00:00जो पिल्दी अपने मन की बाते बया नहीं कर सकता, अपना जीवन अपने हिसाब से जी नहीं सकता, उसको सामने व्यत नहीं कर सकता, वो सारी भावनाएं से एक ही तौर पे बहार आती है, वो है चिर्चिरापत।
00:14कोई यतके अगर बहुत चिर्चिर करता है न, इवार बेठा गर उससे पूछो, क्या रह गया है?