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  • 3 days ago

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Animals
Transcript
00:00बरसाप की एक शाम
00:09बक्षिगंज गाओं के दो लोग भोलू की चाय के दुकान पर बैटे हैं
00:14उनके चहरों से साफ दिख रहा था कि वो लोग काफी उदास है आज
00:19चहाँ ये सवी लोग मिलके भोलू की चाय दो तिन कप पी जाते हैं
00:25वहां कोई आज एक कप चाय तक नहीं पिया हर कोई गाओं की मौजूदा समस्याओं को लेकर बहुत विचलित है
00:32इसे बीच गाओं की वर्तमान हेड़ मास्टर कैला शुपाब ध्याल भोलू की चाय की दुकान पर आप पहुचे
00:42अड़े रामलाल, माधव, तुम लोग इहां इतना उदासों के क्यों बैटे हुए हो
00:53मुझे इस काओं में आए हुए इतने दिन होगे
00:56मैंने तो कभी तुम लोगों को इतना परेशान नहीं देखा
00:59हमेशा हस्ते मुस्कुराते हुए है देखा है
01:02लेकिन आज अचाना क्या हुआ
01:04आईए मास्टर जी, बैठिए
01:08आपकी चाय तयार है मास्टर जी
01:12मुझे पता था, आप थोड़ी देर में यहां आ जाओगे
01:16हाँ हाँ बोलू, आज अपनी वो अद्रग वाली चाय पिलाना मुझे ठीक है
01:22बहुत देर से सर्दत कर रहा है
01:24और हाँ, तुम लोग बताये नहीं
01:27कि हुआ क्या है, इतने उदास क्यूं हो
01:30असल में क्या है ना मास्टर जी
01:32हम सभी लोगों का अज मन बहुत उदास है
01:35क्यों? क्या हुआ?
01:39इतने खुबसुरत गाओं के लोगों के साथ
01:42घुलने मिलने से किसी का भी मन बहतर हो जाएगा
01:45लेकिन उनी लोगों को आज अचानक क्या हुआ?
01:51अब तो जानते ही हो मास्टर जी
01:53कि हमारे गाओं में कोई अस्पतल नहीं था
01:56कोई भी बीमार होता था तो
01:58उसको दो काओं पार
02:00दस मिल दूर जाना पड़ता था
02:03अस्पतल पहुचने से पहले ही तो कितनों की मौत हो गई
02:07इसलिए हम सभी मिलके
02:09अपने पैसे बचा के
02:11इस गाओं में एक अस्पतल बनवाया
02:13लेकिन
02:14लेकिन?
02:18लेकिन क्या?
02:18हमारी सारी बचत खतम हो गई
02:21अस्पतल तो तयार है
02:23पर बिस्तर तो खरिदना बाकी रहे गए
02:26हमारे पास तो
02:28और पैसे नहीं बचे
02:29अब क्या होगा?
02:33ओ, ऐसी बात है
02:34मेरे पास कुछ पैसे तो थे
02:36पर वो तो मेरी बेटी की शादी में खर्च हो गए है
02:40लेकिन हाँ
02:41इच्छापूर गाउं मेरी पुष्टेनी जमीन है एक
02:45अगर उसे बेच दिया तो जो पैसा आएगा
02:49उमीद है उससे अस्पताल का बेड हो जाएगा
02:53क्या कहते हो?
02:55ये आप क्या कहें मस्टर जी?
02:58आप अपनी पुष्टेनी जमीन बेच देंगे?
03:00मेरे तो बस ये एक साल की नौक्टी बची है
03:05मैंने तो मन बना लिया
03:06जो प्यार यहां मिल रहा है
03:08मैं तो बाकी की जिन्दगी
03:11यही गुजारूंगा तुम लोगों के साथ
03:13क्यों? ने लखोगे क्या?
03:16वैसे भी?
03:17ये तो बड़ा है पुन्य का काम है
03:19भगवान ऐसे अवसर बार बार नहीं देते
03:21रामलाल, माधव
03:23और भूलू की आखों में
03:25जैसे आसू आ गया हो
03:26तीनों ने हाथ जोर कर कैलाश मास्टर का
03:29शुक्रिया अदा किया
03:30अरे अरे ये क्या कर रहे हो?
03:33अच्छा सुनो, हम लोग कल ही
03:35निकल जाएंगे
03:36काफी समय से कुछ लोग
03:38मुझसे वो जमीन खरिदना चाते थे
03:40देखते हैं
03:42अगर इस बार बात हुई
03:43तो उनको ही बेज देंगे
03:45अगले दिन सुहें
03:49कैलाश, रामलाल और माधव
03:52इचापुर गाउं की ओर चल पड़े
03:54जब बैट ट्रेन में थे
04:00बाहर बहुत जोड से बारिश होड़े थी
04:03आसमान काले बादलों से ढखा हुआ था
04:06और हवा भी बहुत तेज चल रही थी
04:09ये बारिश तो रुकने की नाम ही नहीं ले रही है
04:13मैं भी तो वही सोच रहा हूँ
04:16इत्मी बारिश में जाएंगे कैसे
04:18वहाँ एक नदी भी तो पार करनी होगी
04:21आपका गाउ क्या स्टेशन से बहुत दूर है
04:26स्टेशन में उतर के पहले हम लोगों को नदी के तीनारे कॉल्चना होगा
04:30फिर वहाँ से नव लेके नदी पार करके जाना होगा मेरा गाउ
04:34ऐसे ही बात करते करते समय बीटता चला गया
04:38आखिरकार जब तीनों स्टेशन पर पहुँचे वो शाम हो चुकी थी
04:46सुन्सान स्टेशन पर बस वश तीनों आके ही उतरे
04:53अभी तो बाडिश थोड़ी लुकी है
04:56चलो देखते हैं जल्दी से नाव घट पर पहुच पाते ही या नहीं
05:01वो तीनों स्टेशन से बाहर आ गए
05:06आसपास कोई भी नजर नहीं आ रहा था
05:09बाडिश की कारण रात का अंधेरा अन्ने दिनों के मुकाबले कुछ जादा ही था
05:15घने काले अंधेरे ने चारो ओर जैसे एक जादूई माहौल बना दिया था
05:21वे स्टेशन के पास एक बर्गत के पेड के नीचे आके रुके
05:27यही पर रिक्षा मिलता था
05:29आज तो एक भी रिक्षा नहीं दिखाई दे रहा
05:32इतनी बारिश की मौसम में क्या ही मिलेगा
05:35किसीने तो उम्मिड भी नहीं की होगी
05:37कि इतनी बरसात की रात में भी कोई आखरी ट्रें से ही हाँ आभी सकता है
05:42अब क्या किया जाए
05:44चलो पैदल ही चलते हैं
05:49मुझे तो कोई और रास्ता दिखाई ही नहीं दे रहा
05:51मौसम भी तो कुछ ठीक नहीं लग रहा है
05:54अगर फिर से बारिश आ गई तो
05:57वो तीनों अंधेरे में ही आगे बढ़ने लगे
06:02कुछ दिर चलने के बाद
06:06दूर से एक वैन आने की आवाज आई
06:09लगता है कोई वैन रिक्षा आ रहा है इधरी
06:14रुको रुको
06:16कुछ ही देर में दूर से
06:20कच्चे रास्तों में एक वैन आती हुई दिखाई दी
06:23केलाश ने उस चालक को देखते ही पैचान गया
06:28कहां अरे रतन भया
06:32आपसे मिले हुए किपने महिने हो गए
06:35वो आदमी केलाश को थोड़ी देर देखा
06:38फिर कहा
06:39अरे केलाश कैसे हो
06:42अपने घर जा रहे हो क्या
06:44जी रतन भया
06:47मैं तो ठीक हूँ
06:49ये दोनों है रामलाल और माधव
06:51मैं जिस काव में अभी मास्टर हूँ
06:54ये दोनों उस काव से ही है
06:56हम सब तो अभी मेरे घर जा रहे थे
06:58रतन मया
07:00आप हमें नदी के किनारे ले चलोगे क्या
07:03तो आज रात की आखरी नाव मिल जाती
07:06रतन ने कहा
07:09इस बरसात की रात में नाव मिलेगी
07:13अच्छा चलो देखते हैं
07:16बैठो
07:16चलो रामलाल
07:18चलो उठो
07:19ये आखरी मौका है
07:21अगर ये निकल गया हूँ
07:24तो सारी रात यहीं रुक के बारिश में भीगना पड़ेगा
07:27चलो चलो
07:28सभी लोग वैन पे जाके बैठ गए
07:33अंधिरे में ही वैन आगे बढ़ने लगी
07:36कुछ देर बात कैलाश ने रतन से पूछा
07:45आपकी तो इतनी उमर हो गए रतन भाया
07:50फिर भी आप अभी भी भैन चलाते हों
07:53आपको तकलीफ नहीं होतान।
07:55तकलीफ, हाँ होता था पहले, अब नहीं होता है
08:01पहले होता था, अग नहीं होता है, इसका क्या मतलब है
08:06वो कुछ नहीं, तुम तो बहुत दिनों बाद इचापुर गाउं आये हो
08:11हम लोगों को तो भूल ही गए हो तुम
08:14नहीं नहीं, ऐसी बात नहीं है रतनमया
08:17धरसल कामकील सिल्सिले में मैं अभी जहां रहता हूँ
08:21वहां से आमतर पे आना जाना हो नहीं पाता है
08:24आज पितो एक जरूरी काम से ही आया हूँ
08:27गाव में मेरे बाप दादा की जो जमीन है न उसे ही बेचने आया हूँ
08:33बेच दोगे? क्यो? क्या हो गया? कोई मुसीवत?
08:39हाँ, मुसीवत तो है, जिस गाउ में मैं रहता हूँ अभी, उस गाउ के सभी लोगों ने अपने बचाए हुए पैसे से अस्पतल बनवा तो दिये हैं, लेकिन वो अस्पतल की बेट खड़िने की पैसे नहीं जुटा पा रहे हैं, इसलिए मैं ले सोचा कि अपनी पुष्ट
09:09काउं का गर्व हो, हरे नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, ये देखो न, ये रामलाल, माधव, ये सभी वी किसी से कम है क्या, ऐसे ही बात चीप चलते चलते, सभी लोग नदी के किनारे आप पहुचे, जब बो तिनो नदी की और देखें, तब नदी बहुत तेज बह रही
09:39नदी के किनारे कुछ नाव बंदी हुई थी, लेकिन चलाने वाला कोई भी दिखाई नहीं दिया, जो सोचा था वही हुआ, एक भी माधवी घट पर नहीं है, वैसे भी इतनी रात हो गई है, और फिर बारिश, कोई क्यों ही रहेगा अभी, ये तो बड़ी मुसीबत हो ग�
10:09आस्मान का हाल देखा अपने, लगता है बारिश फिर से आने वाली है, आस्मान में काले बादल फिर से आना शुरू होगे, नदी की और से हलकी हलकी धंडी हवा भी चलनी शुरू होगी, रतन भी उन लोगों के साथ वही खड़ा था, जब वो तिनों बात कर रहे थे, तब
10:39ले होड़तन मैया, बोलिये न, क्या कहना जाते हैं? लगता है थोड़ी ही देर में बारिश फिर से शुरू होगी, और अभी तो कोई माजी भी नहीं है घाट पर, जो ना उसे अपनी घर जा सकोगे, उसके बजाए काम करो, वो देखो, सामने ही मेरा घर है, सब लोग वही �
11:09गाड़ी में स्टेशन गया हूँ आपको अपकी घर से बुला के, क्यो रामलाल, माधव, और तो कोई रास्ता नहीं दिख रही है, आज की रात वही गुजार ले है? रतन भाया, आज हमारा कितना बड़ा उपकार किया है, क्या बताओ?
11:25हाँ, माधव ने सही कहा, हम रतन भाया के घर पे ही चलते हैं, नहीं तो इस बरसात की रात में बड़ी मुसिवत में पढ़ जाएंगे
11:37सभी लोग मिलके रतन की घर की और बढ़ने लगे
11:41जैसे वो घर के अंदर घुसा, एक अजीब सी बदबू आने लगी अंदर से, मानू बहुत दिनों बात कोई इस घर को खुल रहा हूँ
11:53रतन भाया, घर के अंदर इतने बदबू क्यों?
12:00ये फर्श भी कैसा भीगा दी का असा लग रहा है
12:03असल में ये घर तो आदी समय बंध ही पड़ा रहता है, मैं तो अपनी गाड़ी लेकर बाहारी रहता हूँ
12:11और पानी शायद खिरके से अंदर आया होगा
12:15कमरे की कोने में एक टूटी खुली हुई खिरकी से हलकी सी रोशनी आ रही थी
12:21घर में खाना तो कुछ नहीं है, मैं तो आप लोगों के लिए खाने का इंतिजाम ही नहीं कर पाया
12:28आप उसकी चिंता मत करो, इतनी खराब मुशंम में रात को रहने के लिए जगा मिल गई, इससे ज़्यादा और के चाहिए
12:36अगर आप नहीं होते तो, हाज रात हम लोग कैसे भी ताते, भगवान ही जाने
12:44अरे ऐसी कोई बात नहीं है, ठीक है, आप लोग सो जाओ
12:48और आप, आप कहना होगे?
12:52मैं बाहर सो जाओंगा, वोई परिशानी नहीं होगी
12:55क्यों, आप हम लोगों के साथ सो जाओंगा?
13:00नहीं, नहीं, मुझे कोई दिककत नहीं होगी
13:02ये बोलके रतन बहार चला गया
13:06और वो तीनों, जमिन पर चटाई विचा कर लेट गए
13:12तब गहरी रात, अचानक कैलाश के निंड खुल गई
13:19एक अजिवसी आवाज आ रही थी
13:22जैसे कि कोई घर से थोड़ी दूर जमीन खोद रहा हो
13:27कैलाश शुड़ू में तो नजर अंदस करता रहा
13:32लेकिन आवाज और तीज होने लगी
13:35जो वो काम कर रहा था
13:37जैसे कि वो किसी की पड़वा किये बगेर ही किया जा रहा था
13:41ये आवाज कहां से आ रही है
13:44छोड़ आ गया क्या
13:47कैलाश टेजी से उठा
13:50और खुर्की के पास आकर बहार देखने लगा
13:53रतन भाईया
13:56घर से थोड़ी दूर पेर के नीचे
13:59खुदाई कर रहा है
14:00माधव, रामलाल, उठो जल्दी उठो
14:11मुझे यहां कुछ खीक नहीं लग रहा है
14:14रामलाल और माधव
14:18दोनों नीच से जाग गये
14:20कैलाश ने दोनों को खिर्की के पास बुलाया
14:25अरे, रतन भाईया कहा गया
14:30अभी तो यह ही पड़ थे
14:38आपने ठीक देखा था मास्टर जी
14:40हाँ हाँ बिल्कुल
14:43चलो तो बहार
14:44वे तीनों घर के पीछे वाले पेर की ओर चल दिये
14:50यह देखो
14:53यहाँ पेर के नीचे जमीन पर कुछ है लगता है
14:56मैंने दतन भाईया को यही देखा था
15:05लगता है मानू जैसे की वो चाह रहे थे की
15:09मैं नीन से उठकर यह देखूं
15:11देख तो रामलाल क्या है वहाँ
15:17मिट्टी को हाथ से तोड़ा हिलाने पर
15:24रामलाल को पैसों से भरी हुई एक कलर्श दिखाई दी
15:28अड़ी इसके अंदर तो बहुत सारे पैसे है
15:32सच में लिकिन ये है किसके
15:35रतन भाईया भी कहां चले गए
15:37ठीक है वो दूसरों की पैसे है
15:40उसकी हमें जरूरत नहीं
15:43वो जैसे था उसको वैसे ही रगदो अच्छे से
15:46और चले आँ वहाँ से
15:47ठीक उसी वक्त
15:50वो पेड जैसे हिल उठे
15:52पीनों ने उपर देखा
15:55तो वहाँ
15:57लंबे पैरो वाला एक भयानाक चहरा बैठा हुआ था
16:00दरो मत कैलाश
16:08मैरा तन हूँ
16:10मैं यही देखना चाहता था
16:13कि क्या तुम समय के साथ लालची तो नहीं हो गय हो
16:15तुम सच में गाव का गड़ हो कैलाश
16:18तुम चाते
16:20तो यह पैसे असानी से ले सकते थे
16:22और मैं अकेला बुड़ा आदमी
16:25तुम तिनों के सामने तो टिक भी नहीं पाता
16:28चहां तुमें पैसों के इतनी जरूरत है
16:31और यहां इतने सारे पैसे है
16:33लेकिन आप
16:36मैं एक साल पहले ही मर चुका हूँ
16:41एक दिन मैं अपने वैन लेके
16:43लाइन के उस पर जा रहा था
16:45ऐसे में एक ट्रेन आके
16:47छोड़ो उस बात को
16:49मैं मर तो चुका हूँ
16:51लेकिन मेरे बचा हुई एक पैसों के वज़े से
16:54मुझे मुक्ती नहीं मिल रही थी
16:56मैं किसी सच्चे इंसान की तलाश में था
16:59आज मुझे वो मिल गया
17:01आप लोगों से बात करके ही
17:03मैं समझ गया था
17:04कि आप लोग सच्चे इंसान है
17:06मैं थोड़ा जाच लिया बस
17:08ये पैसे ले जाओ
17:10और अस्पताल के लिए लगा दो
17:13तुम्हें अपना पुष्टेनी जमीन
17:15बेचने की कोई जरूरत नहीं है कैलाश
17:17यहाँ जो पैसे है
17:19उससे अस्पताल का काम
17:20पूरा हो जाएगा
17:21रतन भया
17:23अब मुझे मुक्ती मिलेगी
17:27आप सब लोग अच्छे से रहना
17:30ये कहते हुए
17:33रतन का भयानक चहरा
17:35हवा में गायव हो जाता है
17:37वो तीनों बस
17:40पैसो से भरे हुए
17:41कलश को देखते रहे गए
17:43बाडिश की रात एक भूतिया
17:47घर में बिताय हुए वो पल
17:48उन लोगों के मन में
17:50पूरी तरह से कैद होके रह गया
18:03प ciert में बाडिश में पल
18:06झाल
18:10झाल

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