00:00जब हजरत सुलिमान अली सलाम जिन्नात के जरिये बैतल मुकदस की तामीर करवा रहे थे तब उनका इंतकाल करीब आ गया।
00:07उन्हें यहां अंदेशा था कि अगर जिन्नात को उनकी मौत का इल्म हो जाता तो वे बैतल मुकदस की तामीर का काम अधूरा छोड़ कर चले जाते और यह मुकदस जगह अधूरी रह जाती।
00:18इसलिए हजरत सुलिमान अली सलाम ने अल्लाह ताला से सचे दिल से दुआ की ऐ मेरे रब मेरी मौत को जिन्नात पर जाहिर न कर ताकि यह काम पूरा हो सके।
00:28इसके बाद हजरत सुलिमान अली सलाम अपने असा के सहारे खड़े होकर तामीर के काम में मशगूल हो गए और इसी हालत में उनका इंतकाल हो गया।
00:36उनकी रूह परवर्दिगार के हुक्म से उनके जिसम को छोड़ कर चली गई।
00:40लेकिन जिन्नात को इस बात का बिलकुल एहसास नहुआ।
01:10का इंतकाल काफी पहले ही हो चुका था लेकिन तब तक बैतल मुकदस की तामीर मुकम्मल हो चुकी थी।