द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे भगवन! आप मुझे पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व के बारे में बताएं। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “पौष पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत करने से जीवन में सकारात्मक शक्ति का संचार होता है। साथ ही समस्त प्रकार के दुखों एवं संकटों का निवारण होता है।”
हे धर्मराज! भद्रावती नामक शहर में राजा सुकेतुमान राज करता था। वह एक कुशल शासक था, साथ ही बहुत बड़ा दानवीर था। अपने राजा के व्यवहार से प्रजा हमेशा प्रसन्न रहती थी। इस सब के बावजूद राजा परेशान रहता था। उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन राजा वन की ओर जा रहे थे। वन में भटकते-भटकते राजा एक ऋषि के पास जा पहुंचे। उन्होंने ऋषि को प्रणाम किया। ऋषि ने अपनी शक्ति से राजा के दु:खी मन को भांप लिया। तब ऋषि ने राजा से दु:खी होने का कारण पूछा। तब राजा सुकेतुमान ने कहा, भगवान की कृपा से मेरे पास सब कुछ है। लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है। अगर मेरी कोई संतान न रही तो मेरे पूर्वजों का पिंडदान और तर्पण कौन करेगा?
ऋषि ने राजा को उपाय सुझाते हुए कहा, हे राजन! आप पौष माह के शुल्क पक्ष की एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करें। इस व्रत के पुण्य प्रताप से आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी। राजा ऋषि को प्रणाम करके वहां से चले गए। अपने महल में पहुंचकर राजा और उनकी धर्म पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। जिसके फलस्वरूप राजा सुकेतुमान को पुत्र रत्न की प्राप्त हुई।