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00:00तो मेरे जीवन में भी बहुत सारे ऐसे विशय है और वो देखने को भी मिलते हैं मुझे
00:04और मैं डरी हुई भी रहते हूँ लेकिन जब मैं उनसे बाहर निकलने की कोशिश करती हूँ तो मैं और फस्ती जाती हूँ
00:12आस्तिक की अपनी मान्यता अपना अंधविश्वास और नास्तिक का अपना अंधविश्वास अंधविश्वासी दोनों बराबर के हैं
00:19कुछ चमतकारिक नहीं हो गया, जिंदगी सब की एक सी है, देह सब की एक सी है, किसी प्रत्वी पर सब जी रहे हैं, तो जो दुखसोख सयोग सब जहलते हैं, हम भी जहल रहे हैं।
00:31कोई इस बात से घखरता हो, कि कहीं सक्चाई से दूर ना हो जाओं, कहीं जूट और फरेब को गली लगा कर न जीना पड़े, पर हम इस पर नहीं घखरते हैं, हम घखरते हैं कि कहीं कोई चीज, अधारन चीज न छिन जाए, उसका हमको डर होता है, जिन चीजों को आज मान र
01:01प्रडाम आचारा जी, आचारा जी मुझे बच्पन से ही डर की समस्या है, मैं कॉलेज में भी बहुत डरा रहता था, हर छोटी मोटी बात फे डर जाता था, अभी फिलाल एक साल पहले ही मैंने जॉब करना सुरू किया है, और वहां पर भी जब मुझे अपने बॉस या सीनिय
01:31आप से बहुत विस्तार में जानना है क्योंकि मैं बहुत परिसान हूँ, और मैंने इसको दूर करने के लिए बहुत सारे उबाय भी किये हैं, बहुत सारे सेल्फ-एल्फ किताबे पढ़ी हैं, लेकिन उनसे कुछ लाव मुझे मिला नहीं, कृपया आप मुझे विस्तार से
02:01बहुत बुद्धी रखने वालों को भी जिन व्यर्थ और नाशकारी रास्तों पर ठकेल देता है डर, यह जिन्होंने जीवन को देखा, ने साफ देखा,
02:26जेतना का जैसे प्लेग है डर, यह और कोई बड़ी बिमारी, कैंसर, और डर राकृतिक नहीं होता है,
02:56जो कुछ प्राकृतिक है, उससे मुक्ति नहीं हो सकती,
03:09जो जीवन मुक्त भी हो गए, वो रहे तो देह धारी ही, देह प्राकृतिक है, उससे छूट कर कहा जाओ गए,
03:18बहुत ग्यानी हो जाओ, आत्मस्त जीवो, तो भी सांस तो चलती रहेगी,
03:31बोलोगे तो इसी मुह से, प्राकृतिक यदि होता डर तो दुरनेवार होता, डर प्राकृतिक नहीं होता है,
03:41प्राकृतिक से नीचे का होता है डर, डर प्रातिभासिक होता है,
04:11माने कालपनिक है डर, इस अर्थ में कालपनिक है, जोटे ग्यान से, माननेता से उठता है डर,
04:26जहां माननेता है, वहाँ डर होगा ही होगा, और डर हम कह रहे हैं कि चेतना को पिलकुल संकुचित कर देता है,
04:33चेतना का रस ने चोड़ लेता है, जीवन यदि अभिव्यक्ति के लिए है, तो डर अभिव्यक्ति को एकदम कुनफित कर देता है,
04:50मुक्ति यदि सत्य की तरफ चलने में है, तो डर सत्य के मार्ग को बाधित कर देता है,
04:56इसलिए हमने कहा चितना की सबसे बड़ी बीमारी है डर
05:03पुटी मुटी समस्या नहीं है डर
05:08केंद्री ये है
05:11सिम्टा
05:13सकुचा हुआ जीवन
05:17ये डर का उत्पाद होता है
05:26एक तर अमने कहा
05:30केंद्री ये बीमारी है डर
05:32दूसरे हम कहा रहे है कि डर का
05:34संबन्ध माननेता से है
05:35यव आप माननेता रख लेते हो
05:40तो उसका कोई सीधा असर तत्काल तो अनुभव होता
05:48नहीं
05:48बहुत पार हमने कहा है कि मूल बीमारी अज्ञान है
05:56वो बिल्कुल ठीक है और आज हम कह रहे हैं कि केंद्रिय समस्य है भय है डर दोनों बाते अपनी जगह सही है
06:07यह हंकार की मन हमारी मूल बिमारी अग्यान है यह बात भी सही है
06:15और ग्रंथ हमें डर से मुक्ति दिलाना चाहते हैं यह बात भी सही है दोनों बाते सही है पर दोनों में से ज्यादा उपयोगी बात डर की है
06:28कारण सीधा है मान्यता आप रखे बैठे रहो आपको उसमें कोई बुराई अनुभवी नहीं होगी
06:35जब तक कि उस मान्यता के कारण आपको दस तरह के संकुचन और डर और सीमाएं न जहिलनी पड़े
06:50तब लगता है कि इससे कुछ नुक्सान होगा अन्यता मान्यता तो अपने आप में क्या है कुछ नहीं
06:57एक बात है एक विचार है जिसको आपने सुयमि सत्ते घोशित कर दिया
07:04यही तो है मान्यता क्या नुक्सान हो गया
07:10मैं मानता हूँ आकाश नहीं है एक तंबू है जिस पर दून के समय नीले रंग की रौष्णी पीछे से फिंकी जाती है
07:21रात के समय काले रंकी
07:22मानते रहो कोई कोई नुकसान हुआ
07:25ऐसी
07:27तो लगता ही नहीं कि इसमें कुछ नुकसान हो गया
07:29पर इस मानने ता कि
07:32वजह से अब जो कुछ
07:34होगा वो अनुभाव
07:36में आएगा कि नुकसान हुआ है
07:37तो इसलिए
07:39डर
07:41ज्यादा
07:43प्रामानिक बीमारी है
07:45और उधारन दिये देता हूँ
07:51आप किसी से जाकर कहें कि मैं तुम्हारी माननेता
07:54दूर करना चाहता हूँ
07:55वो आप से लड़ जाएगा
07:56आप किसी से कहें मैं तुम्हारा डर दूर करना
08:00चाहता हूँ वो आपके गले लग जाएगा
08:02जबकि दोनों एक ही बात कही है आपने
08:05क्योंकि माननेता ही डर बनती है
08:07लेकिन माननेता कोई नहीं छोड़ेगा
08:10क्योंकि उससे कोई नुकसान पता नहीं चलता
08:12आप उसे पकड़े बैठे रहे हो तो पहचान बन जाती है
08:15मैं फलानी बाते मानता हूँ
08:17तो पहचान बन जाती है
08:18तो आप किसी से कहें मैं तेरी माननेता हटा रहा हूँ
08:21वो कहेगा जी हाँ
08:24जान दे देंगे माननेता नहीं छोड़ेंगे
08:28पर आप उसी से कहें
08:30अप वो माननेता ग्रस्त है तो भैग रस्त भी होगा
08:32उसी से आप कहें मैं तुम्हारा डर हटा रहा हूँ
08:35तो वो तुरंत राजी हो जाएगा धन्यवाद देगा
08:39ज्यादा उपयोगी हो जाता है जब बोलते हैं कि हम तुमको डर से मुक्ति दिलाएंगे
08:49त्योंकि मानेता का नकारातमक प्रभाव पता नहीं चलता और डर का प्रभाव अनुभव में आ जाता है
09:05अब यह अलग बात है कि आप डर से बात शुरू करोगे तो डर के मूल में जाओगे तो मानेता मिलेगी
09:11और आप माननेता से बात शुरू करोगे तो थोड़ी आगे बढ़ाओगे तो डर मिलेगा, वो एक ही बात, तेकिन डर जादा हमने का उपी होगी, अच्छा, तो डर कहां से आता है, उसी को आज संबोधित किया जा रहा है, डर कहां से आता है,
09:26हम सब कुछ न कुछ ऐसा लेकर बैठे हैं, जो हमें लगता है कि बहुत बहुत जरूरी है हमारे लिए, जिसके विना हमारी हस्ती ही धराशाई हो जाएगी,
09:44हमसे कहा जा रहा है, ऐसा नहीं होगा, तुम कैसी उल्टी बात सोच रहे हो,
09:58हस्ती धराशाई किसी के होती भी है, तो तब जब वो सच का आधार खो देता है,
10:08सच वो बुनियाद है जिस पर आपकी हस्ती खड़ी होती है, तो हस्ती अगर गिरती भी है,
10:14कि जिन्दगी बरबाद हो गई, सब बिखर गया हो, तब होता है, जब सच नहीं रहता,
10:19और आप ऐसी चीज़ को, उल्टी बात देखो, आप ऐसी चीज़ को अपनी हस्ती मान रहे हो, जो सच के रास्ते में बाधा है,
10:27कोई इस बात से घबराता हो, कि कहीं सच्चाई से दूर ना हो जाओं, कहीं जूट और फरेब को गली लगा कर न जीना पड़े,
10:40तो एक बार को फिर भी समझ में आए,
10:44कि सच ही तो है, जो हमें जिन्दा रखता है, ताकत देता है, सब कुछ उसी से है,
10:51और इस्तितियां ऐसी बन रही हैं, कि जूट को सुईकार करना पड़ सकता है,
10:55छल में जीना पड़ सकता है, कपट में जीना पड़ सकता है,
11:02तो ये बात घबराने की लगती है
11:04कि ऐसे करेंगे तो सच से दूर हो जाएंगे
11:06कोई इस पर घबराए तो एक बात है
11:07पर हम इस पर नहीं घबराते हैं
11:10हम घबराते हैं कि कहीं कोई चीज
11:14साधारन चीज न छिन जाए
11:17उसका हमको डर होता है
11:19और ये जिसका आपको डर है
11:23ये तो सच के रास्ते में रोडा है
11:30जिस चीज से घबराना चाहिए
11:33आप उसकी बिल्कुल उल्टी चीज से घबरा रहे हैं
11:40घबराना चाहिए राम को खूने से आप घबरा रहे हो काम को खूने से
11:45काम को खोने में नुकसान क्या है
11:52यदिराम यथावत है
11:56और कई बार तो काम को खोना आवश्यक होता है राम को अपने बचाने के लिए
12:01अपने राम को बचाने के
12:04राम मनें यहां सत्य की बात कर रहा है
12:08अपनी सच्चाई को बचाने के लिए कई बार अपनी कामना छोड़ोनी ज़रूरी होती है या तो कामना पगड़ो नहीं तो जूटा बनना पड़ेगा मकारी में जीना पड़ेगा बंधन स्विकारने पड़ेंगे
12:21तर जुखाना पड़ेगा
12:23हम दिखिए क्या कर रहे हैं हम फिर बंधनों से नहीं घबरा रहे हैं मुक्ति से घबरा रहे हैं
12:37डर हमारा ये है कि कहीं बंधन न छूट जाए डर हमारा ये नहीं है कि कहीं बंधन में फसन जाऊं
12:47हुमारा डर ये रहता है कहीं बंधन न छूड़े
12:50आप किसी आदमी को पकड़ लीजिए
12:52कोई ऐसा नहीं मिलेगा जो डरा हुआ है
12:55और उसके डर में
13:00डर की जड़ में
13:03बंधनों के प्रते
13:05उसका लगाव नहीं है
13:08बंधनों के लिए उसका अग्रह नहीं है
13:11जो भी आदमी डरा हुआ है
13:13वो इसलिए नहीं डरा हुआ है
13:15कि उसकी कोई बहुत अच्छी सुन्दर
13:17कीमती सच्ची चीज खो जाएगी
13:19तो डर लग रहा है
13:20ऐसा डर तो शायद वाजिब भी होता
13:23चीज इतनी प्यारी है
13:26सच्ची है कि खो जाए तो
13:27नुकसान हो जाएगा तो हम डर रहे है
13:29समझ में आता डरते
13:30ऐसे डर की तो
13:33संतों ने अनुशन सा भी करी है
13:35कि हाँ डर के रहो निर्भय होए न कोई
13:37इस बात पर डर के रहो
13:39कि कहीं जिंदगी से
13:41सच्चाई न विदा हो जाए
13:42इसका तो डर अच्छा है
13:44पर आप मिलेंगे लोगों से
13:45कोई इस बात के लिए नहीं डरा हुआ है
13:47कि कहीं जिंदगी से सच्चाई न छिंजाए
13:49लोग डरे हुए है कहीं जिंदगी से बंधन न छिंजाए
13:52एक तो डरना
13:57फिजूल
13:58और उपर से हम डर किस बात के लिए रहे हैं
14:01कि कहीं जिन्दगी से हमारी कच्रा न साफ हो जाए बड़ा डर लगता है बड़ा डर लगता है
14:08कहीं जिन्दगी से कच्रा न साफ हो जाए
14:12जब आपने जीवन किसी गलत आधार पर खड़ा करा होता है न
14:19तब ही बहुत जरूरी हो जाता है किसी विश्य को बहुत महत्तो देना
14:29नहीं तो आधार ही काफी होता है दिल भर देने को
14:39जिन्दगी है जिन्दगी है न ऐते समझोई कि मारत है तो एक बुनियात पर खड़ी है
14:46बुनियात अगर मजबूत हो तो इमारत को कितने सहारों की जरूरत है
14:53सहारों को समझो विश्य है दुनिया के विश्य है खपच्चिया जो ऐसे ऐसे लाके लगाई आती है
15:06कुछ सहारा देने के लिए वो विशे हो गए ठीक है
15:08अगर बुनियाद ही मजबूत है
15:12तो इमारत विशे
15:14मांगेगी ही नहीं कि मांगेगी
15:15मांगेगी
15:17पर अगर
15:21बुनियाद कमजोर है तो इमारत क्या कहेगी
15:24फलानी चीज यहां से लाके मुझे में जोड़ दो
15:36लगते हो , तो बाहर से तम varit की बड़ी कामना रहेगी कामना किसी है ?
15:48कि बुनियाद ही कम्जोर है
15:51बुनियाद कम्जोर है
15:53और बुनियाद कम्जोर है तो आप उमारत ने कितने भी टरीकों से बाहर और कुछ एक लगा दो
15:59इतना खीच लोगे तुम उसको ये है कामना की प्रक्रते बाहरी चीज़ें जितनी अनिवार्य लगनी लग जाएं अनिवार्य उतना समझ लीजिए कि बुनियाद में खोट है
16:23दुनिया से कुछ ग्रहन करना जितना अनिवार्य लगना लग जाए कि ये चीज़ तो जिन्दगी में चाहिए ही चाहिए
16:32उतना समझ लो कि जिन्दगी की बुनियाद में ही खोट है
16:39हमने अनिवार्य की बात करी है
16:41हम मौज में यूहीं जाकर के
16:45आप इमारत को सजा दो
16:49उसमें सौ चीजें रख दो
16:50वो अलग बात है
16:51इमारत को अच्छे से पताएगी
16:55ये चीजें मेरे भीतर रखी हो
16:56कि न रखी हो मैं ढह नहीं जाओंगी
16:58ये थोड़ी है कि इमारत में बहुत सारा
17:00एक इमारत में सुचों कितना सामान रहता होगा
17:03पर उस सारा सामान निकाल दो
17:05तो क्या इमारत गिर जाती है
17:06वो अलग बात है
17:08वो फिर जो चीजें
17:12इमारत में रखी हैं وہ विशाय नहीं है
17:14विशाय का अर्थ होता है
17:16कि अहंकार आश्रित हो गया है
17:18फलानी वस्तु पर
17:19तो इमारत के भीतर जो कुछ रखा रहता है
17:23अब ये है ये ऐसे है ये ठीक है
17:25इसमें जो कुर्सियां रखी है
17:27इस पर ये हॉल आशरित है क्या
17:29इसका क्या बिगड़ जाएगा तुम कुर्सियां निकाल भी दोगे तो
17:33कुछ बिगड़ जाएगा
17:34पर मानलो ये कमजोर होता और 10-12 इस तरह के पिलर होते
17:40और उन पर इटिका होता
17:41पिलर निकाल देते तो क्या हो जाता
17:44ये अंतर होता है संबंध और संबंध में
17:50ये तुम हो ये तुम हो
17:53एक संबंध हो सकता है कि इस हौल के भीतर ये रखा हुआ है
17:58रखा है तो भी हौल है नहीं रखा है तो भी हौल है
18:03इसको कोई अस्तित्तोगत अडचन नहीं आ जाएगी अगर इसको उठा के बाहर फेक दिया
18:11या कुछ हो गया साइयोक से चला गया कुछ भी हो गया
18:13ना ऐसा होगा कि हॉल और ज्यादा फूलने लग गया और एकदम चौड़ा हो गया अगर आपने यहां पे
18:22कि दस बारा कुर्सियां और रख दिने अधिक आती जाती रहती है ना हमें उन्हें रोकना डोकना कुछ आ अच्छी वात नहीं भी आ
18:42तो अच्छी वात थोड़ा उपर नीचे होता है लेकिन इतना उपर नीचे नहीं होता कि हमें लगेगी हम धर facade हो जाएंगे
18:52वो सकता है यहां से सारी अगर आप कुर्सियां निकाल दो तो हॉल ये बोलने लग जाए क्या है यार मामला कितना गुल्जार था बढ़िया थी गुलावी रंग था क्या बात है इधर उधर कहा सब गायब हो गया ये हो सकता है बोले पर वो ये थोड़ी बोलेगा कि जिन्द
19:22विश्य निकला नहीं,
19:25यह जिंदगी नहीं दम तोड़ दिया,
19:29और तब आप फिर भैभीत नहीं रहते हैं,
19:31आप भयाक्रांत रहते हैं,
19:34आप सिर्फ डरे नहीं होते हैं,
19:35आप दहशत में जीते हो,
19:40क्योंकि वो विश्य नहीं है,
19:41वो आपकी जान है,
19:42जैसे यहांके यह खंब है,
19:45यह पिलर्स,
19:49यह इस हॉल में रख्या नहीं हुए हैं,
19:52इन्होंने इस हॉल को उठा रखा है,
19:55सहारा दे रखा है,
19:56अब सहारा दे रखा है,
19:57तो हॉल की धड़कन बंद हो जाएगी,
19:59कोई आके खंब हो थे,
20:00हतोड़ा मारने लग गया इनमें तो,
20:03यह क्या कर रहा है,
20:03मैं भरबाद हो जाओंगा,
20:05यह नहीं होने देना है,
20:11बनियाद काफी रहे,
20:13बनियाद काफी रहे,
20:14बनियाद है ना,
20:15परियाप्त है,
20:17बनियाद जब परियाप्त है,
20:19तो जिन्दगिये में कुछ आ गया स्वागत है
20:20कौन मना कर रहा है
20:22और चला गया
20:25तो भी ठीक है
20:26हाँ चला गया बुरा लगा थोड़ा
20:28दो-चार दिन पर ठीक है
20:30ऐसा कुछ नहीं है कि हम विखर गए
20:31अंतर समझ में आ रहा है
20:36एक बात होती है कि मैंने
20:41कोई चीज गई तो चीज खो दी
20:44और एक बात होती है कि कोई चीज गई तो मैंने
20:47खुद को खो दिया
20:49ये खुद को खोने वाली बात नहीं होनी चाहिए
20:52चीज गई है तो
20:54चीज गई है
20:56चीज गई है तो
20:58चीज गई है
20:59उस चीज से हम इतने नहीं आशर्यत हो गए थे कि हम ही निकल गए
21:02इसलिए समझे यह कोई नैतिक बात नहीं है कि त्यागने और ग्रहन करने की दासता से आनेवारता से मैं मुक्त हुआ
21:17यह कोई नैतिक बात नहीं है इसके पीछे एक मनोवज्ञानिक उससे भी आगे का अस्तित्वगत तत्थे है हमारे भीतर का
21:42कि आप दुनिया के गुलाम हो जाते हो
21:45जब आपकी जिंदगी एक काप्ती बुनियाद पर खड़ी होती है
21:53उस काप्ती बुनियाद का ही नाम है माननेता
21:57माननेता की अकलपन नहीं तो होती हो और क्या है इसके आगे की कोई चीज़ है
22:07अहम के आधार में माननेता रहेगी
22:12तो अहम के विस्तार में कामना रहेगी
22:16नीचे अगर
22:18वो माननेता पर खड़ा हुआ है
22:21तो जगत में वो क्या लेकर फैलेगा
22:24कामना
22:25ये नियम है
22:27जिस आदमी के लिए
22:31कामना का विशे जितना
22:34पनिवार ने हो गया हो
22:38जीने मरने का मसला हो गया हो
22:40जान लेना कि उसकी जिन्दगी की बुनियाद
22:44उतनी खोखली है
22:45वो कुछ बड़ी
22:47विचित्र माननेता लेकर जी रहा है
22:50आपको बच्पन से पढ़ा दिया जाए
22:55कि आप तो
22:58ये जिन्दगी सार्थक तभी है
23:00जब तीन
23:04मुँवाला कछुआ
23:07आपके घर में मौजूद हो
23:12उससे
23:14ही
23:16जिन्दगी में
23:18बहार आती है
23:19और जिनके पास कछुआ नहीं होता
23:23उनकी जिन्दगी तो बरबाद हुई ही
23:25मरने के बाद
23:27उनको और दंड दिया जाता है
23:31तो अब आप पुरी जिन्दगी क्या करोगे
23:34कछुए को ढूंड होगे
23:37तो ढूंड तो ढूंड तो रहे हो और क्या कर रहे हो
23:38यह जो पूरा विस्तार है
23:44कि साथ दूई पनौ खंड कछुआ ढूंड निकल पड़ते हो दुनिया में
23:48यह कामना का विस्तार है इसके मूल में क्या है
23:53माननेता क्या
23:56कि जिन्दगी
23:57अधंग से जीने के लिए तीन सिरवाला विशेश कछुआ
24:03चाहिए
24:04अब यह बता दिया गया
24:07और यह बात ऐसी पकड़ी ऐसी पकड़ी
24:09कि जैसे सच हो
24:11माननेता तो हमेशा सची होती है
24:16माननेता जिस दिन माननेता हो गई
24:18उस दिन हवा हो गई
24:19माननेता माने सच
24:23अब परीक्षित सच
24:24उच्छा ही नहीं कि मतलब ऐसा क्यों होता
24:30कुछ बातें ऐसी होती न जिन पर सवाल उठाने
24:35में भी बिलकुल
24:37जान निकल जाती है
24:39वो है गहरी से गहरी मानने था
24:45जिसे आज था कम्यूनिटी पर
24:49इन्हों ने लिखा कि
24:51मेरे
24:54यहां पे फलाना कुछ
24:59रसमद आएगी हो रही थी
25:02और मैं उनसे गीता की बात कर रही थी
25:07वो बोले तुम्हारे आचारी जी तुम्हें यह सब करने देंगे
25:14क्या जो अभी चल रहा है
25:15मैं गई थी इनसे गीता की बात करने तो कुछ हो रहा था
25:20कुछ हो रहा होगा
25:21बोले यह सब करने देंगे क्या वो तो
25:25इन सब
25:26रस्मोरे वाजों को अंधुश्वास बूलते हैं न, बिहार की हैं, बूलनी की नहीं मैंने, उनको तो अत्काल खा की नहीं न, आचारे जी इन चीजों का अंधुश्वास टे बूलते ही नहीं, मैं बूलता हूँ,
25:42अब ये वो माननता है, जिस पर सवाल खड़ा करने में जान जाती है, वैसे ही कई मुझे पर जो बाते होती हैं कि वो तो ऐसा कहते हैं,
25:59तो हमारे लोग जा करके मेरी डिफेंस में कहते हैं कि नहीं, ऐसा तो बिलकुल नहीं कहते हैं, पर मैं वैसा तो बिलकुल कहता हूँ, तो खुद ही नहीं मानना चाहते हैं कि मैं वैसा ही कहता हूँ, क्योंकि वो मानने कि तुम्हारी हिम्मत नहीं है, क्योंकि वो बात तु
26:29देखने तो यहां तक लखा था कि आचारी जी दूद्ध पीने को मना नहीं करते बूलते हैं बस पश्यू को दुख मत दो
26:34उन्होंने तरक भी दिया बूले अगर दूद्ध पीना ही मना होता तो हम अपने बच्चों को दूद्ध क्या पिलाते हैं फिर तो मा बच्चे को दूद्ध पिलाती है वो ही गलत हो गया ना तरक देखो
26:51अचारी जी फिर तो एंटी लाइफ हो गए
26:55हिम्मत ही नहीं पढ़ती पूछने की
27:03मतलब
27:06सब लोग मेरे आसपास के यही सब मान रहे हैं
27:11पर मैं कैसे मान लूँ की यह
27:13मतलब थोड़ी तो बात कर लो
27:14कोई तो आ जाओ
27:16भाईया जी जी मौसी
27:19मम्मी दादी
27:21पूफा ताउ
27:23अरे चचा तुम ही बात कर लो
27:25कोई नहीं बात
27:27और वहाँ से ही
27:31सारी कामनाई उठती है
27:32सच
27:38सभाव ऐसा है कि
27:41वो अपने आप ही
27:43आपको बिलकुल
27:45मस्त कर देता है
27:49त्रिप्त कर देता है
27:53बिना किसी अन्य सहायता के ही
27:55आपको संतुष्ट कर देता है
27:57अपने दम पर अकेले
27:59पेट भर दिया उसने
28:04उसी से भर गया पेट
28:08और जब उसी से पेट भर गया
28:10तो दुनिया से क्या मंगोगे
28:11जाते जरूरत नहीं मांगनेगी
28:14उसी से पेट भर गया ना अब क्या मांगे बहुत
28:18कुछ अब आ गया तो आ गया
28:20नहीं आया तो नहीं आया आ भी गया
28:22ठीक है बड़ी बात नहीं है
28:24क्या
28:26बड़ी बात नहीं है
28:28जिन्दगिया खेल है
28:30बड़ी बात नहीं है
28:32यह सच का सभाव हो है
28:34वो अपने दम पर ही आपको
28:36त्रिप्त कर देता है
28:37और माननेता की प्रकृति यह है
28:42कि वो अपने दम पर कुछ नहीं कर सकती
28:44क्योंकि वो खुद खोख लिए
28:46तो वो हमेशा आपके लिए
28:48अनिवारे बनाती है कि आप जाओ
28:50और पांसाथ चीज़ें लेकर आओ
28:51अपने जीवन में ये जोड़ो
28:54वो जोड़ो है अपने जीवन से ये घटाओ
28:56और जोड़ना घटाना बिलकुल
28:57एक ही बात है इनमें कुछ अलग अलग नहीं है
29:00जो कहा न कि ग्राह है और ताज जीश में कुछ अलग अलग बात नहीं है
29:03जीवन में परी जैसी पतनी लेकर आना
29:08ये इसको आप किस अर्थें पढ़ेंगे
29:10ये तो ग्रहन करने वाली बात हो गई
29:11जीवन में एक व्यक्ति को लेकर आना है तो
29:14ग्रहन कर रहे हैं जोड रहे हैं
29:16और जीवन से सुना पन अकेला पन हटाना
29:18ये त्यागने की भाषा में बात हो गई
29:20पर ये दोनों एक ही तो बात है
29:22एक ही तो बात है
29:24और आप एक ही सांस में तो दोनों बाते करते हो
29:26कि जिन्दगी बड़ी अकेली है
29:28सुनी है बेरवनाख किसी को ले आते हैं
29:30किसी को लाने से आप कुछ
29:33हटाना चाहते हो
29:35तो त्याग करना
29:36और गृहन करना ये दोनो
29:38एक ही बात
29:39कुछ इसमें ऐसा नहीं है कि
29:42अलग-अलग है
29:43जो भी व्यक्ति कुछ
29:45त्यागना चाहता है
29:47वो यही पाएगा कि उस त्यागने
29:50हेत। त्यागने की
29:51विधी के रूप में
29:53वो कोई नया विश्य ग्रहन करेगा
29:55एक चीज त्यागनी है
29:59तो दूसरी चीज
30:01ले करके आनी है
30:03ये दोनों एक साथ चलते हैं
30:05एक शब्द के रूप में
30:08पढ़ा जाना चाहिए
30:09ये माने तख की देन है
30:17अब जिन्दकी भर यही करो
30:19यहां से यह ले कर आओ
30:21यहां से वो ले कर आओ
30:22और जो ले कर कर आओगे उससे क्या
30:24बुनियाद ठोस हो जाएगी
30:26जो भी ले कर कर आओगे
30:28बुनियाद तो यह वैसी रहेगी
30:30तो फिर जाओ
30:35और लेकर के आओ
30:37और जो लेकर के आ रहे हो
30:40बात उससे भी बननी नहीं है
30:44यह लिए हम प्रयोक कर लेते हैं
30:47इस कमरे की बुनियाद कमजोर है
30:49बताओ यहां क्या क्या रख दें
30:51कि बुनियाद मजबूत हो जाए
30:53बोलो
30:54बताओ
30:57हाँ
31:05अब पूरी पढ़ेंगी
31:06और बताओ यह इसमें क्या क्या जोड़ दें फिर
31:11और बहुत सारी चीज़ें जोड़ दोगे
31:18और महंगी कीमती चीज़ें भी जोड़ दोगे
31:21और बुनियाद अगर कमजोर है
31:23तो खटका कम होगा के बढ़ेगा
31:26पहले तो यह था
31:27कि छट गिर जाएगी
31:29दिवारे ठह जाएगी
31:30और आपने इसमें भहुत चीज़ें जोड़ दी है
31:33तो अब क्या खटका रहेगा
31:34दिवार गिरेगी तो जो कुछ लेकर के हां रख दिया
31:39वो भी गिरेगा
31:40सब भरवा दो
31:41तो बताओ भीतर जो संशय है
31:44और भै है
31:46वो कम हुआ या बढ़ गया
31:49तो यह मानने ता
31:57यह यही मान लेना
31:59यह बिलीफ सिस्टम
32:02विश्वास पे जिन्दगी बिताना
32:03यह अंध विश्वास का पूरा खेल
32:06कोई छोटी मूटी बिमारी नहीं है
32:09और अंध विश्वास माने इतना ही नहीं होता है
32:13कि जिन भूत चुडल में कोई मानता है
32:17गंडा तावीज में कोई मानता है
32:19अंध विश्वास इतना ही नहीं होता है
32:20आप जिन्दगी में जिन भी चीज़ों को
32:25महत तो दे रहे हो बिना स्वयम से पूछे कि क्यों
32:39न रखने वाले इंसान हो सकते हो
32:41आप बिलकुल ऐसे हो सकते हो
32:44जो लोग नास्तिक कहते हैं सोयम को
32:46और फिर भी हो सकता है
32:48कि आप घोर अंधविश्वासी हो
32:49आस्तिक की अपनी
32:53माननेता
32:55अपना अंधविश्वास
32:57और नास्तिक का अपना अंधविश्वास
33:00अंधविश्वासी दोनों बराबर के हैं
33:02अंधविश्वास का संबंध कोई सिर्फ लोकधर्म से थोड़े ही है
33:07अंधविश्वास का संबंध कोई सिर्फ अशिक्षित लोगों से थोड़े ही है
33:13या भारत से थोड़े ही है
33:16या कि धार्मिक देशों से थोड़े ही है
33:21क्या चीनी अंदविश्वास ही नहीं होते
33:22वहां तो
33:25धर्म को प्रोच्साइट नहीं किया जाता है
33:27सारुजनिक जीवन में धर्म अनुपस्थित है
33:31फिर भी वहां बड़ा
33:33अंदविश्वास है, ईश्वर अगेरा को
33:35लेके नहीं है
33:35तो दूसरी चीज़ों को लेकर के है
33:38पर है
33:39बजब्यार यह बात यह है
33:44तो प्याजे और ग्राहे विशय की अनुपस्थिति
33:54यह पहली बात
33:55वो अनुपस्थिति सिर्फ आ सकती है
33:58ठोस बुनियाद से
34:00और इस अनुपस्थिति से जुड़ी हुई चीज है
34:03हर्ष और विशाद का अभाव
34:05जितना आप
34:11आश्रित होंगे
34:12विश्य पर
34:14अपनी हस्ती के लिए ही
34:17उतनी घोर
34:19वेदना होगी आपको
34:21उस विश्य को खोने पर
34:23विश्य नहीं खोया है
34:27जैसे आत्मा
34:29खोदी है जैसे जिन्दगी खोदी है
34:31असमिता खोदी है ऐसा लगेगा
34:34नहीं तो
34:38एक तरह का हलकापन रहेगा
34:43समदर्शिता संभाव रहेगा
34:47हम नहीं कह रहे कि आप
34:49बिलकुल ही निर्पेक्ष हो जाएंगे
34:52कि किसी की मृत्य भी हो गई
34:54तो बुरा नहीं लगेगा
34:55परिक्सीमा रहेगी
34:57एक भीतर आयाम रहेगा
35:00जहां कोई सुख दुख नहीं पहुँच सकता
35:04नहीं तो बड़ी तीवर वेदना होती है
35:08जो एक्तम केंद्र को भी छलनी कर देती है
35:11सुख दुख का अनुभव
35:19अध्यात्मिक आद्मी को भी उतना ही होता है
35:24जितना किसी जुन्नू लाल को
35:29अंतर बस यह है कि अध्यात्मिक आद्मी के पास भीतर एक बिंद होता है
35:34एक तल होता है जहां सुख दुख नहीं पहुँच सकता
35:37तो बच जाता है ऐसे समझिए
35:41कि दो मकान हों बिलकुल एक जैसे
35:47बिलकुल एक जैसे बिलकुल ही एक जैसे
35:49ऐसा जैसा एक यह है यह
35:51ऐसे ही एक इसके बगल में है
35:54और दोनों में बिलकुल एक जैसी आग लग गई हो
35:57बिलकुल एक जैसी आग
35:59वो दोनों में एक एक आदमी है
36:03बस जो दूसरा वाला है उसमें अंतर ये है कि उसमें
36:10एक मंजिल और है
36:12वन मोर स्टोरी एक और है मंजिल
36:16उपर
36:17पहला तल्ला
36:19वो ऐसा है जहां कोई आग कभी पहुँच
36:23सकती नहीं वो फायर प्रूफ है
36:25और नीचे का जो ये है तल
36:29ये जैसा इसका है वैसा ही
36:31बगल वाले का है
36:33और नीचे के तल में आग लग गई है दोनों के
36:35अंतर समझ में आ रहा है न
36:38बराबर की आग दूसरे वाले के घर में भी लगी है
36:43पर वो बच जाएगा क्यों
36:44जब आग लगेगी तो कहेगा मैं वहां तो हूं ही नहीं
36:50आत्मस्त हूं आत्मा में स्थित हूं वहां कोई आग कभी पहुच सकती नहीं
36:59तो आग उसकी जिन्दगी में भी बरावर की लग सकती है
37:02हम कहा रहे हैं सुख दुख का अनुभव जितना आम आदमी को होता है उतना ही हो सकता है धारमे का आदमी को हो रहा हो
37:10हो सकता हो उसकी जिन्दगी भी बरावर की जल रही हो ये भी हो सकता हो उसकी जिन्दगी थोड़ी ज्यादा जल रही हो
37:15और ये सही मुद्दा खुल गया क्योंकि उसकी जिन्दगी अक्सर ज्यादा जलती है क्योंकि उसको पता होता है कितनी भी जले मेरा कुछ नहीं बिगडेगा
37:24तो वो अपनी जिन्दगी को जलाना ज्यादा बरदाश्ट कर पाता है
37:28जिसके पास जीवन में बस यही तल है नीचे का वो कितना बरदाश्ट कर पाएगा इस तल को प्रज्योलित होने देना
37:38नहीं ज्यादा नहीं यही तो है उसके पास यह जल मरा तो जाएगा कहां
37:45तो वो बचा बचा के खेलता है आग ज्यादा नहीं लगनी चाहिए
37:48यह बगल वाला है उसके आग लगी भी है ज्यादा भी लग गई है जानते बूझते ज्यादा लगा ली है
38:00किसी उचे उद्देश्य से तो भी उसका चैन छिन नहीं गया वो उपर बैठा है वो नीचे आग लगी हो देख रहा है
38:09साक्षी हो गया वो वहाँ पर है जहां लप्टे नहीं पहुँचते हैं यह साक्षी है है है सब कुछ वही हो रहा है जो किसी भी और इंसान के साथ होता है
38:21पर हम वहाँ बैठे हैं जहां लप्टे नहीं पहुँचते हैं
38:25कुछ चमतकारिक नहीं हो गया
38:29जंदगी सब की एक सी है, देह सब की एक सी है
38:32इसी प्रत्वी पर सब जी रहे हैं
38:35तो जो दुखसोख सयोग सब जहेलते हैं
38:38हम भी जहेल रहे हैं
38:40बस एक छोटी सी जगए है भीतर जहां
38:47लप्टे नहीं पहुँचती
38:48तुम वहीं पर स्थापित
38:50कर क्या रहे हैं
39:00वो उपर है कि नीचे है
39:01थोड़ देर पहले कर रहे थे बुनियाद है
39:02अब उसको पहली मंजल बना दिया
39:06चलो ठीक है वो बेस्मेंट
39:07पर एक जगा होनी चाहिए
39:17जन्दगी की अमारत में जो बहुत
39:18मजबूत है उसी पर सब खड़ा होता है
39:21और वही तुम्हारी आश्रे
39:23स्थली बनती है
39:25हमारे बढ़ेंगे एक
39:27जगह पर जाकर के
39:29क्रिश्न कहेंगे अरजुन को
39:31अरजुन आश्रे हूं मैं तुम्हारा
39:34तुम्हार दर्शब्द है
39:36उतनी ये दुनिया है
39:38यहां तो
39:40ये खेल चलते ही रहता है
39:43कभी हराओगे कभी हरोगे
39:45दूसरे को बाण मारोगे
39:48अपना भी खून बहाओगे
39:49ये सब चलेगा
39:51ये सब होने के बाद
39:58ये सब होने के दौरान
40:02मैं वो हूँ
40:05जहां तुम
40:07शर्णागत हो सकते हो
40:09शांत रह सकते हो
40:10जहां कोई तुमको
40:12दुखी परेशान
40:14नहीं कर सकता
40:21मुझरे हो बात को
40:24इंसान और इंसान में
40:27अंतर बस यही होता है
40:28नहीं तो जिन्दगी सब की एक सी
40:31दुनिया सब की एक सी
40:32शरीर सब का एक सा
40:34आयू अवद ही सब की एक सी
40:36बहुत क्या अंतर है
40:39दो ही लिंग पाए जाते हैं
40:40वो भी सब के एक से
40:41बहुत अंतर बहुत भेद कहां होते हैं
40:47कहानिया भी सबकी लगभग एक सी ही होती है
40:53थोड़ा थोड़ा अंतर होता है
40:54देकिन महान अंतर आ जाता है बुनियाद में
41:03तुम्हारे घर की बुनियाद क्या है
41:05और तुम सोचते हो कि चुकि सबके घर की ऐसी ही खोखली बुनियाद है
41:12तो शायद इस खोखले पन में ही सुरक्षा है
41:16भीड में सुरक्षा लगती है न
41:18वही सब खोखली बुनियाद पर खड़े हैं तो हम भी खड़े हैं
41:22उच्छा लगता है सबका ऐसा ही है
41:23सबका है सही है
41:24उसमें सुरक्षा नहीं है और घोर असुरक्षा है
41:28आप माने बैठे हो फलानी चीज जिन्दगी से चली गई तो पता नहीं क्या हो जाएगा
41:39आप क्यों नहीं पूछ के देख रहे हैं कि ये चीज चाहिए ही क्यों
41:43आप माने बैठे हो फलानी चीज नहीं मिली
41:45तो हम जीए ही नहीं
41:48कैसे पता अच्छा बताओ कैसे पता
41:50ले ओ आगए उसी सवाल पर
41:51कैसे पता
41:54कैसे पता बताओ तो
41:56और इन लोगों से पूछो कभी भी
41:59इन लोगों से माने हम लोगों से
42:01ऐसे जैसे हम कहीं अलग निकल गए
42:03पूछो कि कैसे पता
42:07तो सक्पका जाते है
42:09क्योंकि इसको क्या मानते है
42:13obvious truth
42:16तो axiomatic है
42:20जो तरना revelation है
42:26revealed dictum
42:31पारलॉक एक अपारुशे सत्य है
42:36ये तो मतलब तो है ही ना ऐसा तो
42:38भाई चलो छोड़ो बहस छोड़ते हैं
42:42कुछ तत्यों में चले जाते हैं
42:44जिस बात को तुम मान रहे हो
42:45ये बात क्या इतिहास ने भी सदा मानी गई
42:48ये छोड़ो कि तुम्हारी बात कालाती इत सत्य है
42:50काल में ही 200 साल पीछे चले जाओ तो ये बात मानी जाती थी
42:54छोड़ो कि ये जो तुम्हारी बात है वो ब्रम्हांड व्यापक सत्य है
43:01बगल के इदेश में ये बात मानी चाती है
43:05और 200 साल भी छोड़ो जिन चीजों को आज मान रहे हो
43:14तुम्हारी पक्का भरोसा है दस साल बात मान रहे होगे
43:17क्योंकि दस साल पहले भी तुम बहुत सारी चीज़े मानते थे जिनको तुम आज
43:21नहीं मान रहे हो
43:22इतना निश्चित हो करके तुम कैसे जम जाते हो
43:34ये तो चाहिए ही न ऐसा तो है ही न
43:45जो कुछ भी मानसिक है न वो वेकल्पिक है अच्छे समझना
43:51चुनाओ है तुम्हारे पास
43:53शरीर बस ऐसा है जो
43:59चुनाओ नहीं देता है ऐसा नहीं हो जाएगा कि
44:03चुनाओ कर लोगे कि दो सो साल जीना है तो जी जाओगे
44:09मानसिक जो कुछ भी है वहाँ विकल्प मौजूद होता है
44:12अब बोलो नहीं पर किसी ने अपमान किया तो क्रोध तो आएगा ना
44:17अच्छा छोटा सा वाक्या अच्छा है किसी ने अपमान करा तो क्रोध तो आएगा ना
44:23देखो इसमें कितनी धारी मानने ताएं बैठी है अच्छा बताओ मान माने क्या उसे नहीं पता
44:29मान माने क्या हम मान माने सोचते हैं कि इज़त और मान माने मेजर होता है
44:37मान माने क्या और मान माने क्या तो अप मान माने क्या
44:43अप मान माने क्या
44:46नहीं बात करना चाहते हैं
44:48बोला यार तुम ऐसी बात कर रहो तेरे ही अप मान कर दूँगा
44:52नहीं कर देना पर बतातो दो अप मान माने
44:56इग्जैक्ली वॉट
44:58दूसरी बात गुस्सा तो आएगा न यह तुमें कैसे पता यह तो मानसेख बात थी न प्रतिक्रिया का हो न और जो कुछ भी मानसेख है उसमें हम कहा रहे हैं विकल्ब होता है
45:09पर तुम कितनी सारी बातें एक सांस में मान लेते हो
45:15छोटा सा तुहारा वाक्या और उसमें कितनी माननेता है तुमनें बैठा रखी है
45:19उसमें अभी और छुपी हुई माननेता बताता हूँ
45:26आपने तो कोई अपमान करें
45:27सब कोई बराबर नहीं होते
45:29उसमें कहो कि मित्र अपमान करें तो कम क्रोध आएगा
45:33शत्रु अपमान करें तो ज्यादा क्रोध आएगा
45:35अपने अपमान करें तो कम
45:37पराय करें तो ज्यादा
45:39अच्छा बताओ मित्र माने क्या
45:41और शत्रु माने क्या
45:43और अपने माने क्या और पराय माने क्या
45:46मान नहीं बता पाए तुम
45:49बहुत कठेन लग रहा था, तो कोई बात नहीं
45:51आठ में से किनी तीन प्रश्णों के उत्तर दे दे
45:54मित्र बता दो, शत्रु बता दो, अपना बता दो, पराया बता
46:02कुछ तो बता दो
46:03बताने को तुम कुछ राजी नहीं
46:07उबलने को राजी हो कि गुस्सा तो आएगा न
46:09क्या हम कह रहे हैं कि नयतिक दृष्टे से क्रोध करना बुरा है
46:15क्या हम वो पट्टी पढ़ा रहे हैं
46:18कि क्रोध तो मनुश्य का दुश्मन होता है बच्चा
46:21जिसने क्रोध को जीत लिया
46:24वो स्वर्ग में जगह पाता है हम क्या वो बात कर रहे हैं हम तो पूछ रहे हैं
46:29क्योंकि जो ये बात भी कर रहा है कि क्रोध को जीत लिया
46:32और उससे पूछ लो कि क्रोध माने क्या तो उसे भी न पता हो
46:35हम तो पूछ रहे हैं अपना क्यों कैसे पता है अपना क्या पराया बता तो दो पराया माने क्या एक्जैक्ली वाट
46:49और अगर तुम्हें ये सब नहीं पता तो हम पूछ रहे हैं कि फिर तुम्हें ये बात कैसे पता जब तुम्हें कुछ नहीं पता
46:56अभी फिर इतना जो तुम्हें पता है और जिस पे तुम्हारा भरोसा है वो तुम्हें कैसे पता
47:07लिदे करके चुछ भी नहीं पता
47:17आख बंद करके चलना है और भरोसा पूरा रखना है
47:23किस पर
47:24कहीं गिर गए तो दूसरे की गलती की किस्मत की गलती
47:32जिन्दगी सच्ची है तो अपने आप में पर्याप्त है
47:45उसमें न किसी को जोड़ने की बहुत जरूरत है
47:48न किसी को घटाने में बहुत कुछ रखा है
47:51इतनी सी बात है कुल
47:54सही जिन्दगी जी रहे हो तो वो जो सही पन है न उसका
47:58वही तुम्हें तरप्त रखेगा
48:01अब बताओ बहुत कुछ और क्यों चाहिए या किस से इतना डर है कि उसको हटाना है
48:08नत्याग नगरहना
48:12और इसका मतलब यह है कि अब प्रक्रते के लिए जीवन के लिए हमारे दर्वाजे बिलकुल खुल गए है
48:18जिसको आना है आए सबका स्वागत है
48:21और कोई जा रहा है तो हम पीछे से चिपकेंगे नहीं
48:25सब अनुभवों के लिए अब हम उपस्थित हो गए हाँ आओ
48:31ठीक है आया था चला गया क्योंकि प्रक्रते में तो जो कुछ है वो लहर जैसा है
48:38ऐसे आता है ऐसे जाता भी हम अब उसके लिए मौझूद हो गए आ गया भूद अच्छी बात है
48:45पर ऐसा नहीं है कि हम बावले हो जाएंगे कि ये कौन आया
48:49रोशन हो गई महफिल जिसके नाम से आ गया भाई ठीक है
48:57और चला गया तो भी हम बावले नहीं हो जाएंगे
49:06ये बाकी तो जब तक धेय है तब तक
49:09इंसान जैसा तो वेवहर करना ही होगा
49:13तो आगया है तो बोलेंगे हां जी हां जी भॉत अच्छी बात है आप आ गयें सौअगत है
49:18खुशी हुई, कले उले मिलेंगे
49:21चला जा रहा है, तो ये भी कहेंगा
49:22बड़े अफसोस की बात है
49:26दुबारा आना
49:28पर भीतर भीतर कुछ होगा जिसे
49:32धेले का फरक नहीं पाद़
49:35उसी को कहते हैं आत्मा
49:42ये मेरे ठेंगे से
49:48जी हम आ गए हैं आपकी जिंदगी में
49:52कर देंगे खुशगवार हमें बहार
49:56वो क्या बोलती है
49:57मेरे ठेंगे से
50:00बहार बाठी, आए अच्छी बात है
50:03हाँ जी हाँ जी, most welcome, बैठिये
50:04जैसे ही कोई सर पे चड़े बहुत दावा करे
50:09कि हम तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है
50:11या हम तुम्हारे लिए बहुत खतरनाक है
50:13आत्मा मने मेरे ठेंगे से
50:16हम अपने आप में ही परियाप्त है और पूर्ण है
50:22पूर्णा इदर, पूर्णा मिदम
50:26अपने में ही पूरे है
50:29ना कोई विचार, ना फरनीचर, ना कोई इनसान
50:34किसी का बहुत महत्त तो नहीं हो गया
50:46उसके बाद जीवन में जो वस्तुएं होती भी है
50:54या विचार उनसे रिष्टा भी स्वस्त रहता है
50:59प्रोंकि फिर उस रिष्टे में
51:01आश्य रहता नहीं रहती, इंसा नहीं रहती
51:05छिपका छिपकी नहीं रहती
51:09आप एक छाये नहीं रहती
51:16क्या पेक्षा करें, तुम्हारे आने से पहले भी हम
51:18मस्त थे
51:20तो तुमसे कुछ खास उम्मीद क्या करें अब
51:23तुम नहीं बेते तो हम तो
51:25तब भी मस्त थे
51:27तो कुछ बहुत खास उम्मीद तुमसे नहीं बाकि ठीक है तुम कुछ
51:30icing on the cake कर सकते हो तो कर दो
51:33पर cake तो हमारे पास
51:34पहले से था
51:38धन्यवाद है जी
51:40नमस्ति आचारे जी
51:44जैसे कि आज आपने बताया कि
51:47जब आपके
51:48जीवन में बहुत सारे विशे होते है
51:50तो आप डरे हुए होते है
51:53तो मेरे जीवन
51:55में भी बहुत सारे ऐसे विशे है
51:56और वो देखने को भी मिलते हैं मुझे
51:58और मैं डरी हुई भी रहते हूँ
52:01लेकिन जब मैं उनसे बाहर निकलने की कोश़श करती हूँ
52:05तो मैं और फस्ती जाती हूँ
52:07आप विशेय से बाहर नहीं निकल सकते हैं
52:09तो कर्मकरंड हो जाएगा
52:11पहले बताईए मैंने कर्मकरंड क्यों कहा
52:14योई तो कह रहे हैं ना
52:18बाहर निकलने की जो बात करी वही कतने
52:20त्याज्यक की अनुपस्थिति
52:22वो कह रहे हैं कुछ ऐसा होना नहीं चाहिए
52:25जिसको बाहर निकालना बहुत जरूरी है
52:28पढ़ा है तो पढ़ा है
52:29ये भी जो आग्रह होता है
52:32कि फलानी चीज तो जिन्दगी में
52:34बिलकुल होनी ही नहीं चाहिए
52:35ये भी एक कापती बुनियाद की और इशारा करता है
52:39बतानी कितनी खतरनाक चीज है
52:43कि जिन्दगी में आ जाएगी तो जिन्दगी कोई बरबाद करतेगी
52:46अरे हम डर नहीं रहे हैं
52:48आ जाएगी तो आ जाएगी नहीं आ जाएगी तो नहीं आ जाएगी ऐसा क्या हो गया
52:51लेकिन बस मुझे यही जानना आचारे जी कि मेरी जिन्दगी में बहुत सारी ऐसी चीज़े अभी भी है
52:59चीज़े नहीं हैं
53:02माननेता हैं
53:02के इंदर पर माननेता होती है, वो माननेता से चीज़ें आती है, हमने क्या कहा, कि जब बुनियाद में माननेता होगी, तो संसार में कामना का विस्तार होगा,
53:21आप विस्तार को देख रहे हो, उसी के बारे में सवाल पूछ रहे हो, मेरी दिन्दगी में बहुत सारे विशें हैं, विशें बिचारों को क्या दोश दें, विशें हैं ही इसलिए क्योंकि बुनियाद में कुछ ऐसा बैठा है जो अनावश्यक है, और आप उसको सच मान कर प
53:51गुड लाइफ की कुछ छवियां होंगी ऐसा होना चाहिए, इतना तो ऐसा होना चाहिए, सरंका होना चाहिए, फिर ऐसा होना चाहिए, सुबह ऐसी होनी चाहिए, दोपहर ऐसी, शाम ऐसी, माननेता है न ये सब, हर चीज को लेकर कैसे पता, कैसे पता, वो सब होंगे इसलि
54:21और बहुत होते हैं, जो सफलता पूरोग विशयों को डंडा लेके खदेड़ देते हैं, कहते हैं उनकी, पूछो ये उनकी उपलब्धी क्या हो बोलेंगे प्याज लासुन नहीं खाया कभी, तो क्या हो जाएगा इससे, क्या हो जाएगा?
54:38विशयों को जिन्दगी से खदेड़ने की बात नहीं है, सच्चाई के आधार पर जीने की बात है, उसके बाद ना कुछ बहुत प्यारा लगता है, ना कुछ बहुत डरावना लगता है
54:55वो इस्थिति मानिक क्या कैसे आती है, इस्थिति है कोई क्या होगा, जूमोगे क्या, इस्थिति मानिक क्या होता है, माननेता पकड़कर बैठे हो, उनसे सवाल करो
55:09फिर वही है न देख लोगधार्मिक बात वो इस्थिति का बाती है
55:16अब ये जो है फलानी ब्रहामी इस्थिति में पहुँच गए है
55:20अब ऐसा हो गया है ये वैसा है
55:22क्या इस्थिति क्या होती है
55:24तुम्हारी ही माननेता है तुम्ही कुछ बाते हैं जो मानते हो
55:29वो बाते जब पूरी नहीं होती हैं तो दुखी हो जाते हो
55:32वो बाते जब लगता है कि पूरी हो रही हैं तो सुखी हो जाते हो
55:36उसमें स्थित्य जैसी क्या बात है
55:42जब भी कोई चीज बहुत आकर्शित करें डराए बीतर उथल पुथल मचाए
55:50तो ये पूछ लिया करो, मुझे कैसे पता कि ये जरूरी है, इसका होना चाहिए ना होना, मुझे कैसे पता कि ये जरूरी है, मुझे कैसे पता, मुझे कैसे पता
56:04मतलब हमने मानियता ही पकड़ रखे है, उनको ही पूछना है कि
56:12आपने
56:12जी
56:14जी
56:16जी
56:18चलिए हमने
56:19हम साथ साथ
56:21तो बस वहीं पूछना है कि
56:25कैसे पता कि यह से
56:27उच्छ नहीं है कि
56:28या तो बहुत जिग्यासू हो जाओ
56:30या जिन्दगी पदे नजरी यही बना लगा
56:32कि जब कुछ बहुत सरचण के बोलने लगे
56:37तो उसको बहुत है तो जटक दिया करो
56:39बस यही है या तो जो
56:43जो जो जो जो क्लासिकल ग्यान वारग होता है
56:46वो तो यह होता है कि जिग्यासा करो
56:48ठीक है और उसी का जो एक संक्षिप्त रूप होता है
56:53वो यह होता है कि की फर्क पैंदा है
56:56पर ये चुकि संक्षिप था इसलिए थोड़ा खतरनाक भी हो सकता है
57:01आप ऐसी भी चीज को लेके बोल सकते हो कि क्या फर्क पड़ता है जिससे फर्क पड़ता है
57:08तो बहतर तो यही कि जिग्यासा ही कर लो पर लगे कि अभी जिग्यासा करने बहुत शरम लगेगा समय नहीं है तो ऐसे जटक दिया करो रहा है
57:15ठीक है
57:17पीतर से धंकी उठ रही है तू बरबाद हो जाएगी क्या
57:22श्रग अफ दो शूल्डर स्वस्त ठीक है
57:31यहां से अबाद होके कौन गया आश्ट तो बरबाद हम हो जाएगे तो मतलब फीक है हो जाएगे
57:41क्या होगे
57:45मतलब अपने आपको सीरियस नहीं लेना है
57:48इस बाद तो इतनी बार बुलिया है
57:51मैं सीरियस लेना है क्या सीरियस लोगे
57:55अपने आपको seriously लोगे तो अपनी मानेताओं को भी फिर seriously लोगे
58:00एक मात्र चीज जिसको seriously लिया जा सकता है वो है सच्चाई
58:04उसके बारे में गंभीर रहो
58:07बाकी हर चीज को खेल की तरह लो
58:09जहां बात यह आए कि सच है कि जूट है
58:13वहां ऐसे मत क्या दो होगा सच तो भी ठीक है
58:15और होगा जूट तो भी ठीक है वहां यह मत कह देना
58:18वहां गंभीर हो जाना केना नहीं बात क्या है पता कर लने दो
58:21बाकी सब आवज्जावत है कुछ है ठीक है नहीं है मौज करो
58:25जी जी देंड़
58:28नमस्ते मेरा नाम चंदन है मैं अचारे जी को पिछले डेड़ साल से यूटूब पर सुन रही थी और लगभग एक साल से गीता सत्रों से जुड़ी हूँ
58:37गीता सत्रों से जुड़ने के बाद मेरे जीवन में बाहरी और बीतरी बहुत बदलाव आये जैसे कि डर खतम हुआ जब मैंने अचारे जी को सुनना शुरू किया तो मुझे गाड़ी चलाने से बहुत डर लगता था घर में गाड़ी होते वे भी मैंने कभी चलाना नहीं सी�
59:07लोगों को सारे रिक रोप से स्वस्त रहना सिखाती हूं बाहर निकलने में मुझे डर लगता था लेकिन इसले तीन महीने से मैं बुक स्टॉल पर जा रही हूं पहले ऐसे लगता था कि ये बल तो खो गया है लेकिन अब अंदर से बहुत अच्छा महसूस करती हूं और श�