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  • 5/14/2025

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00:00कि आशी जी है वह पूछ रहे हैं कि अचारे जी आप कहते हैं कि समयाज तो सहज हो जाता है लेकिन आत्मग्या निकठा करने में और निश्कामना को समझने दिए तोकरे में घड़े में संदूक में कहां रखोगे बताओ
00:30लेके आईए ने जिनका प्रिश्चन था
00:35बड़ा सा मनरंजन का मेरा भी अधिकार है
00:40लेके आईए लेके आईए
00:42आधी स्क्रीन पर ही सही लेके आईए
00:45यानि कठा करना है क्या
00:49एक काम करो जब काफी कठा हो जाए तो इसकी FD बना देना
00:55तो वो फिर
00:59शे आठ प्रतिशत से बढ़ेगा भी
01:01उसको बोलेंगे ज्यान वर्धन
01:05अचरा जी बस एक प्रिट में आश्री शी को सामने बिकर हो
01:25वो फट्सा और रहे होंगे
01:27जो हमारी
01:33संस्कृत में कुछ बड़े जबरदस्त शब्द है ना
01:40जब क्रिश्न की दृष्टी से देखिए तो वो अर्थहीन हो जाते हैं
01:47जैसे संकल्प शक्ति
01:50जब भीतर से कामना उमण रही होती है कि पकड़े रहो पकड़े रहो पकड़े रहो
02:00पर दबाव वश मर्यादा वश कहते हो छोड़ना है छोड़ना है तो फिर चाहिए होती है संकल्प शक्ति
02:14विल पावर
02:29जहां से क्रिश्ण बात कर रहे हो कह रहे हैं भिलकुल बेकार की चीज़ है ये
02:35संकल्प शक्ति अक्दम नहीं चाहिए होती बात अगर समझ में आ गई
02:43तो नींद चुपचाप विदा हो जाएगी,
02:48जोर नहीं लगाना पड़ेगा,
02:51चली जाएगी,
02:55जिस चीज को छुड़ने में अभी जोर लगाना पड़ा रहा है,
02:59वो चीज छूटेगी ही नहीं,
03:01स्थूल रूप से छोड़ भी दोगे तो,
03:03यहाँ बैठी रहेगी,
03:06और कोई भी चीज वहाँ है या नहीं,
03:08इससे तो फर्क पड़ता भी नहीं है न,
03:12फर्क तो इसी से है कि यहाँ है कि नहीं,
03:14अगर जोर लगा रहे हो,
03:16तो यहाँ से नहीं निकाल पाऊगे,
03:17जोर लगागे बस वहाँ से निकाल सकते हो,
03:19वही जैसे अपना पहाड़ी काता है
03:26जुदा हो के भी तू मुझे में कहीं बाकी है
03:31इसका क्या मतलब है
03:33मतलब बताओ इसका
03:36मतलब यही है
03:38कि सामने नहीं है पर
03:40खोपड़े में है
03:41यह जितने इस तरह के जलील गाने होते है
03:47उनमें सबमें आत्मग्यान की संभावना है
03:51ध्यान से सुना करो
03:52कुछ बहुत बढ़ियां बाद पता चलेगी अपने बारे में
03:55मेरी तो सारी शिक्षा आती ही इसी चीज़ से
04:02जलील लोगों के साथ रहना
04:05जलील काम करना
04:07जलील गाने सुनना
04:10और मैं कहां से
04:13ये ग्यान इकठा करता हूँ आगए
04:16क्या इकठा कर रहा हूँ बंदू
04:22आओ
04:23अब पहले थोड़ा वजा निकठा करो
04:34जाओ तो मुझसे ले लो
04:41मेरे पास ज्यादा है
04:43जी
04:49मैं कहा हूँ था
04:52मतलब नहीं तो रखता है
04:54जिसे किताब है पढ़नी पढ़ती है
04:56आत्मा बलुकन करना पढ़ता है
04:58और चीजों अब्जर्ब
05:00इंट्रोस्पेक्ट करना पढ़ता है
05:02जिसे आपसे भी सीख
05:03ये पढ़ता है
05:05करना पढ़ता है
05:06होता है
05:07ये मजबूरी की भाषा के लिए
05:10कृष्ण के पास कोई इज़त नहीं है
05:13मैं क्या करूँ
05:18दिबरदस्ती प्यार करना पढ़ता है
05:24इनके लिए कुछ नहीं है
05:28अपे
05:47दिबरदस्तितफिया में
05:48अशली घटना नहीं घटती
05:52ये लगबग ऐसी सी बात है
05:54कि एकस एकसेस पर बहुत
05:56शरम लगा लिया
05:58तो y पर थोड़ी पहुँच जाओगे, xy plane में शरम लगा लगा के, लगा लगा के, जो करना है कर लो, तो z पर थोड़ी चढ़ जाओगे,
06:12शरम को आप अक्सर आत्म ज्यान का विकल्प बनाते हो, शरम अगर करना भी है, तो उसके विरुद्ध करो जो तुम्हें जानने से रोकता है,
06:33आप शरम को गलत जगह लगा रहे हो, आप शरम लगा रहे हो बिना जाने काम करने में, उसमें भी शरम लगेगा,
06:43समझा कुछ नहीं है
06:45पर कर देना चाहते हैं
06:49उसमें श्रम लगेगा और आप वो श्रम करते रहते हो
06:51श्रम कहां लगाना है
06:55भीतर कोई बैठा है जो जानने के खिलाफ हतियार बंद है
07:00उससे लड़ने में श्रम लगाना है
07:03जो पूरी श्रमण परंपरा ही रही है वो यही है
07:12जो बाहर-बाहर श्रम करे
07:18वो संसारी है
07:22जो न बाहर श्रम करे न भीतर श्रम करे
07:29बस बैठ करके ताली पीटे और कहे कि भगवान आएंगे और कल्यान कर देंगे
07:37उनको कहा गया कि ये ब्रह्मन परमपरा के है
07:40कर्म कांडी
07:46कि बैठ करके ये अनुष्ठान कर दिया ऐसा कर दिया वैसा कर दिया और सोचा कि
07:51अब फलाने देवी देवता आएंगे और हमारा उद्धार कर देंगे
07:55ये ब्रह्मन परंपरा थी
07:56और फिर
08:03श्रमन
08:06तो करनी पड़ेगी
08:10पर वैसी महनत नहीं जैसी संसारी करता है
08:13एक महनत कौन करता है
08:17संसारी
08:18वो जिंदगी भर महनत करता है
08:20कहां पर
08:21वो हल चलाता है
08:24वो वजन उठाता है
08:28वो पत्थर तोड़ता है
08:31आम संसारी को
08:32कितनी महनत हर समय कर रहा होता है
08:34अगर
08:39Sudden Enlightenment चाहिए
08:41तो सुबह
08:43आठ नो बजे
08:45मैं अक्सर कहता हूँ क्योंकि
08:47मुझे तो बड़ा लाब हुआ था
08:49सुबह आठ नो बजे
08:50किसी
08:53चौराहे के पास खड़े हो जाओ
08:55अब देखो कि
09:00आम आदमी कितनी
09:01तो महनत करता है
09:02एक घंटा तो सिर्फ उसे
09:05अपने आफिस पहुँचने में लगता है
09:07और वो सड़क पर सिर्फ तब होता है
09:09जब पीक ट्रैफिक होता है
09:11सड़क खाली भी होती है
09:13पर जब सड़क खाली होती है
09:14तो उसकी मजबूरी है कि उसे सोना पड़ता है
09:16उस सड़क पर सिर्फ तब होता है
09:20जब सड़क पर मैक्सिमम
09:21अधिक्तम ट्रैफिक होता है
09:23और फिर जाकर के
09:25शाम को 7-8 उजए वाँ खड़े हो जाओ
09:27जब वही व्यक्ति लौट रहा होता है
09:28तब उसका मुह देखो
09:29तो संसारी बड़ी महनत करता है
09:34और जो कर्मकांडी हो कहता है
09:38कोई महनत की ज़रूरत ही नहीं है
09:40मैं क्या करूँगा
09:41मैं कुछ कर्मकांड करूँगा
09:45मेरे सब कुछ हो जाएगा
09:46और फिर इन दोनों से उपर है
09:49जो श्रमन है
09:49वो कहता है महनत तो करनी है
09:52ब्रहमन नहीं ब्रहमन
09:57महनत तो करनी है
10:00ब्रहमन नहीं हूँ मैं
10:02लेकिन महनत करनी है
10:05इसका मतलब यह नहीं कि संसारी हूँ मैं
10:07संसारी महनत करता है
10:09उधर उधर
10:10मैं महनत करूँगा इधर
10:13मेरे भीतर कोई है
10:15जो जानने के विरोध में खड़ा है
10:18क्योंकि उसको पता है
10:20कि अगर जानेगा तो मानेता हैं टूटेंगी
10:22बहुत कुछ छूटेगा
10:25मुझे श्रम उसके खिलाफ करना है
10:28उसके खिलाफ श्रम करने की प्रक्रिया में
10:30अगर बहार श्रम करना पड़ा
10:32तो सहज है वो कोई बड़ी बात नहीं
10:34लेकिन पता कुछ नहीं है
10:40और महनत कर रहे हो बहार तो बस संसारी हो
10:43भले यह कहकर करो बहार महनत की
10:46मैं तो आध्यात्मिक आद्मी हूँ इसलिए बाहर महनत कर रहा हूँ
10:49लेकिन वो काम संसारी हो काई है
10:53संसारी माने जो गधे की तरह महनत करता है
10:55बिना कुछ जाने समझे
10:56जिंदगी भर वो बस भावर
10:58समझे कुछ नहीं आरा लगा हुआ है
11:01पूछो क्यों लगे हो कुछ नहीं पता उसको
11:03बाहर के श्रम
11:16की मना ही नहीं करी जा रही है
11:19ठीक वैसे जैसे हमने कहा था कि सन्यास हो जाता है
11:22वैसे भाहर का श्रम हो जाता है
11:25असली चीज है भीतर का श्रम
11:28भीतर का श्रम करने की प्रक्रिया में
11:33बाहर भी श्रम यदि आवश्यक हो तो हो जाता है
11:36और आवश्यक ना हो तो करने कोई ज़रूरत भी नहीं है
11:39कोई ये जिम्मेदारी अनिवार्यता लेकर थोड़ी पैदा हुए हो
11:49कि बाहर पत्थर तोड़ने ही तोड़ने
11:51बिलकुल हो सकता है कि आवश्यक्ता नहीं है तो हफ़ते हफ़ते पर चुप चाप एक ही जगह बैठे हैं कुछ नहीं कर रहे हैं
12:02और उसमें कोई अपमान की बात नहीं हो गई
12:07नमस्ते आचाय जी आज के सत्र में दो लाइन्स थी मुझे समझ में नहीं आई तो
12:15आपने कहाते बहविष्य माने समय के मन जो मन को पढ़ लेता है वो भविष्य देख लेता है
12:23समय माने मन परका समझा नहीं हो जो sa Kathy एक सिढ़ान थे यह इंगित करने के लिए कि कुछ बदल गया
12:43कुछ बदल गया,
12:45बदलाओं की दर
12:46को नापने वाला सिधान्त समय कहलाता है,
12:50हम बहुत तरीकों से बोल सकते हैं,
12:52पर अभी एक सरल तरीके से कहे,
12:54एक चीज थी, दूसरी चीज में
12:58परिवर्टेथ हुई,
13:00इस परिवर्तन को नापने की
13:01इकाई समय है,
13:03ले दे के समय माने परियोरतन
13:05मन में कुछ भी कभी
13:07स्थिर रहता है क्या
13:08तो मन माने वो जो लगातार
13:11परियोरतन शील है
13:12इस अर्थ में कहते हैं कि
13:15जेती मन की कल्पना काल कहावे
13:17सोए
13:17कि मन में
13:21जो भी कल्पित विशय
13:23मौजूद है वही काल है
13:25मन ही समय है
13:27मन ही समय है
13:30तो समय का कोई
13:31objective वस्तुगत अस्तित तो नहीं होता है
13:35हम जिस समय में जीते हैं
13:42जो हमारा subjective time है
13:43वो सीधे सीधे हम पराश्रित होता है
13:46दूसरी चीज़ आपने कहीं कि जो मन को देख लेगा
13:50फिर भविश्य को कैसे देख लेगा
13:51क्योंकि मन न सिर्फ गति कर रहा होता है
13:56बलकि बहुत बंथी बंधाई
14:00पूर निर्धारित स्क्रिप्टेड गति कर रहा होता है
14:03वहाँ सब कुछ बदल तो रहा है
14:06पर ठीक उसी तरीके से बदल रहा है
14:09उसी प्रक्रिया से बदल रहा है
14:10जिस तरह से एक लाग साल पहले बदला था
14:12वहाँ पे उपरी कुछ भेद हो सकते हैं
14:20नाम बदल गया, रूपरंग बदल गया, आकार बदल गया
14:22पर परिवर्तन के मूल में जो सिध्धान्त है वो नहीं बदलता
14:26तो इसी लिए जो ग्यानी होता है
14:31वो किसी को देख करके उसका भविष्य उस हद तक बता सकता है
14:36जिस हद तक सामने वाला भविष्य में बदलने को तयार ना हो
14:41ले देकर बात बस इतनी सी है कि अगर आप होश में नहीं हो
14:48तो आप जैसे आज हो भविष्य में वैसे ही रहने वाले हो
14:52तो आपका आज देख करके आपके भविष्य का अच्छा अनुमान लगाया जा सकता है
14:59हाँ भविष्य में ऐसा नहीं कि बिल्कुल अभी जो चल रहा है
15:05वही भविष्य में रिप्ले हो जाएगा
15:08उपरी चीज़े बदलेंगी जैसा भी खा न भई आपकी शकल बदल जाएगी दस साल बाद
15:14लेकिन लालच नहीं बदलेगा
15:17तो कहानी वही रहेगी थीम वही रहेगी
15:22मंच बदल जाएगे किरदार बदल जाएगे
15:25और पूरे प्रसंग का पूरे नाटक का भाव वही रहेगा
15:33कुछ इसमें नया नहीं होने वाला
15:36इस अर्थ में ने कहा
15:38भविष्य ये आशा देता है कि वहां कुछ नया होगा
15:45तभी तो हम भविष्य से इतना चिपकते हैं न
15:49कुछ नया हो जाएगा
15:50अनूठा मिलेगा जो आज तक नहीं मिला है
15:55लेकिन भविष्य में कुछ नया नहीं होता है
15:58भविष्य सिर्फ अतीत का दोहराव होता है
16:01नए भविष्य का निर्मान
16:08ये एकदम मुर्खता पूर्ण बात है
16:11भविष्य से मुक्त हुआ जाता है
16:18नए भविष्य का निर्मान नहीं करा जाता
16:21ऐसा नहीं है कि दो तरह के लोग होते है
16:26एक जिनका पुराना भविष्य है
16:28और एक जिनका नया भविष्य है
16:30दो तरह के लोग होते है
16:34एक जो भविष्य की गिरफ्त में है
16:36और दूसरे जो भविष्य से मुक्त है
16:38दो तरह के लोग यह नहीं होते कि
16:44good future, bad future
16:45old future, new future
16:47दो तरह के लोग कौन से होते हैं
16:51future centric
16:54and free of future

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