00:37मैं अंधकार के ऐसे दलदल में फंस गया हूँ राजकरू
00:57कि दिन और रात का अंतर ही भूल गया हूँ
01:02दिन में रात जैसे ही काले हैं
01:07जदि मनुश्य अपने आँखे बंद कर लेगा
01:12तो उसे अंधकार के अतिरिक और कुछ भी दिखाई नहीं दे सकता महाराच
01:18इसलिए आँखे खूलिए और देखिए
01:24सुर्य अपने समय के अनुसार उदय भी होता है और अस्त भी
01:31चंद्रमा वैसे ही निकलता है और वैसे ही अपने शितल प्रकाश की वर्षा करता है
01:39प्रकाश तो आत्मा है माहराज और आत्मा के बिना कुछ भी संभव नहीं
01:46संभव नहीं तो फिर ये प्रकाश मुझे दिखाई क्यों नहीं देता राजगुरू
01:53संभव तो आप उसे देखने का प्रैतना नहीं कर रहें माहराज
01:57ये अंधकार आपकी कोई समस्या है और समस्या जूजने के लिए होती है
02:04यही तो गठना ही है राजगुरू कि मैं चाहकर भी समस्या से जूज नहीं सकता
02:13ऐसी क्या समस्या है माहराज
02:16महराणी मेरे दो पुत्रों की हत्या कर चुकी है और मैं देखते रहने के सिवाह कुछ न कर सका
02:29क्यों माहराज
02:31क्योंकि मैं वचनबत हूँ
02:37आप वचनबत हैं कि महराणी आपके पुत्रों की हत्या करती जाएं और आप चूप रहें
02:45आप राजा हैं, हस्तिनापूर नरेश हैं, आपको ऐसा अंधा वचन देने का अधिकार ही नहीं था, जो वचन यह कियाड़े आजाए महाराज, वो वचन नहीं, शाप है, मैं वही शाप तो जी रहा हूँ, राजगुरू, आप इसे जी ना कहते हैं, राजन, तो फिर आप मर
03:15जीवन की रक्षा नहीं कर सकता, वो अपनी प्रजा के जीवन की रक्षा क्या करेगा, मैं प्रास्थ ना करूंगा, कि भगवान हस्तिनापूर को आपकी दूर्बलता से बचाए, क्या आपको ये अः�य दिखाई नहीं दिया, राजन?
03:31वो शांतनू जो हस्तिनापूर का राजा है उसे या न्याय दिखाई दे रहा है राजगुरू
03:39तो हस्तिनापूर नरेश इस न्याय को रोकते क्यों नहीं
03:42क्योंकि वो शांतनू जो एक व्यक्ति है वो राजा का हाथ पकड़ लेता है
03:53राजा केवल राजा ही होता है, व्यक्ति बनने का उसे कोई अधिकार ही नहीं, आपका जीवन जन्समुदाई के लिए है, ऐसा वचन देकर आपने राजधर्म को भंग किया है, मैं तो आप से सहायता मांगने के लिए आया था राजगुरू, राजा मांगता हुआ अच्छा �
04:23भग्य भी है, और यही आपका प्रायश्चित भी, लांचन और व्यंग्यों के माहों की मार सहिए, और स्वयों अपनी साहिता करके, अगनी के सागर से बाहर निकलाईए, आपकी इसी दुर्बलता से ही, शक्ति का कोई न कोई अंकुर अवश्य भूटेगा, अरे भया कु�
04:53लगता है महरानी कोई विश्यस्ट मा है, और क्या, मा के ऐसे लक्षन तो नहीं होते, एक एक करके तीन राजकुमारों को बहा चुकी है, भया राजमेल का कोई समाचार तो सुनाओ, समाचार तो वही है, चौथा कुमार जन्मा है, महराज की दशा देखी नहीं जाती, अज
05:23महराज
05:44मैं चौथे राजकुमार की मित्यु पर शोग प्रकट करने आया था, महराज
05:53आप भूल से, हत्या को मिर्टु कह गए, महराज
06:01पर उप यदि हत्या cheesy हैं महराज तो फिर नयाय मूर्ती अधिराज महराज ने अब तक
06:07अप राधी को मित्यु दंड क्यों नहीं दिया, अप राधी को मित्यु दंड न मिलना ही यह
06:12सिद्ध करता है, कि यह हत्याल किन नहीं है
06:15क्या, आप
06:17इस वियंगे को उचित समझते हैं महामंत्री
06:20तो फिर आप महारानी से पूछते क्यों नहीं
06:23ये इस्त्री कौन है महाराज
06:24जिसे आपने हमारी महारानी बना दिया है
06:27इस सिस्त्री में इस्त्री के तीन गुणों में से एक गुण भी नहीं
06:31ना चेतना ना प्रेड़ना ना ही उस्सा
06:33यदि आप पती के नाते नहीं पूछवा रहे
06:35तो राजा के नाते पूछे
06:37क्योंकि राज को एक युवराज देना भी तो आप ही का करतब है महाराज
06:40यदि मैं पूछ सकता महामंत्री
06:44तो आज आपको यहां
06:48मेरे चौथे पुत्र की हत्या पर शूप प्रकट करने के लिए ना आना पड़ता