| Morarka Haveli | शेखावाटी की इन हवेलियों में कभी रौनक देखने लायक थी, लेकिन अब वीरान पड़ी है!

  • 2 years ago
| Morarka Haveli | शेखावाटी की इन हवेलियों में कभी रौनक देखने लायक थी, लेकिन अब वीरान पड़ी है!

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हवेली शब्द का अर्थ एक घिरी हुई जगह है इसका अर्थ उदगम फारसी भाषा से हुआ है जिसका अंग्रेजी में Mansion शब्द थोड़ा नजदीक आता है अन्यथा इसका कोई पर्याय नहीं है । हवेलियां कोठियों के विपरीत साधारणतया नगरीय घरों की तरह होती है ।

मुगल हवेली के विपरीत झुंझुनूं की हवेली में दो बरांडे होते थे एक बाहर व दूसरा अन्दर । बड़ी हवेली में कभी - कभी तीन या चार बरांडे होते थे ।
मुख्य दरवाजा बहुत ही कम बंद होता था इस कारण बाहरी बरांडा एक प्रवेश द्वार के कार्य के रूप में प्रयुक्त होने लग गया । पुराने समय में महिलाओं की दिनचर्या सुबह से लेकर रात तक तुलसी की पूजा से प्रारम्भ होकर खाना बनाने तथा पानी लाने और उसे एक विशेष हवादार कमरे में रखना जिसे परेड़ा कहते थे तथा अन्य कार्य करने तक सीमित था । महिलाएं दूसरे बरांडे में खिड़कियों से पुरूषो की दुनिया को निहारा करती थी जब पुरूष मेहमानों का आगमन हवेलियों में होता था तो वे धीरे से दूसरे बरांडे में चली जाती थी जो उनका निजी घर होता था । महिलाओं पर यह थोपी हुई एकान्तता मुस्लिम आक्रमणों के बाद देखने में आई । जिस प्रकार घुंघट ( परदा ) उनके चेहरों को परिवार के पुरुषों से ढक कर रखता था अंदरूनी बरांडा उन्हें दुनिया से छुपा कर रखता था । Inside the Haveli नामक पुस्तक के लेखक काम मेहता ने अपनी पुस्तक में लिखा है " कुंआरी कन्याओं को बाहर बरांडे में आने की तब तक अनुमति न थी जब तक उनका विवाह न हो गया हो ..... सभी महिलायें अपने चेहरे को ढक कर रखती थी चाहे कोई पुरूष सामने हो अथवा नहीं , केवल परिवार की बेटियों को अपना चेहरा ढकने की आवश्यकता नहीं थी । " उनका घर उनकी दुनिया थी उनकी सीमा थी । सुबह होते ही हवेली के पुरुष प्रस्थान कर जाते थे या फिर हवेली की तिबारी में जो एक विशेष भाग होता था में अपना कार्यालय शुरु करते थे इसे बैठक भी कहते थे । इस तिबारी की छते , दीवारें , मेहराब चित्रों से सजी होती थी । हवेली के कमरे एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं रहते थे । बरांडो की तरफ इन कमरों के द्वार खुलते थे । पहली मंजिल की बालकनी बरांडे के ऊपर हवेली के चारों भागो में रहती थी । सिढियां उस चौरस छत की तरफ जाती थी । कभी - कभी पहली मंजिल के कक्ष बिना छत के होते थे ताकि मरूस्थल की सुहानी रातों का आनन्द निजी तोर पर लिया जा सके । हवेली के इन सभी भागों पर चित्रण कार्य होता था कहीं कहीं निजी कक्षों में उत्तेजक दृश्य भी अंकित मिलते है।

तीन स्तर पर खिड़कियां बनाई जाती थी जो जलवायु एवं सामाजिक आवश्यकताएं पूरी करती थी । बाहर देखने के लिए सबसे निचले स्तर की खिड़की होती थी जिसमें महिलाएं स्वंय तो बाहर देख सकती थी पर उन्हें कोई नहीं देख सकता था । दूसरे स्तर की खिड़कियों में रंगीन कांचों का प्रयोग होता था ताकि रोशनी बिना रूकावट अन्दर आ सके ये थोड़ी ऊपर होती थी । तीसरी सबसे ऊपर होती थी जो सबसे छोटी भी होती थी। हवेलियों में सजावट और श्रृंगार हमेशा रहता था । मुख्य दरवाजे में ऊपर की ओर गणेश की प्रतिमा या चित्र तथा राम का राज्यभिषेक तथा अन्य धार्मिक चित्र चित्रित होते थे ।

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