सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा का राज था। उनके राज में प्रजा बेहद सुखी थी। एक बार मांधाता के राज्य में तीन वर्ष तक बारिश नहीं हुई, जिसकी वजह से अकाल पड़ा गया था। हर तरफ त्रासदी का माहौल बन गया था। इस कारण लोग पिंडदान, हवन, यज्ञ कथा और व्रत समेत आदि कार्य करने लगे। प्रजा ने राजा मांधाता को इस बारे में विस्तार से बताया।
राज्य में अकाल को देखकर राजा अधिक चिंतित हुआ। उन्हें लगता था कि उनसे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया, जिसके कारण इतनी कठोर सजा मिल रही है। इस समस्या से निजात पाने के लिए राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। इस दौरान वह लोग ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे गए। ऋषिवर ने राजा का कुशलक्षेम और जंगल में आने का कारण पूछा।
राजा ने कहा कि मैं पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करता हूं। इसके बाद भी राज्य में ऐसा अकाल क्यों पड़ रहा है? आप मेरी इस समस्या का समाधान करें। मांधाता की बात को सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि यह सतयुग है। ऐसे में छोटे से पाप का बड़ा दंड का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत को करने से राज्य में बारिश जरूर होगी।
इसके बाद राजा ने एकादशी व्रत को किया। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से राज्य में मूसलधार वर्षा हुई। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महत्व का वर्णन किया गया है। देवशयनी एकादशी के व्रत से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।