Ep.01 | दिल्ली के पहले सांग रचयिता | दादा निहाल चन्द | रेडियो धाकड़
- 4 years ago
#निहाल_चंद जी का जन्म 21 अक्टूबर 1887 को गाँव नांगल ठाकरान (#दिल्ली) मे हुआ | उनके पिता गौरीदत्त जी एक किसान थे | तीन भाईयों मे वे बड़े भाई मलूक राम से छोटे व जीत राम से बड़े थे | बचपन से ही वे मधुर व औजस्वी आवाज के धनी थे | उनके पिता काफी धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे व साधु-संतों की सेवा मे भी समय देते थे | एक बार घर पर आए कुछ साधु-संतों ने बालक निहाल चंद को देख कर माता-पिता से आग्रह किया की वे बच्चे को उनके साथ भेज दें | परंतु माँ की ममता और पिता के स्नेह को ये आग्रह स्वीकार नहीं था | साधुओ ने बालक निहाल के चेहरे के तेज को देख कर कहा की इस बालक मे तो सन्यासी बनने के गुण है | आगे चलकर ये बात सत्य साबित हुई | निहाल चंद जी आजीवन ब्रह्मचारी रहे और एक सन्यासी की तरह ही जीवन यापन किया |
पिता गौरी दत्त व माता मनभरी द्वारा दैनिक क्रियाओ के साथ-साथ गाए जाने वाले गीतों को सुनकर उनका झुकाव भी गायन की तरफ हुआ | लगभग 17 वर्ष की आयु मे उन्होंने जसौर खेड़ी निवासी पं. सरूप चंद जी को गुरु धारण किया | गुरु जी के सानिध्य मे रहने के कुछ समय बाद उन्होंने अपना स्वतंत्र सांग बेड़ा बनाया और दिल्ली, दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र के साथ-साथ लगभग पूरे उत्तर भारत मे अपने सांग किए |
दादा निहालचंद केवल एक लोककवि एवं साँगी ही नहीं अपितु धर्मात्मा, दानी, गौरक्षक, समाज-सुधारक व शिक्षा-प्रेमी भी थे। इनकी सांगकला का उद्देश्य धनार्जन, यशप्राप्ति एवं लोकरंजन नहीं था। ये पूरी तरह लोक-कल्याण की भावना से ओतप्रोत थे तथा जनमानस की भलाई के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते थे। साँग-मंचन से प्राप्त राशि से इन्होंने गाँव-गाँव में अनेक कुएँ, जोहड़, पाठशाला तथा धर्मशालाओं आदि के निर्माण में सहयोग दिया।
लोक कल्याण के अतिरिक्त देशभक्ति की भावना से भी इनका हृदय निरंतर आप्लावित रहा। इसलिए ये अपने साँग-मंच से अवसरानुकूल समय-समय पर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत गीतों का गायन करके जनमानस में राष्ट्रीय चेतना का संचार करते रहे। दादा निहालचंद द्वारा समाजोत्थान एवं राष्ट्रहित के लिए किए गये कार्यों के लिए हम सदा दादाजी के ऋणी रहेंगे।
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