अपना क्या और पराया क्या? || आचार्य प्रशांत, अपरोक्षानुभूति पर (2018)

  • 2 months ago
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वीडियो जानकारी: 26.04.2018, ग्रेटर नॉएडा , उत्तर प्रदेश

प्रसंग:
सजातीयप्रवाहश्च विजातीयतिरस्कृतिः ।
नियमो हि परानन्दो नियमात्क्रियते बुधैः ॥१०५ ॥

भावार्थ: सजातीय वृत्ति का प्रवाह और विजातीय वृत्ति का तिरस्कार, यही परमानंदस्वरूप नियम हैं। बुद्धिमान लोग इसका नियम पूर्वक पालन करते हैं।

दृष्टिं ज्ञानमयीं कृत्वा पश्येद्ब्रह्ममयं जगत् ।
सा दृष्टिः परमोदारा न नासाग्रावलोकिनी ॥ ११६ ॥
भावार्थः दृष्टि को ज्ञानमयी करके संसार को ब्रह्ममय देखें। यही दृष्टि अति उत्तम है, नासिका के अग्रभाग को देखने वाली नहीं।
~ अपरोक्षानुभूति

~ अपना क्या और पराया क्या?
~ सजातीय वृत्ति का प्रवाह और विजातीय वृत्ति का तिरस्कार क्यों करें?
~ कौन सी दृष्टि अति उत्तम है?
~ हमारी जाति क्या है?
~ किसका तिरस्कार करना है?


संगीत: मिलिंद दाते
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