Skip to playerSkip to main contentSkip to footer
  • yesterday
दाम्पत्य में अपरा व परा भाव

Category

🗞
News
Transcript
00:00
00:30
01:00और सोन को सत्य रूप में आने का अवसर भी प्राप्त होता है
01:04संतान भी इस्त्री का सत्य भाव में अवतरण है
01:07किन्तु वह भी नश्वर ही है, पैदा होती है न
01:12देह पंच महाभूतों से निर्मित होती है
01:15प्रित्वी ही पांचमा महाभूत है
01:17अन्न पैदा होता है अन्न से ही देह का निर्मान होता है अतह मिट्टी के घड़े जैसी है देह का निर्मान भी मा के गर्भ में ही होता है मा के अन्न से ही होता है अर्थात देह भी नश्वर है चाहे लड़का हो या लड़की दोनों ही इस्त्रेण होते हैं शरीर तो पुरु�
01:47is
02:17भीद्या से मृत्यू को पार करके विद्या से अमृत्प्राप्त कर लेता है।
02:32विद्या Pe Horror है, विद्या अपरा है।
02:42परा की और उन्मुक करता है परा और माया के सूत्र जुड़े रहते हैं
03:11पुरुष की सौमेता औसतन निर्बल होती है इस्त्री के आगनेय रूप में आहुत होने को आतुर रहता है इसी के लिए क्रिश्न कहते हैं गामयन सर्व भूतानी यंत्रा रुढ़ानी मायया गीता 18.61 अविद्या में ही पकड़ है जो भ्रमित रखती है पुरुष उस भ्रम
03:41द्याव अप्रा से मुक्ती कैसी , खामना के सूत्र रस्ति से जैसे बच्रे को बांध कर रखती हैं परामे प्रवेश्ट से इस बंधन से मुक्ती कुछ अंश्य तक हो जाती है
03:52इस्त्री के मूल पीज साणड ही रहते हैं, साथ ही जीते हैं
04:19Two is
04:21Brussels
04:24Brussels
04:28Suphamsh한다
04:29salam
04:30Gurgan
04:31P hing
04:31Vyant
04:32An
04:33pti
04:34Brahm
04:36Dharma
04:37Ram
04:38Sanna
04:39Satan
04:41D
04:44Ram
04:47Don
04:491.
04:512.
04:523.
04:545.
04:556.
04:577.
04:597.
05:019.
05:029.
05:0510.
05:0710.
05:0811.
05:1012.
05:1212.
05:1312.
05:1412.
05:1513.
05:1613.
05:1713.
05:1813.
05:19इवं इस्त्री, पशुवत, इस्थूल शरीर को ही जी पाते हैं, न तो मा की जेतना ही सूक्ष्म को छुपाती है, न कोई गुरू ही जीवन को सूक्ष्म से जोड सकता है, शरीर ही उम्र भोग कर नश्ट हो जाता है, जीव बिना किसी संसकार परिवर्तन के शरीर बदलता चल
05:49के साथ परोक्ष भाव देव रूपा में उसकी दिव्यता गुरू रूप में सदा प्रतिश्थित रही है, नारी के इस महा माया स्वरूप की भूमी का ही मानव की मुक्ति का भी कारन रही है, सूक्ष्म शरीर में अव्य पुरुष और अक्षर पुरुष साथ रहते हैं, �
06:19प्रिश्टी चक्र को व्यवस्थित रखने में मानव योनी की ही भूमी का है ब्रह्म का अश्माया द्वारा विवर्द बनता है माया ही दैवी संपदा रूप में मोक्स शाक्षी बनकर ब्रह्म से जोड़ देती है
06:47दैवी संपद व्यमोक्षायय निबन धाया मासुरी मता माशुचः संपदम दैवी मभी जातो सी पांडवा घीता 16.5
06:57દેવી સમદા મુટી કા માર્ગ દિખાતીએ આસુરી સમપદા બંધરણ કા હમારે શાસ્ર દેવી સમપદા સે જોડતે
07:27આતમા કારણો કા આદાં પરાણ પ્રધાણ એ મંપરણ બુથી શરીર કા નહી આતમા કારથ હીવરી હીવરી મારીતા
07:57પીતમે પીતમાં પીતી એહતી એહા એહણ્દીતી પરાંપતી હીતી કારણ પીતીતી પીતીતારાં પરારધતી હી�
08:27in order to get married.

Recommended