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00:00रिशियों की कथाएं हैं इन ही मुनिक भरत की कि इतने सीधे थे कि ऐसे ही चले जा रहे थे इतने सरल इतने सामान ने कि राजा ने का आजा बिटा मेरा सेवक बन जा राजा जहां ही रहते थे वहीं से राजा किपाल की कारवा कुछ गुजर रहा होगा तो राजा ने का ये आ
00:30नहीं था तो राजा ने का आजाओ चलो सिवा लगो जिब सिवा में लगे तो ऐसी बात्चीत निकल पड़ी राजन यदि हम स्वयम को समझने की कोशिश करें तो जीवन के सभी प्रश्न धीरे-धीरे स्वयम ही सुलग जाते हैं उसमें इन्होंने राजा गुजग्यान दे द
01:00सड़क कहां है सड़क पर चलने वाला कहां है सब एक हो जाता है कि जैसे मिट्टी मिट्टी पर चल रही हो अध्यात्म का मतलब है सारी खासियत हटा दी अब तो ऐसा हुई रहा पाउं तले की घास दास दास सब कहें मैं दासन का दास