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  • 01/07/2025

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Transcript
00:00भारत एक देश जो कभी सोने की चिडिया था आज धुआ निगल रहा है और सन्नाटा उगल रहा है जहां गंगा कभी जीवन देती थी वहीं अब वह प्लास्टिक और सहर से कराह रही है
00:15जहां खेत लहराते थे वहां अब किसान कर्ज में डूब कर जान दे रहा है शहरों की चमक के पीछे छिपा है गामों का अंधेरा जहां आज भी शिक्षा एक सपना है और इलाज एक लक्जरी
00:29आवाजें उठती हैं लेकिन दबा दी जाती हैं महिलाएं डर के साए में जी रही हैं और युवा बेरोजगारी के बोज से टूट रहे हैं लेकिन क्या यही अंध है नहीं समस्याएं बड़ी हैं और हमारी ताकत इन से भी ज्यादा
00:50अब समय है सोशल मीडिया से बाहर निकल कर जमीन पर साथ खड़े होने का डर नहीं सवाल जरूरी है सिस्टम को जवाब देह बनाने का समय है सिर्फ उपयोग नहीं प्रकृति की रक्षा अब हमारी जिम्मेदारी है और सबसे जरूरी अपने भीतर के भारत को फिर से जगा
01:20अगरिक अपना फर्ज नहीं निभाएगा ये आत्मा अधूरी रहेगी बदलाव हमसे शुरू होना चाहिए अभी

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