Aarya Review : गलत और कम गलत के बीच आर्या
  • 4 years ago
क्राइम ड्रामा वेब सीरिज़ आर्या डच ड्रामा सीरिज पेनोज़ा पर आधारित है। इसे पहले काजोल करने वाली थी, लेकिन उनके मना करने के बाद सुष्मिता सेन को इसमें लिया गया।

सुष्मिता ने लगभग दस साल बाद अभिनय की दुनिया में प्रवेश किया है और एक एक्टर के तौर पर वे पहले से ज्यादा मैच्योर हुई हैं और उनका यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ काम है।

आर्या सुष्मिता के किरदार का नाम है। राजस्थान में वे अपने पति तेज सरीन (चंद्रचूड़ सिंह) और तीन बच्चों के साथ रहती हैं। पति का फॉर्मास्युटिकल का बिज़नेस है। आर्या का भाई संग्राम (अंकुर भाटिया) और जवाहर (नमित दास) इस व्यवसाय में पार्टनर है।

एक दिन आर्या के पति तेज की गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। संग्राम ड्रग के सिलसिले में गिरफ्तार हो जाता है। आर्या पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है।

शेखावत (मनीष चौधरी) नामक माफिया आर्या को बताता है कि तेज के सौ करोड़ रुपये उसे चुकाना पड़ेंगे क्योंकि उसका माल तेज और उसके पार्टनर्स ने चुराया है।

आर्या के पति को किसने मारा? क्या आर्या के पति को सौ करोड़ रुपये शेखावत को देना है? क्या आर्या का पति ड्रग्स के अवैध धंधे में शामिल था? ऐसे कई सवाल आर्या के सामने तैरने लगते हैं जिन्हें वह धीरे-धीरे सुलझाती है।

नौ एपिसोड्स में बंटी 'आर्या' की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी कहानी अप्रत्याशित है। कब क्या मोड़ आएगा यह अनुमान लगाना कठिना है।

शुरुआती तीन एपिसोड तो धमाकेदार है जब आर्या के सामने लगातार नई मुसीबतें आती रहती हैं। वह पति के जाने का ठीक से गम भी मना नहीं पाती और रोजाना नए दलदल में फंसती जाती है।

ठप्प पड़े बिज़नेस और माफियाओं के धमकियों की आंच उसके परिवार पर भी आने लगती है। कई मोर्चों पर उसे काम करना पड़ते हैं। बीच के एपिसोड जरूर थोड़े खींचे हुए और लंबे लगते हैं, लेकिन अंतिम तीन एपिसोड्स में सीरिज फिर स्पीड पकड़ लेती है।

किरदारों पर खासी मेहनत की गई है और इन्हें डिटेल्स के साथ प्रस्तुत किया गया है। हर किरदार धोखेबाज नजर आता है और किसी भी पर भी विश्वास करना मुश्किल होता है चाहे वो अपना हो या पराया, पुलिस हो या माफिया। यह बात सीरिज को देखने लायक बनाती है।

कदम-कदम पर आर्या के लिए मुसीबतें खड़ी गई हैं और आर्या किस तरह से इन चुनौती से निपटती है ये देखना एक रोमांचकारी अनुभव है। परिवार, षड्यंत्र, माफिया, बिज़नेस, पुलिस, टीनएज बच्चों का बहकना इन बातों को अच्छे से समेटा गया है।

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बीच के एपिसोड में झोल इसलिए आता है कि कुछ बातों को महज लंबाई बढ़ाने के लिए खींचा गया है। इन्हें छोटा कर दिया जाता तो आसानी से दो एपिसोड्स कम हो सकते थे।

सीरिज के अंत में कुछ धागे छोड़ दिए गए हैं ताकि सीज़न दो बनाया जा सके, इसके बावजूद यह मुकम्मल कहानी लगती है और सीज़न दो प्रति उत्सुकता को बढ़ाती है।

संदीप श्रीवास्तव और अनु सिंह चौधरी अपने लेखन से इस सीरिज को भारतीय परिवेश में अच्छी तरह से फिट किया है। परिवार और क्राइम पर चलने वाले दोनों ट्रेक्स को अच्छे से संभाला है। वे दर्शकों में उत्सुकता जगाने में सफल रहे और सवालों का जवाब संतुष्ट करने लायक है।

राम माधवानी, संदीप मोदी और विनोद रावत ने इस सीरिज को निर्देशित किया है। कहानी के बहाव को उन्होंने अपने निर्देशन के जरिये बखूबी दिखाया है।

अमीरों की लाइफ स्टाइल, हवेलीनुमा घर, स्टाइलिश कारों के साथ-साथ पुलिस थाना, बदतर जेलें, बदरंग गोदाम को भी उन्होंने कैरेक्टर्स की तरह दिखाया है।

दर्शकों को भी आर्या की तरह क्लूलेस रखा है और चौंकाने वाले ट्विस्ट समय-समय पर आते रहते हैं जिससे आगे देखने की उत्सुकता बनी रहती है।

सुष्मिता पर कैमरा बहुत मेहरबान रहा है। वे सुपरफिट और स्टाइलिश दिखीं। हर फ्रेम में उन्हें खूबसूरत दिखाया है और यह बात इसलिए नहीं अखरती क्योंकि उनका किरदार ही कुछ ऐसा है।

सुष्मिता ने गजब की एक्टिंग की है और उनकी शख्सियत बेहद प्रभावशाली रही है। उन पर से आंख हटाना मुश्किल है। उम्मीद है कि वे अब लगातार नजर आती रहेंगी।

सुष्मिता के अलावा सभी कलाकार की एक्टिंग जबरदस्त है। सिगार फूंकते मनीष चौधरी, कोकिन के नशे में चूर और झूठ बोलने वाले नमित दास, खूसट बाप जयंत कृपलानी, फिरंगी म्यूजिशियन ओ नील, केस को सॉल्व करने के लिए जुनूनी विकास कुमार, खामोश रहने वाले दौलत बने सिकंदर खेर और सभी बच्चे भी अपने रोल में फिट रहे।

तकनीकी रूप से भी सीरिज मजबूत है। सिनेमाटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक और एडिटिंग डिपार्टमेंट ने अपने काम अच्छे से किए हैं।

गलत और कम गलत के बीच फंसी आर्या की कहानी देखी जा सकती है।
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