00:57ुद्धान तभी होता है जब भेदान्त हो। भेदान्त का ही रूप भेदान्त यानि वेदान्त की परिणती क्या है कि हम अपना प्राया, उंचा, नीचा, छोटा, बड़ा इस सब भेद बुद्धी से अट जाएं।
01:14सब में इश्वर के दर्शन करें। सुनी चैव स्वपाकेच पंडितव समदर्शिना। जो हर प्राणी में भगवान का दर्शन करें। यही हमारी शास्त्री परमपरा हमको सिखाती है।
01:28इसलिए हिंसा का हमारे शास्त्रों में कोई स्थान नहीं है।
01:58धीर विद्या सत्यम मक्रोदो दसकम धर्म लक्षनम। यह दस लक्षन धर्म के है।
02:18इसलिए पड़े लिखे समाज में हिंसा का कोई स्थान नहीं होता।
02:25हिंसा तीन तरह की हैं।
02:28शारिरिक हिंसा, वाचिक हिंसा और मानसिक हिंसा।
02:32ुपदेश है
03:02इसलिए जब इस उपदेश को लेकर के हम चलते हैं तो एक समरस समाज की कलपना हम करते हैं और एक समरस समाज जब होता है तभी किसी समाज का विकास होता है अन्यथा हम सक्ति का प्षरण करते हैं आपसी कलाकलेश में जिस व्यक्ति का जो सामर्थ है जिस व्यक्ति की जो अभ
03:32He is the one who knows each other's head.
03:37So, in this case, we are in our own environment
03:42in our own behavior.
03:45It is not the same behavior.
03:48We are in our own behavior.
03:53ko narayan ke rup meh da cha gaya
03:55kye har insan ke
03:58bheater vohi narayan
04:00hai
04:00isa vaasch midham sarvam yet kinch
04:03ja team jagat ia sa vaaschyopanishat
04:05kaya dvitiya mantra
04:07yye kahta hai ki dunya ke
04:09kandkaand meh is sansar
04:11ke kaanda-kaanda meh iswar viyad
04:13ab agar kaanda-kaand meh iswar
04:15viyad ta hai
04:16aeishe meh agar hama
04:18aap se bhed buddhhi
04:20ke adhar par ghaina kagen
04:22So I mean that this is being
04:47I am not doing it. I am not doing it. I am doing it.
04:55So, I am doing it.
05:00I am doing it.
05:06ुस कर्ण में भी है जब इस भाव को देखेंगे तब हम अद्वईत जो आदि संक्राचारे ने हमको उपदेश दिया था उस सिध्धान्त को अपने भीतर आत्म साक्षात कार करके उसका अनुपालन करने के लिए समर्थ होगे
05:22कोई भी कर सकता है बस उसकी मर्यादा का सुचिता का अनुपालन करे कोई भी कर सकता है पवित्र रहना सुध रहना ये सब का अधिकार है और सुधता स्वच्छता ये जहां रहेगी वहां इश्वर रहेंगे