प्रतापगढ़. संकटग्रस्त सूची में शामिल सारस की संख्या में गत वर्षों से कमी होती जा रही है। इसका कारण जलस्रोतों की संख्या में कमी, प्रदूषण बढऩा और फसलों में कीटनाशक का अधिक उपयोग करना प्रमुख है। संख्या में ज्यादा कमी के कारण इस पक्षी को संकटग्रस्त सूची में शामिल किया गया है। जिस पर इसके संरक्षण किया जा सके। गौरतलब है कि जिले समेत प्रदेश में गत वर्षों से नम भूमि में कमी, चरनोट पर अतिक्रमण, खेतों में कीटनाशकों का उपयोग काफी बढ़ गया है। जिससे कई जलीय जीवों के लिए संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में एक दशक पहले तक तालाबों, खेतों, खुली जगहों में स्वच्छंद विचरण करने वाले स्थानीय पक्षी सारस पर भी असर पड़ रहा है। जिले में दो दशक पहले तक आद्रभूमि वाले इलाकों, तालाबों के पास 4-5 जोड़े व 25 से 30 सारस झुंड में दिखाई देते थे। लेकिन अब हालात यह है कि काफी कम जगहों पर इक्का-दुक्का जोड़े ही देखने को मिलते है। इन्टरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर जैसी संस्थाओं ने व्यवस्थित निरीक्षण कर सारस को 11 संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों की सूची में शामिल किया है। देश में सारस चार प्रजातियां विश्व में सारस की 8 और भारत में 4 प्रजातियां पाई जाती है। इनमें से एक भारतीय सारस क्रोंच और दूसरी ब्लेक नेप्ड क्रेन है। शेष कॉमन क्रेन कुरंजा और डिमॉइज़ल क्रेन भारत में प्रवास पर आती है। साइबेरियन सारस वर्ष 2002 में लुप्तप्राय: हो चुके हैं। यह पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी है। भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यपदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि राज्यो में पाया जाता है।
जीवन में एक बार ही बनाता है जोड़ा अमुमन गिद्धों की तरह लुप्त और दुर्लभ होते भारतीय सारस उडऩे वाले दुनिया के सबसे बड़े और ऊंचे पक्षी है। कहा जाता है सारस जीवन मे एक बार एक ही साथी को चुनता है। पूरा जीवन एक ही जोड़े में जीवन व्यतीत करता है। मान्यता के अनुसार कभी जोड़े में से एक मर जाए तो दूसरा पक्षी भी उसके वियोग में कुछ दिनों बाद ही मर जाता है। या वह बाकी जीवन अकेले ही बिताता है। दूसरा जोड़ा नहीं बनाता है।
मादा सारस देती है एक बार में तीन से चार अंडे सारस में नर व मादा की पहचान थोड़ी कठिन होती है। मादा एक बार मे 3 से 4 अंडे तक देती है। यह अपना घोंसला पानी के बीच बड़े टापुओं पर दल-दल के बीच घांस के मैदानों में या अधिकतर खेतों में बनाता है। इसका घोंसला 2 मीटर तक चौड़ा हो सकता है। यह एक शाकाहारी पक्षी है। विशेष रूप जे यह बड़े जलाशयों के किनारों, दलदली इलाकों व खेंतो में रहने वाला पक्षी है। झुंड में 7-8 माह से लेकर 5 से 10 वर्ष तक के जुवेलिन या सब एडल्ट सारस रहते हैं। झुंड में वे तब तक रहते हैं जब तक कि उन्हें उनका साथी नहीं मिल जाता। इसकी ऊंचाई 5 से 6 फीट तक होती है। जबकि वजन 7 से 8 किलो तक होता है। इसके दोनों पंखों का फैलाव 2.5 मीटर तक हो सकता है। जीवन काल 18 वर्ष का होता है।
इको सिस्टम बचाने पर होगा जीवों का संरक्षण गत कुछ वर्षों से इको सिस्टम पर काफी असर हो रहा है। जिससे कई जीवों की जीवनचर्या प्रभावित होने से संख्या में कमी हो रही है। इसमें सारस भी शामिल है। सारस पक्षी का संरक्षण होना चहिए। जागरूकता लाकर इकोसिस्टम और सारस सहित अन्य पक्षियों को बचाया जाना चाहिए। मंगल मेहता, पर्यावणरविद्, प्रतापगढ़.
पर्यावरण को हो रहा नुकसान गत वर्षों से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। ऐसे में इको सिस्टम काफी प्रभावित हो रहा है। इससे जैव विविधता पर काफी प्रभाव हो रहा है। इसके लिए हम सभी को पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाना होगा। अन्यथा इसके परिणाम भोगने होंगे। अभी से चेतना होगा और सभी पहलुओं का ध्यान में रखकर संरक्षण के उपाय करने होंगे। हरीकिशन सारस्वत, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़