00:00महराजी, कभी-कभी मैं अपनी नोकरी और अपने भविश्य को लेकर अश्रक्षित मैसूस करता हूँ और ये अश्रक्षा मुझे बहुत परिशान करने है जिस अश्रक्षा को दूर करने के लिए कि जब तक भगवान का भरोशा नहीं होता तो जीव फिर अपनी हैसियत से च
00:30महारती महामदन उर्दर लेकिन एक भी पांडो खरोर्च नहीं आती बेघियोन जल जाता जो शाम के उद्धका निरणे सुने और ये और नहीं मारा गया
00:40भीस्म जैसे सेनापतियों एक भी पांडों नहीं मारा गया तो उनके सिविर में जाकर के रोज इस बात के लिए जगडा करता तो भीस्म जी भाव में आये तो पांच बांड निकाल करती है और का कल मैं जीवित रहा तो पांच पांडों का बद निश्चित समझो अब ये ख�
01:10शुना कि पांच पांडों के वदका उन्होंने पांच बांड निकाल लिए दुरुपदी जी ने अच्छा अपने दासी के कपड़े लाओ भगवार ने दासी के वस्तर पहने दुरुपदी जी ने हटाया और कहा कि आप प्रन करते हो सोभाग उजानने का और आशिर बात �
01:40भाग देने वाला विश्म जी को माला छूट गया उनका वो काय जो तुम्हें आलाया है क्योंकि इतनी चतुरही से तेरे को यहां तक इस समय पहुचाना केवल उसी का काज़े है विश्म जी खड़े हो गए और देखा तो दर्वाजे में दासी बने खड़े थे भगवार �
02:10पांडों को जगया उनको अब भीस में प्रतिग्यां की है पाचों पांडों को मारने की बुले हां पता है बुले तुम चैन से सो के हो रहे हो बुले जिसके तुम रक्षक हो तो चैन से हम सोए आप खुद बिवस्ता करो तो समझ रहे हैं अगर भगवान का भरोशा है तो �
02:40प्रतिगर जाएं सदवी बनते ही पाया गया है तो आप भगवान का भरोशा लीजिए चिंता मत कीजिए तोड़ा नाम जब कीजिए और भगवान के आशित्रे कि होगा वही प्यारे जो राम जी को भायगा और राम जी अमंगल भवन अमंगल हारी अमंगल हो नहीं सकता हो