विषयान् ध्यायतश्र्चित्तं विषयेषु विषज्जते। मामनुस्मरतश्र्चित्तं मय्येव प्रविलीयते।। ( भाग.११-१४-२७ ) तुमने अब तक संसार में जहाँ बार-बार चिन्तन किया उसका फल भोगा।एक बार मुझमें आनन्द है ये चिन्तन बार-बार कर के देख लो तो मैं मिल जाऊँ,और कुछ करना ही नहीं है।चिन्तन,मनन,स्मरण, बस।