अखिलेश यादव की प्रेस वार्ता में हंगामे की ये 10 बड़ी बातें जो बताती है कि हंगामा स्वनियोजित था

  • 3 years ago
अखिलेश यादव की प्रेस वार्ता में हंगामे का असली सच !
क्या सब कुछ जानबूझकर किया गया था ?
क्या हंगामा एक सोची समझी साजिश ?
हंगामे से पहले और बाद की तस्वीरें क्या कहती है ?
ये 10 पहलू जो खोल देंगे सारी हकीकत !
ये 10 पहलू बताते हैं हंगामे का असली सच !

बाइट-
कल की प्रेस वार्ता की ये तस्वीरें साफ बताती है कि हमेशा की तरह अखिलेश यादव हंसी मजाक और ठिठोली के साथ हर सवाल का जवाब अखिलेश यादव दे रहे थे…लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि हंगामा बरप गया और सवाल जवाब वाली जगह पर हाथापाई होने लगी…अखिलेश यादव के बारे में अक्सर मीडिया के लोग ही कहते हैं कि उनसे ज्यादा मित्रवत व्यवहार किसी नेता का नहीं है लेकिन अब कुछ चुनिंदा पत्रकार अखिलेश यादव की प्रेस वार्ता के बाद हुए हंगामे से उन्हे विलेन बनाने पर तुले हैं…लेकिन अगर हकीकत देखी जाए तो सच्चाई कुछ और ही है और हम आपको बताएंगे कि प्रकार वार्ता में तनातनी शुरू कब हुई…तो पहले ये सवाल और जवाब सुनिए फिर आगे की बात बताते हैं…

बाइट-

तो सुना आपने पत्रकार महोदय का कहना था कि वो विपक्ष का काम नहीं करेंगे…कहने का मतलब देश की बेरोजगारी पर सवाल पत्रकार नहीं करेंगे वो विपक्ष को करना है…तो फिर इन पत्रकार महोदय से हमारा सवाल है कि सत्ता से सवाल न करना कौन से कॉलेज की किताब में पढ़कर आए हैं और सत्ताधारियों के तलवे चाटने की पत्रकारिता का अनुभव इनको कहा से मिला है…पत्रकार के इस जवाब पर अखिलेश यादव ने कुछ नहीं कहा बस इतना कहा कि चलिए अब थैक्यू…और प्रेस वार्ता खत्म हो गई…

पत्रकारों ने जह हंगामे की बात कही तो अखिलेश यादव ने उनको संभलकर जाने की हिदायत दी…

पत्रकार वार्ता खत्म होने के बाद अखिलेश यादव जब जाने लगे तो फिर नीली शर्ट वाले पत्रकार के साथ अन्य पत्रकारों ने उनको घेर लिया…साथ ही अखिलेश यादव का कुर्ता पकड़कर खीचा…जिसके बाद सुरक्षा कर्मियों ने एहतियातन उनको हटाने की कोशिश की और फिर हंगामा बरप गया…और तस्वीरें सोशल मीडिया पर जो वायरल हुईं उनसे कई सवाल उठने लगे…अखिलेश यादव पर आरोप लगने लगे…लेकिन आरोप लगाने वालों से सवाल ये भी है कि क्या इन पत्रकारों में सत्ताधारी बीजेपी के नेताओं की प्रेस वार्ता खत्म होने के बाद उनसे सवाल करने का दम है…क्या वो सत्ताधारियों के कुर्ते पकड़कर उनसे सवाल करने का माद्दा रखते हैं…इसके अलावा कथित नीली शर्ट वाले पत्रकार के बारे में लोगों ने मोर्चा खोल दिया और एक के बाद एक इसके पुराने कारनामों का इतिहास खोलकर सबके सामने रख दिया…

बाइट-

अब सवाल इस बात का है कि सिर्फ विपक्ष के नेताओं से ही सवाल पूछने पर पत्रकारिता का धर्म इन गोदी मीडिया कहलाने वालों का क्यों जाग जाता है…जब ये संबित पात्रा, सुधांसु त्रिवेदी, श्रीकांत शर्मा, स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर जैसे नेताओं के सामने होते हैं तो सिर्फ लिस्टेड सवालों के जवाब सुनकर चुप क्यों हो जाते हैं…तब इनकी बेरोजगारी पर सवाल करने की हिम्मत कहां गुम हो जाती है…महिला सुरक्षा पर इनकी जुबान को लकवा क्यों मार जाता है…विपक्ष का काम न करने की दलील देने वाले चाटुकारों को हमारा सीधा सवाल है कि पत्रकार का काम ही है विपक्ष में रहना और सत्तापक्ष से सवाल करना लेकिन ये मर्यादा और सीख शायद आप अपने ईमान को बेचकर खा चुके हो और इसीलिए अब सिर्फ इस तरह से हंगामा करके स्टोरी प्लांट करने की जद्दोजहद में लगे हो जो आने वाले वक्त में और भी घातक होने वाली है…ब्यूरो रिपोर्ट

Recommended