इस मंत्र में भगवान शिवजी की स्तुति की गई हैं । कहा जाता है कि इस मंत्र का उच्चारण भगवान विष्णु ने शिव जी की प्रशंसा में किया था। इसका मंत्र अर्थ इस प्रकार से है। कर्पूरगौरं: अर्थात् कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले । करुणावतारं: करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं । संसारसारं: समस्त सृष्टि के जो सार हैं । भुजगेंद्रहारम्: जो गले में भुजगेंद्र अर्थात् सर्पों की माला धारण करते हैं। सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।