथ नमुदार हुआ, उसकी आँखें सुर्ख, कद लंबा और जिसम पर कांटेदार बाल ऐसे, जैसे कोई खार
01:21इसमान की तरफ देखा और बोला, मैं मलून हूँ, पानी मेरे लिए जहर बन चुका है, मगर दिल है के इनसानों की तरह चाहता है, प्यास बुझाने को, दिल बहलाने को, और शायद मुआफी पाने को, फकीर ने कहा, अगर तो वाकई तोबा करना चाहता है, तो जा, दरब
01:51जिसने बरसों मासूम लोगों को अपना शिकार बनाया, फकीर ने खामोशी से एक खुसकी टोपी उतारी, और कहा, ये टोपी उस दरबार से लाया हूँ, जहां पत्थर भी अल्ला ला करते हैं, चरवाने वो टोपी सर पर रखी, और उसके बदन से धुआ निकलने लगा, म
02:21खरीब वाकिया हुआ, हुआ थेम गई, फजा में सनाटा चा गया, और शाहबाज कलंदर ने अपने हुजरे से निकल कर सेहन में कदम रखा, चरवाने जमीन को बोसा दिया और कांपती आवाज में कहा, सरकार, मैं वो मलून हूँ, जिसे सब ने दुदकारा, मगर एक फकीर
02:51शौक भी गुनाह लगे, तलंदर ने अपना दस्ते करम उसके सर पर रखा, और चरवा की काली खाल, नर्म, इनसानी रंग में बदलने लगी, उसकी सुर्ख आँखें आंसों से भर गई, और पीट से निकलती कांटेदार शाकें गिरने लगी, फिर कलंदर ने फरमाया, जा
03:21आमे गुनजी, या आली, मदद, लोग हैरान थे, कि जो कभी दरिंदा था, आज दर्वेश बन चुका था, इस वाके के बाद, उस कुमे को चुर्वा वाला चिश्मा कहा जाने लगा, जहां आज भी लोग दौा के लिए आते हैं, और कहते हैं, जहां तोबा हो, वहां राक
03:51जो दिल बदल दे, जो लानती को वली बना दे, जो सहरा को आपशार में ढाल दे