Saaho : Movie Review || साहो : फिल्म समीक्षा
- 5 years ago
https://hindi.webdunia.com/bollywood-movie-review/saaho-movie-review-prabhas-samay-tamrakar-shraddha-kapoor-saaho-review-in-hindi-entertainment-119083000064_1.html
यदि ज्यादा पैसा लगाने से ही फिल्म बेहतर बन जाती तो लोग हजार करोड़ की फिल्म बना डालते, लेकिन यह फॉर्मूला बिलकुल सही नहीं है। यह बात 350 करोड़ की लागत से तैयार 'साहो' देखने के बाद फिर साबित होती है। साहो 174 मिनट की फिल्म है। तकरीबन हर मिनट पर दो करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं, लेकिन फिल्म में साढ़े तीन मिनट भी ऐसे नहीं हैं जो दर्शकों को मनोरंजन दे सके। फिल्म में एक्शन और स्टंट्स पर अनाप-शनाप खर्च किया गया, लेकिन ढंग की कहानी ढूंढने के लिए मेहनत नहीं की गई। बिना कहानी के आप कितनी देर तक एक्शन देख सकते हैं। भला चटनी से पेट भरता है क्या? पहली फ्रेम से ही साहो दर्शकों से कनेक्ट नहीं कर पाती। कहानी के सूत्र समझ ही नहीं आते। इसके बाद तो बात हाथ से निकल जाती है। दर्शक कुछ समझने का प्रयास भी छोड़ देता है और स्क्रीन पर जो उटपटांग चीजें होती रहती हैं उसे ही देखता रहता है। माना कि 'साहो' एक कमर्शियल फिल्म है, लेकिन न फिल्म का एक्शन रोचक है और न रोमांस दिल को छूता है। दो हजार करोड़ रुपये की चोरी जैसी बड़ी-बड़ी बातें हैं, लेकिन इसमें बिलकुल रोमांच नहीं है। साहो तो मसाला फिल्म के शौकीनों की अपेक्षा पर भी खरी नहीं उतर पाती।
#Saahomovie#Prabhas#Moviereview
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यदि ज्यादा पैसा लगाने से ही फिल्म बेहतर बन जाती तो लोग हजार करोड़ की फिल्म बना डालते, लेकिन यह फॉर्मूला बिलकुल सही नहीं है। यह बात 350 करोड़ की लागत से तैयार 'साहो' देखने के बाद फिर साबित होती है। साहो 174 मिनट की फिल्म है। तकरीबन हर मिनट पर दो करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं, लेकिन फिल्म में साढ़े तीन मिनट भी ऐसे नहीं हैं जो दर्शकों को मनोरंजन दे सके। फिल्म में एक्शन और स्टंट्स पर अनाप-शनाप खर्च किया गया, लेकिन ढंग की कहानी ढूंढने के लिए मेहनत नहीं की गई। बिना कहानी के आप कितनी देर तक एक्शन देख सकते हैं। भला चटनी से पेट भरता है क्या? पहली फ्रेम से ही साहो दर्शकों से कनेक्ट नहीं कर पाती। कहानी के सूत्र समझ ही नहीं आते। इसके बाद तो बात हाथ से निकल जाती है। दर्शक कुछ समझने का प्रयास भी छोड़ देता है और स्क्रीन पर जो उटपटांग चीजें होती रहती हैं उसे ही देखता रहता है। माना कि 'साहो' एक कमर्शियल फिल्म है, लेकिन न फिल्म का एक्शन रोचक है और न रोमांस दिल को छूता है। दो हजार करोड़ रुपये की चोरी जैसी बड़ी-बड़ी बातें हैं, लेकिन इसमें बिलकुल रोमांच नहीं है। साहो तो मसाला फिल्म के शौकीनों की अपेक्षा पर भी खरी नहीं उतर पाती।
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