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00:00आप ठीक से सोच पाओ, उसके लिए भी जरूरी है कि शरीर का तापमान एक सीमा में रहे
00:05और शरीर पर जो हवा पड़ रही है, जो धूप पड़ रही है, उसका भी तापमान एक सीमा में रहे
00:09जब तापमान उससे हटता है, तो आपकी वैचारिक प्रक्रिया भी एकदम बिगण जाती है, इंसान का व्यवहार ही बदल रहा है, इंसान कुछ का कुछ हो जाएगा, छोटा मूटा अंतर नहीं है, तापमान में 4 डिगरी, 5 डिगरी की वृद्धी देखी जा रही है, और ज
00:39से यह होने वाला है कि हमारी खाल जल रही है, हम मास एक्स्टिंशन से पहले, मास इंसेनिटी के दौर से गुजरने वाले हैं, हम मरने से पहले पागल होकर मरेंगे, विक्षिप के सब भूम रहे होंगे सडकों पर, पागल, अपनी कपड़े फाडते हुए, फिलकुल, तप