निर्भया दोषियों के बाद वकील को होनी चाहिए सजा |Convicts Lawyer AP Singh|Nirbhaya Case|Talented View
  • 4 years ago
निर्भया की आत्मा को 7 साल बाद अब जाकर थोड़ी राहत महसूस हुई होगी। निर्भया के गुनाहगारों की फांसी का जश्न मनाने जो हजारों लौग तिहाड़ जेल के बाहर इकट्ठे हुए वो एक बहुत बड़ा संदेश है। सुबह 5 बजे बिना किसी स्वार्थ के, कोरोना के खौफ को पीछे छोड़ते हुए तिहाड़ जेल पहुंचे ये लौग ये इशारा दे रहे है कि बलात्कारियों के खिलाफ समाज मे कितना आक्रोश है।

लेकिन बड़ा सवाल जो निर्भया के बलात्कारी छोड़ गए वो ये है कि हमारा संविधान कितना लाचार और खोखला है जो 7 साल तक ये दरिंदे खुली हवा में सांस ले सके। इन्हें फांसी से पहले भी इनके वकील ने आधी रात तक हर पैंतरा लगाकर फांसी रुकवाने की पुरजोर कोशिश की। समझ नही आता कि काला कोट पहनने वाले इन वकील साहब के कोट के भीतर इंसानियत बची है या नही?

खेर, एक लंबी लड़ाई के बाद निर्भया के चारों गुनहगारों को आज सुबह 5.30 बजे फांसी दे दी गई। इन चारों की लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। इस बीच ये खबर आ रही है कि चारों गुनहगारों के परिवार की ओर से उनकी लाश को लेकर कोई दावा नहीं किया गया है। ये अच्छा कदम है लेकिन बेहतर होता कि ये परिवार वाले खुद ही इनकी पैरवी करने की बजाय इनकी फांसी की मांग करते।

अब लौग कह रहे है की "देर आये, दुरुस्त आये" और "न्याय के दरवाजे पर देर है लेकिन अंधेर नही।" लेकिन परिस्थिति का दूसरा पक्ष ये है कि "जस्टिस डिलेड, इस जस्टिस डिनाइड'' मतलब देर से मिला इंसाफ भी नाइंसाफी ही है। निर्भया मामले पर न्याय पालिका और सरकार को ये सोचना होगा कि कानून देश की जनता के सुरक्षा के लिए बनते है ना कि अपराधियों को उनके गुनाह से बचाने के लिए। निर्भया के मामले में चारो दोषियो को फांसी तो हो गयी लेकिन इन सबके लिए निर्भया के माता-पिता को कितनी तकलीफें पहुंची,उन्होंने कितनी जद्दोजहद की इसका अंदाज़ भी नही लगाया जा सकता।

कुछ दिन पहले जब हैदराबाद की पुलिस ने एक वेटनरी डॉक्टर के बलात्कारियों का एनकाउंटर किया तब जनता ने पुलिस का जगह-जगह स्वागत किया था। ऐसा करने के पीछे यही वजह थी कि जनता समझने लगी है कि अदालतें इंसाफ करेगी या नही ये तय नही और करेगी भी तो कछुवे की गति से ही। जनता में अदालतों के प्रति पनपने वाला ये अविश्वास स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सही नही है।

निर्भया के बलात्कारियों के बाद जनता में सबसे ज्यादा गुस्सा उनके वकील ऐ पी सिंग के लिए था। जिस बेशर्मी और ढिठाई के साथ उन्होंने बलात्कारियों की पैरवी की उससे वकील बिरादरी की इज़्ज़त भी समाज मे निश्चित ही कम हुई है। बार काउंसिल को जनता की भावनाओ को समझना चाहिए और कुछ कानून जरूर बनाने चाहिए जिससे वकील इतना नीचे गिरकर कभी केस न लड़ें।


निर्भया को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि आगे से किसी ब्लात्कारी को फांसी देने में इतना समय न लगाया जाएं। हर बार ये सोचता था कि निर्भया के मामले में अब एक शब्द भी तभी लिखूंगा जब उसके बलात्कारियों को फांसी पर लटका दिया जाएगा। आज मन मे संतोष है कि आखिरकार इन दरिंदो को अपने किये की सज़ा मिली। पुनः भगवान से प्रार्थना है की निर्भया के साथ जो हुआ वो किसी लड़की के साथ न हो।
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