- 7/6/2025
'हर-हर महादेव' का उद्घोष, मन में शिव भक्ति... देखें कांवड़ यात्रा की 'कहानी'
Category
🗞
NewsTranscript
00:00मस्कार मैं हूं नेहा बाथम और आप देख रहे हैं कहानी टू पॉइंटो
00:03खारत का कलेंडर बारा महीनों का होता है उनमें से एक महीना है सावन
00:07मोटे तोर पर ये बारिश का महीना होता है इसी महीने को लेकर एक मशूर गीड़ भी है
00:12पर ये सिर्व वर्शा रित्तु का महीना नहीं है
00:17ये महीना है भगवान शिव की भक्ती का
00:20इसी महीने लाखो शिव भग कंदे पर कामर उठाते हैं
00:24मन में शर्द्धा, पैरों में होस्ला
00:26और होटों पर सिर्फ एक ही मंत्र
00:28हर-हर महादेव
00:29आज कहानी में बात कामड़ी आत्रा की
00:59हरहार महादेव बॉल बाप
01:05वीच किलो मीटर तक हम चलते हैं उसके बाद हमारी हिम्मत नहीं रह जाती बाबा ही खीचते हैं
01:18कामड यात्रा सिर्फ एक महीने का सफर नहीं है यह आत्म शुद्धी की चार सब्ता की साधना
01:34तो आए समझते हैं भगबान शिव से जुड़ी इस परंफरा को आसान शब्तों में
01:38उस कहानी से उस नियम से उस यात्रा से जो हर साल सावनाते पूरे देश को शिव में बना देती
01:45अगर कोई जल भी पी रहा है तो सनान करके ही कावड को हाथ लगाए यह अपना रखते हैं
02:08यह सिर्फ एक महीने का सफर नहीं यह है
02:38आत्म शुद्धी की चार सब्ता की साधना
02:41हर साल सावन के महिने में जब मौनसुन की बोचारे धरती को भीगोती हैं तब भारत की सडकों पर भगवा रंग की बार से आ जाती हैं
03:02लोग सिर पर गंगा जल से भरिक कलश, कंधे पर कावड और होठों पर हर हर महादेव का चैखोश करके निकलते
03:09अपने माबाप के लिए कावड उठाई है कि माबाप की लंबी उमरो और हमेज़ा स्वस्तर है
03:23उनके लिए ये कावड उठी है 51 लिटर जल यहां से मैं भर के अरिद्वार से और कानकुर एक कांदे की कावड लेके जाएंगे
03:33ये कोई आम यात्रा नहीं ये है शद्धा की पराकाश्था भक्ती का प्रदर्शन और आत्मा की तपस्या
03:53ये परंपरा अनादिकाल से बस भर कितना है कि आज से सो दोसो पचास साल सो साल दोसो साल पांसो साल पहले कुछ कावड यह होते थे आज बहु संख्या में कावड यह हैं
04:09मांगते हैं बोले बाबा बिना कहें भी देते हैं
04:11ये किवल जल की बूंदे नहीं
04:27ये है भक्तों के आसू तप और मन्नतें जो भगवान
04:31शिव के चर्णों में समर्पित होती है
04:33इस यात्रा के पीछे कई पौराणी कथाएं है
04:36जो इसे और भी अधिक दिव्यता प्रदान करती है
04:40काहनी में आज हम जानेंगे
04:47सावन महिने में कावड यात्रा का धार्मिक महत तो क्या है
04:51कावड में जल चढ़ाने की परंपरा कैसे शुरू हुई
04:54गंगा जल को शिवलिंग पर चढ़ाना क्यों शुब माना जाता है
04:58बिहार में कावडियों द्वारा नंगे पाउं चलने की परंपरा क्यों है
05:03बोलवम का नारा क्यों लगाये जाता है
05:06और क्या कावड यात्रा अब एक धार्मिक उत्सव से ज्यादा सांस्कृतिक शो बनती जा रही है
05:12महराज लिखते हैं कि जे गंगा जल आनी चढ़ावा
05:19जो कोई गंगा जल ला करके मुझहर्पित करेगा
05:22महादिव कहते हैं रामेश्वरम में
05:24जे गंगा जल आनी चढ़ावा तेनर मुक्ति वा अनर पल भर में मुक्ति पाएगा
05:33भगवान शिव को गंगा जल अत्यंत प्री है और कावड की परंपरा अनाधिकाल से हैं जल ले जाने की
05:39कावड यात्रा हमें याद दिलाती है कि आस्था कोई शब्द नहीं एक अनुहव है
05:57और अनुहव तपी पून होता है जब उसमें दूरी भी हो कठिनाई भी हो और समर पड़ भी
06:04सावन का महिना आस्मान से बरस्ती बून्दों के बीच धर्ती पर उतरते हैं भगवान शिव के वो भग जिनके पैरों में होती है आस्था की अदम्य शक्ति
06:19भागवान शिव के दिन जब राजारवली के यहां जाते हैं चार मास का चुत्रुमाश होता है और उसमें भगवान शिव के हाथ में सारी संसार को संजालन करने की सकता रहती है
06:42कावण अपने आपने एक ऐसा परव है जो तरवन के द्वारा प्रारंब हुआ और अने को विशी महरेशियों और भक्तों ने समय समय पर भगवती गंगा और अपने माता पिता को कंधों पर लेकर करके तीत्यात्राइं कराई
06:55आज का जो भोतिक सवरूब है कावण का वो वास्तिकता में एक तपश्या का जीवन है जो भारत खास करके उत्तर भारत के विभीन राजियों से जो लोग हरद्वार आते हैं तो परधम्मा गंगा का सनान करते हैं भगवान दक्षेश्वर का विशेक करते हैं उसके बाद अ�
07:25बलकी भारत की सडकों पर हर साल दिखाई देने वाला सबसे विराट और जीवन्त भक्ति आंदोलन है
07:32हरिद्वार से गंगा जल भरकर लाखों शद्धालू अपने अपने इलाकों के शीव मंदिरों में जल चड़ाते हैं
07:42बिहार के सुल्तानगन से जल लेकर जारखन के वैदिना धाम में भक्त शीव को जल चड़ाते हैं
07:48कचला से यूपी के लखिमपूर खीरी के गोला गोकर्ण में जल चड़ाते हैं
07:53प्रियागराच से काशी विशुनात के मंदिर में जल चड़ाते हैं
07:56कावर यात्रा सिर्फ शरीर की परिक्षा नहीं यह आत्मा की तपस्या है
08:05सरवन नक्षतर से स्रावन मास का जनम हुआ है
08:13और भगवान शीव का अभिशेक क्योंकि सवा महिना खास करके हरदुआर में भगवान का निवास रहता है
08:19जितने भी देश के सिवाले हैं कुछ छण भगवान की सक्ति वहां रहती जो भगत बारा महिने अगर जल नहीं चड़ाते तो सावन मास में अगर वो जल चड़ाते तो संपून बारा मास का फुल प्राप
08:28पूरी यात्रा के दौरान गंगा जल से भरे कलश को जमीन पर नहीं रखना होता है
08:37भग नंगे पॉँचलते हैं वरत रखते हैं सैयमी ताचरण अपनाते हैं और पूरे मार्ग में केवल भगवान शिव का ही ध्यान करते हैं
08:48सावन के महिले में चार सुमबार आते हैं इन चारों सुमबारों पर लाखों की संख्या में कावड ये मंदिरों की उर बढ़ते हैं
09:03ये एक प्रकार से सावन का महा कुम्ध होता है कावड यात्रा ने अग्केवल धार्मिक रूप नहीं बलकि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप भी ले लिया है
09:14रास्ते में जगा जगा भंडारे लगते हैं सेवा श्रिविर लगते हैं स्थानिये लोग शद्धालों की सेवा में जूट जाते हैं
09:24जगाते हैं लिए लिए लेकर आते हैं और शुब हो जितना हो सके सब के लिए हम असान करें और अच्छा करें और बहुत ही शुब तरीके सा इसको मनाया जाए
09:52इसके लिए 15-16 किलोमीटर का जितना स्ट्रेच नगर निगम चेतरों में बढ़ता है
09:57सब में मार्क प्रकाश विवस्था, साफ सफाई, पेड़ का चटान
10:01जहां एक और ये यात्रा भक्ती और समर्पन का प्रतीक है
10:10वहीं दूसरी और बीजे, ट्रैफिक जाम, कुछ आसावाजिक घटनाए इसकी छवी को धुमिल भी करती है
10:40उन सर्वी जगों पर भी हम लोग केमरे लगाने का प्रयास सल रहा है हमारा केमरे लगाए जाएंगे
10:47जो हमारे लाइट वाले च्टने जामजा लाइट्स नहीं है जो वामने डार्क स्पोर्ट्स है उसको भी उनने अडिटिफाई किया है
10:54उसके बाद जो हमारे अरियाज वाह पर हम लोग ड्रोन भी यूज करेंगे तो जो कावड काम अरे मुकरूप से आपको बता है कि
11:08युग करा ईटिफाई करेंगे ताकि कई कोई कदर आगर कामडीयों को हो रही हो तो उसको उसको अरिक गया रिचैना टूप से और हो तो उसको हम लोग सरी तरीके से उसको दुष्ट करा लोग
11:24इस महा उत्सव में छोटे व्यापारियों, दुकानदारों, धावाचालकों और होटेल व्यापसाईयों को भी आर्थिक लाब होता है
11:44कावर यात्रा भारत की उस धरती भक्ति का नाम है, जिसमें करोडों लोग हर साल अपने कंधों पर आस्था उठाए, भगवान शिव के चर्णों तक पहुँचते हैं
12:00ये यात्रा हमें सिखाती है, कि अगर इरादा सच्चा हो, तो कठिन रास्ते भी मोक्ष के द्वार तक ले जाते हैं
12:12कावर यात्रा एक कदम तपस्या की ओर, एक कदम आत्म शुधी की ओर, और एक कदम शिव की चर्ण की ओर भक्तों को ले जाता है
12:30कावर यात्रा से पैदर चलने की बात नहीं है, यह आस्था की अगनी परिक्षा, यह तप, सयाम और शद्दा का अध्भूत संगं
12:59सावन के महीने में जब सडकों पर बोल बम की गून सुनाई देती है, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा भारत शिव में हो गया हो
13:06यह यात्रा हर साल ना सिर्व भक्तों को आध्यात्मिक अनुभूती कराती है, बलकि पूरे समाज को एक जुट करती है
13:13आईए भारत में उस रूट को समझते हैं जहां से शिव वक्त सावन में यात्रा करते हैं
13:18कावड यात्रा सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, ये तप है, त्याग है और है आत्म शुद्धी की अगनी परिक्षन
13:48जब सावन आता है, तव उत्तर भारत की सडकों से लेकर नेपाल की घाटियों तक बोल बम की गूंज आसमान तक सुनाई देती है
14:00हर साल करोणों शुभख जल लेने निकलते हैं, हाथ में कावड, माथे पर गेरुआ पटका और सुबां पर हर हर महादेव
14:18मेरी ये बड़ी थी थी है, ये इनका बेटा है, ये उनकी बेटी है, ये उनका बेटा है छोटे वाला, ये भाई है, वो भी भाई है, ये भी भाई है, मलम सारे परिवारी समझ लीजे आप
14:32मलम एक, दो, तीन महिला हैं, तीन महिला हैं
14:37विश्राम करने की जगा लगा रखे हैं बोड़े की बड़ी महरबानी है
14:40आएए समझते हैं भारत में कावड यात्रा के वो रूट जो श्रीव भक्तों को भगवान भोलेनाथ तक पहुचाते हैं
15:012014 में अकेले उत्तर भारत में एक करोड असी लाख से ज्यादा भक्त हर साल कावड यात्रा में शामिल होते हैं
15:112024 में सिर्फ हरिद्वार से जल लेकर करीब एक करोड बीस लाख शिव भक्त कावड यात्रा पर निकले
15:18पश्मी यूपी, बिहार, ज्यारखंड, बंगाल और नेपाल तक कावड़ियों की संख्यां हर साल रिकॉर्ड तोड़ती जा रही है
15:26सुल्तानगन से लेकर देवघर जाने वाले भक्तों की संख्यां लगभग एक करोड को पार कर गई थी
15:33बिहार, ज्यारखंड का सबसे पवित्र और एतिहासी कावड रूट है सुल्तानगन से बाबा बैदिना धाम देवघर तक
15:46ये रूट करीब एक सो पांच किलो मिटर लंबा है जिसे शिवभग नंग के पैरताय करते हैं गंगा जल लेकर
15:53सुल्तान गंज की सबसे खास बात यह है कि यहां गंगा उत्तर वाहिनी है यानि उत्तर दिशा की और बहती है जो पूरे भारत में दुरलव है
16:02यहीं से जल लेकर कावड़िये निकलते हैं और जारखंड के देवघर में बाबा वैदिनात के जोतिर लिंग पर अरपित करते हैं
16:13गंगा सबसे पहले ज्ञान देती है पिर गंगा
16:43वैरागे देती है गंगा जान भक्ती फिर गंगा दूसरी भक्ती देती है तिसरा वैरागे देती है और चौथा अंतम में मौक्ष देती है तिसलिए धर्म अर्थकाम और मौक्ष को चाहने वाले गंगा जल को लें और महादेव को अर्पित करें यह परंपरा अनाधिकाल से ह
17:13इस यात्रा को शावनी मेला भी कहा जाता है, जो सावन के पूरे महीने चलता है
17:19हर साल करीब एक करोड भग इस कठिन यात्रा में शामिल होते हैं
17:25कुछ लोग तीन दिन में पहुँचते हैं, तो कुछ लोग तेज गतिवाले डाक कावड में 24 से 30 घंटे में ही मंदिर पहुच जाते हैं
17:34अगर हम टॉलेट वगरा या बात्रूम या किसी भी खाना भी न खाते हैं
17:43तो हम दुबारा से नाने के बाद में पूजा करने के बाद फिर जल उठाते हैं
17:47फिर आगे के लिए बढ़ते हैं
17:48फिर कावड उठाने का मकसद होता है
17:51हर दुआर जाओ, गोले बाबा का नमन करो, अपनी गंगा जल को भरो
17:56और अपने घर के लिए परस्तान करो, इसके नियम बहुत सकत है
18:00अगर जो आपने एक टुकड़ा भी खाया, तो उसके बाद आपको नाना पड़ेगा
18:04एक वो नाना होता है, जो पूरा भीग के नाना होता है
18:06पर टाइम ना होने के कारण कई-कई जगा पानी नहीं होता
18:09तो थोड़ा सा पानी लेकर, ऐसे छड़काव करके, कहा जाता है कि इसे भी एक नाना कहते हैं
18:15रास्ते में सैक्रों सेवा श्वीर, मेडिकल कैम्प, भंडारे और रुकने के स्थान होते हैं
18:29ये सिर्फ यात्रा नहीं, ये तप, संकल्प और शिव से जुड़ने की साधना है
18:34सावन में शिव भक्तों की सबसे व्यस्त और विशाल यात्रा में से एक है
18:46हरिद्वार दिल्ली कावड रूप
18:48ये रूप करीब 220 से 250 किलोमीटर लंबा होता है
18:54जो हरिद्वार से शुरू होकर मेरट, गाजयबाद होते हुए दिल्ली तक जाता है
19:00रास्ते में मुजफर नगर, मुराद नगर, मोदी नगर, लोनी और नांगलोई जैसे कस्वे भी आते हैं
19:08जो पूरी तरह शिव मय हो जाते हैं
19:10हर साल इस रूट पर 25 से 30 लाग से ज्यादा शिव भक्त चलते हैं
19:17कई कावड ये पैदल चलते हैं तो कई डाक कावड के रूप में दौरते हैं
19:24कुछ लोग मोटर सैकील और ट्रकों को कावड यात्रा के लिए सजाते हैं चलते हैं
19:54रास्ते भर भव्य भंडारे, सेवा शिविर, मेडिकल कैम्प लगते हैं
20:10दिल्ली सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और केंदर शासित प्रशासन मिलकर यात्रा कुछ रुक्षित बनाते हैं
20:17इस रूट की सबसे बड़ी विशेष्टा है, भक्ति का उत्साह, दिन रात सडकों पर दिखाई देता है
20:25हरिद्वार नीलकंठ रूट, ये सबसे पवित्र और लोगप्रिय रूट माना जाता है
20:41हरिद्वार में गंगा जल भरकर शिवभक, रिशिकेश होते हुए नीलकंठ महादेव मंदिर तक जाते हैं
20:49ये मंदिर वही बाना जाता है जहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन में निकला विश्पिया था और नीलकंठ कहलाए
20:59ये मंदिर हरिद्वार से लगवग 60 किलोमीटर दूर है और हर साल सावन में लगवग 50 लाग से ज्यादा शिवभक यहां पहुँचते हैं
21:09गंगोत्री से जल लेकर केदारनाथ या काशिव विशुनाथ मंदिर तक ले जाना बहुत ही पुर्णिकारी माना जाता है
21:23ये यात्रा कठिन होती है इसलिए से डाक कावड या संकल्प कावड भी कहा जाता है
21:30इसकी दूरी लगवग 300 किलोमीटर है
21:39प्रियागराज से गंगा जल भरकर भक्त काशिव विशुनाथ मंदिर की ओर बढ़ते हैं
21:45ये रूट मध्य उत्तर प्रदेश के गाववव और कस्मों को जोड़ता है
21:50इस यात्रा की दूरी लगवग 130 किलोमीटर है
21:54कावड यात्रा किसी एक धर्म, एक जाती, एक भाषा का त्योहार नहीं
22:02ये भारत की स्थांजी सांसकर्तिक विरासत का प्रतीक है
22:05गाउं गाउं से निकले भक्त, एक संकल्प के साथ चलते हैं
22:10भोले नात को जलर पित करने का संकल्प
22:12शरीर ठकता है, पैर छिलते हैं, पर आस्था नहीं डग्मगाती
22:17ये यात्रा सिखाती है, तब से ही शिव मिलते हैं, और भक्ती से शिव पिखलते हैं
22:24कावड शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई
22:34लकडी की डंडियों के दोनों सिरो पर टोकरी नुमा संरचना होती है, जिसमें गंगा जल से भरे कलश रखे जाते हैं
22:40भक कंधे पर इसे रखकर गंगा के घाट से जल लेकर अपने घरों या स्थानिय शिव मंदरों तक पहुँचते हैं
22:47इस यात्रा की शुरुवात होती है मनो काम नाव से और समापन होता है भगवान शिव के जलाविशेग से
22:53लेकिन क्या आप आपने कभी सोचा है कि इसकी शुरुवात कहां से हुई, कभ से हुई
22:57और इसके पीछे कई पौरानिक कहानिया जो हैं आस्था के सियात्रा की पूरी कहानी कैसी है।
23:27श्रावण मास आते ही जव शिभग नंगे पैर गंगा जल लेकर निकलते हैं तो वो सिर्फ परंपरा नहीं निभा रहे होते हैं वो आध्यात्म के शीरश पर होते हैं।
23:46लेकिन क्या कभी आपने सोचा कावड यात्रा की शुरुवात कब हुई और क्यों हुआ शिव के जलाभिशे का ये विशेश पर हो।
24:05इसके पीछे चिपी हैं कई बड़ी पौरानिक कहानिया जिनके बिना ये यात्रा अधूरी है।
24:13कहानी नमबर एक समुद्र मन्थन और शिव का विश्पान।
24:20देवताओर असुरों ने मिलकर जब अम्रित पाने के लिए समुद्र मन्थन किया तो उसमें सबसे पहले निकला काल कूट विश।
24:28इतना जहरीला की पूरी सृष्टी नश्ठ हो सकती थी।
24:32देवता भाके भगवान शिव के पास शिव ने बिना देर की वो पूरा विश्प खुद पी लिया और अपने कंठ में उसे रोक लिया।
24:41इससे शिव नील कंठ कहलाए लेकिन विश्प की गर्मी और असर से भगवान शिव का शरीर जलने लगा।
24:48देवताओं ने उन्हें शीतलता देने के लिए गंगा जल चढ़ाना शुरू किया। कहते हैं तभी से भगवान शिव को जल चढ़ानी के परंपराज शुरू हुई और उसी का विस्तार है का वड़िया था।
25:00जरत सकल सुरवरिंद विशम गरल जही पान कीन विशम गरल को पान कर लिया है विश्वनात ने जा करके किसके लिए जगत के कल्यान के लिए लोग कल्यान की भावना नेट थी विश्वना इसी दिए सारे के सारे देव तो देव हैं लेकिन विश्वनात हमारे महादेव हैं
25:30और जैसे हैं विश्वनात ने और उनका सरीर बाबा का सरीर भी टेंपरिचर बढ़ गया इसे तो मैं में भगवान स्रेमन नारायन ने
25:54सभी रिश्वन से सभी देवताओं से किंडर से नागर से सबसे कहा कि सभी लोग जाकर कि तिर्थों का जल ले आकर कि बाबा की ओपर डालो तब इनकी इनको शीतलता प्राप्त होगी तब से लेकर आज तक वो परमपरा चाली है बाबा का सरीर जग्द है जल रहा है और शीर �
26:24तब से लेकर कि आज तक अनहद रूप से चल लई है जब स्त्रावण मास प्राप्त होता है जब प्रकित भी स्तरवित होती है द्रवित होती है
26:33कहानी नंबर दो रावण और शिवलिंग के स्थाबना
26:38दूसरी कथा जुड़ी है राक्षस राज रावण से रावण भगवान शिव का परमभक था कहते हैं उसने भगवान को प्रसंद करने के लिए अपने सिर और भुजाएं अरपित कर दी थी
26:53शिव ने प्रसंद होकर उसे फरदान दिया और एक शिवलिंग सौपा भगवान शिव ने शर्ट रखी इस शिवलिंग को रास्ते में कहीं मत रखना वरना ये वहीं स्थापित हो जाएगा
27:23रावन शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चला लेकिन रास्ते में गौधुली वेला में उसे नित्य कर्म के लिए जाना पड़ा
27:35उसने ग्वाले को शिवलिंग पकड़ा दिया जो असल में भगवान विश्णु का रूप थे
27:40ग्वाले ने शिवलिंग को वहीं रख दिया और वो वहीं स्थापित हो गया आज वहीं स्थान है रामेश्वरम
27:47कहते हैं रावन गंगा जल साथ लेकर गया था और वहीं से कावण में जल लेकर चलने की परंपरा और विशेश महत्यु की शुरुवात हुई
27:56कहानी नंबर तीन परशुराम की कथा और गंगा जल
28:04तीसरी कथा भगवान विश्णू के छटे अवतार भगवान परशुराम से जुड़ी है
28:15कहते हैं भगवान परशुराम ने अपनी माता रेनुका का वद्थ किया था अपने पिता के आदेश पर
28:21बाद में जब उन्हें पश्चा ताप हुआ तो उन्होंने महादेव की शरंड ली
28:31महादेव ने उन्हें प्राश्चित के लिए गंगा जला कर जला भिशे करने को कहा
28:36सबसे पहले महारिशी परशुनाम ने भगवान शिव को प्रसंद करने के लिए यग्य किया था
28:44तब वो कावण लेकर गंगा जल लेने हापुड के गढ़ मुक्तेश श्वर गए थे
28:48फिर उस गंगा जल से उन्होंने बागपत के पुरा महादेव मंदिर में शिवलिंग का जला भिशे किया था
28:55उस समय सावन मास ही चल रहा था
28:58माना जाता है कि इसी के बाद से कावण यात्रा की शुरुवात हुई
29:02कहते हैं भगवान परशुराम ने ही गंगा जल को पवित्र औशधी और दोश मुक्ति का उपाय बताया
29:10इसी से आगे चल कर श्रावन मास में जल चढ़ाने की परंपरा गहरी होती चली गई
29:15इन कथाओं से साफ होता है कि कावण यात्रा सिर्फ एक आधुनिक चलन नहीं बल्कि हजारों साल पुरानी परंपरा है
29:23जिसकी नीव स्वें भगवान शिव, रावण, भगवान परशुराम जैसे चरित्रों ने रखी दी
29:29काहनी नमबर चार श्रवण कुमार की कता
29:37कई जगों पर उलेख मिलता है कि सबसे पहले त्रेता युग में श्रवण कुमार ने कावण यात्रा की शुरुवात की थी
29:50श्रवण कुमार के माता पिता की आँखों की जोती चली गई थी
29:54श्रवण कुमार के माता पिता ने हरी द्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रगट की
29:58तो माता पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार उन्हें कावण में हरी द्वार ले गए और उनको गंगा स्नान करवाया
30:06वापसी में गंगा जल भी साथ लेकर आये थे
30:09बता जाता है कि तभी से कावर यात्रा की शुरुवाद हुई थी
30:13आज भी हर सावन में भक्त उसी परंपरा को दोहराते हैं
30:19जल लाते हैं, शिव को अर्पित करते हैं
30:22और मन, वचन, कर्म से खुद को शुद्ध करते हैं
30:52को अपनी मनों का आमना पूरी करें, अब इस सर्दा से कावर उठाते हैं
30:56कहानी नंबर पांच, राजा भागिरत की कता
31:02वालमी की रामायन की भी एक कहानी है, जो कावर यात्रा को त्रेता युग में श्रिराम से भी जोडती है
31:08इस कहानी के मुताविक, राजा सागर के 60,000 पुत्रों के उधार के लिए
31:14राजा भागिरत सुल्तान गंज से गंगा की धार साथ लेकर निकले थे
31:18लेकिन सुल्तान गंज के अजगयवी नात में गंगा की तेज धारा से रिशी जहनवी की तबस्या भंग हो गई
31:26इससे क्रोधित होकर जहनवी रिशी पूरी गंगा को पी गए थे
31:30भागिरत की विंती पर रिशी ने अपनी जंगा को चीर कर गंगा को बाहर निकाला था
31:35माना जाता है कि यहीं से जल भरकर शिराम ने देवघर में बाबा बैदिनात का जला भिशेक किया था
31:42जिसके बाद कावड यात्रा की परंपरा शुरू हुई
31:45भोले नात को जल चड़ाने की यह परंपरा यूही नहीं जन्मी
31:51ये उपजे हैं विश्पान से, प्रतिग्या से, पश्चतात से और आस्था से
31:57और यही कारण है कि आज भी हर सावन में करोणों लोक चल पड़ते हैं
32:02कावड उठाकर एक ही मंत्र के साथ बोलबंब
32:06कावड यात्रा आस्था की यात्रा है लेकिन इसके अपने नियम भी है
32:21जो भक्तों के सयम और शद्धा की कहानी कहते हैं
32:25गंगा जल भरने के बाद कावड को जमीन पर नहीं रखा जाता
32:28यात्रा पूरी तरह नंगे पाउं की जाती है
32:30और यात्रा के दुरान मास, मदिरा और तामसिक भोजन बरजित होता है
32:34ये यात्रा सर्षरीर की नहीं आत्मा की भी परिक्षा है
32:38सैयम, शुद्धा और भक्ती का अध्वोत संगम है कामर यात्रा
32:42कस्ट कुछ जादा ने ले लिया
32:57ना कस्ट धाल हो तो क्या मनुकाम ना मांगे या
33:01भक्ती में तोड़ा कस्ट नहों तो फिर मजा नहीं आता
33:06भूले का मेला है इसमें हरको ही जाता है इसमें तो सब रंग के जाते है
33:10हर बंदे की स्रद्धा अपने अपनी आसना जरूर जाता है और हर साल जाता है बंदा
33:14हर साल सावन के महिने में जव शिव भक गंगा के पावन तट से जल लेकर भगवान शिव के चर्णों तक पहुँचते हैं
33:30तो वो सिर्फ परंपरा नहीं निभाते वो निभाते हैं एक मर्यादा एक संकल्प और एक तब लेकिन इस यात्रा का अपना एक धर्म है अपने नियम है जो ना सिर्फ शरीर को बलकि आत्मा को भी शुद्ध करते हैं
33:44यानि कोई भी जब हम अनुष्ठान करते हैं कोई भी पूजा पात धार में कृत्य करते हैं तो उसका एक रूप बन जाता है कि उसको कैसे करना चाहिए मूल रूप से उसमें सात्रिक आहार बिहार और व्यवहार इसकी प्रार्थमिक्ता देनी चाहिए
34:03कावड यात्रा के नियम इस आस्था की यात्रा को और भी पवित्र और अनुषासित बनाते हैं
34:33कावड यात्रा के दोरान कावडियों को शुद्धता और पवित्रता का पालन करना होता है
34:42कावड यात्रा के समय प्यास, लहसन, मांस, शराब, पान, गुटका, तंबाकू, सिगरेट का सेवन नहीं करना होता है
34:51कावड यात्रा के दौरान कावड ये नंगे पैर यात्रा करते हैं
34:56यात्रा के दौरान कावड को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए
35:00कावड को हमेशा कंधे या स्टेंड पर ही रखा जाता है
35:04एक बार कावड उठाने के बाद उसे रास्ते में कहीं भी जमीन पर नहीं रखा जाता है
35:09ऐसा करने पर कावड यात्रा अधूरी मानी जाती है
35:13कावड यात्रा के बीच आप लगुशंका या शौच करते हैं तो गंगा जल से स्वेंग को पवित्र करना होता है
35:20अगर कावड उठाने वाले व्यक्तिका स्वास्ते बीच में खराब हो जाए तो कोई और भी उसकी जगद कावड उठा सकता है
35:27जब यात्रा प्रारम होती है जहां से हम इस जल को लेते हैं
35:32वहां से लेने के बाद अगर पूरा का पूरा प्रयास यह होना चाहिए
35:36कि बिना लग संक्या और सौच किये हुए बिना इस कावड को जमीन पर रखे हुए
35:41अपने गंतब्य तक पहुच जाए और शिव के उपर इस जल को चला दे यह उत्तम प्रकार का माना जाता है
35:48लेकिन अगर लंबी यात्रा हम करते हैं तो इसलिए अहार बिहार पर नियंतन करते हैं कि अधिक जल पिएंगे तो बार बार लोग संका को जाएंगी तो कावड रखना पड़ सकता है तो इसके लिए हम लोग जल इत्यादी कम लेते हैं बार बार नहीं लेते हैं अधिक बो
36:18करके अश्नान करके उसको ले करके आगे बढ़ना चाहिए।
36:21पुरुष हो या महिलाएं सब के लिए सारे नियम समान होते हैं।
36:27आज के दौर में पांच तरह के कावड़िये होते हैं और ये सब ये सारे नियमों का पालन करते हैं।
36:33साधरन कावड इस यात्रा को हर कोई कर सकता है। इस यात्रा में कोई तैस समय सीमा नहीं होती।
36:47डाक कावड को 24 घंटे में जलर पड़ करना होता है। डाक कावड सुल्तान गण देवखर रूट में ज्यादा नजर आते हैं।
36:58खड़ी कावड भक्त कावड को दिन भर कंधे पर ही रखते हैं। ये सबसे कठिन कावड यात्रा मानी जाती है।
37:08बैठी या बैकुंठी कावड
37:11इस यात्रा में कावडियों को थोड़ी राहत मिलती है
37:15यात्रा के समय कावड को किसी स्टेंड या गद्धी पर रख सकते हैं
37:20शिंगार कावड
37:22अब शद्धा के स्ताथ शो भी जुड़ गया है
37:28दीजे, लाइट्स और विशाल सजावड वाली कावड चलन में हैं
37:33इसमें भगवान शिंग्प की जहाक्या निकाल कर कावड यात्रा निकालते हैं
37:37महादेब को गीत भी बहुत प्री है
37:41गीतंचंद्रित्यम तथा महादेब को नृत्र भी बहुत प्री है
37:45कावड यात्रा में सिर्फ शरीर नहीं चलता है मन आत्मा और चलता है एक संकल्प
38:12हर नियम, हर अनुशासन इस यात्रा को तब की तरह बनाता है
38:16जहां शद्धा है वहां मर्यादा भी होनी चाहिए
38:20और जहां शिव है वहां सैयम, सेवा और भक्ति का त्रिवेणी संगम
38:25यही है कावड यात्रा की असली पहचान
38:29एक अनुशासित, पवित्र और आत्मिक यात्रा
Recommended
21:58