... और इधर आगोर पर गौर नहीं, छटपटा रहे सिकुड़ते सरोवर

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तालाब, तलाइयां, कुए और बावड़ी हमारे पारंपरिक जल स्त्रोत हैं। ये न केवल पेयजल के साधन रहे हैं, बल्कि हमारे लोक जीवन से भी जुड़े रहे हैं। इनके आस-पास जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों और पेड़- पौधों को फलने-फूलने और पनपने के भी पर्याप्त अवसर मिले हैं। पारंपरिक जल स्त्रोत सूखे गलों