मुझे स्वर्ग से जाने दीजिये (रहस्य)
- 2 months ago
मैं ना जाने कितने समय से बादलों से ढके आकाश के नीचे उस जमीन पर अकेला घूम रहा था.
मैं उस जगह पर बिलकुल अकेला ही था और कुछ भी मनोरंजक नहीं था.
आखिर तंग आकर मैंने हाथ जोड़कर प्रभु से कहा,"प्रभु, क्या मैं ये स्वर्ग छोड़कर जा सकता हूँ?"
प्रभु मुस्कुराये और बोले,"तुमने ये कैसे सोच लिया के तुम स्वर्ग में हो?"
मैं उस जगह पर बिलकुल अकेला ही था और कुछ भी मनोरंजक नहीं था.
आखिर तंग आकर मैंने हाथ जोड़कर प्रभु से कहा,"प्रभु, क्या मैं ये स्वर्ग छोड़कर जा सकता हूँ?"
प्रभु मुस्कुराये और बोले,"तुमने ये कैसे सोच लिया के तुम स्वर्ग में हो?"