कभी रो भी लिया कर Gazal

  • 4 months ago
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर


इक रूह की फ़रयाद ने चौंका दिया मुझ को
तू अब तो मुझे जिस्म के ज़िन्दां (कोठरी.) से रिहा कर


अब ठोकरें खाएगा कहाँ ऐ ग़म-ए-अहबाब
मैं ने तो कहा था कि मेरे दिल में रहा कर


इस शब (रात) के मुक़द्दर में सहर (सुबह) ही नहीं
देखा है कई बार चराग़ों को बुझाकर
चराग़ों को बुझाकर

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