पिछले सत्र में 5वीं तक थी, अब 'उर्दू' गायब!

  • 4 years ago
शिक्षा विभाग के पोर्टल शालादर्पण पर जब कोई प्राथमिक स्कूल संबंधित अध्यापक उर्दू किताब के लिए डिमांड भरना चाह रहा है तो वहां उर्दू भाषा की किताबें 'केवल मदरसों के लिए' लिखा बताया जा रहा है। जबकि मदरसों का शालादर्पण से लेना देना ही नहीं, वे तो प्राइवेट स्कूल पोर्टल से जुड़े हैं।
इस बहाने से अब उर्दू भाषा प्राथमिक शिक्षा से गायब की जा रही है। जबकि पिछले शैक्षणिक सत्र साल 2019 के 5वीं बोर्ड तक प्राथमिक स्कूलों में उर्दू भाषा विषय के एग्जाम भी हुए, रिजल्ट भी आए, लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उर्दू प्राथमिक स्तर पर पढ़ाई ही नहीं जाती थी। ज​बकि पिछले साल की जयपुर की ही कुछ स्कूलों की पांचवीं बोर्ड की माक्र्सशीट इस बात को गलत साबित करती है। यह एक माक्र्सशीट राजकीय उच्च प्राथमिक स्कूल राजीव नगर की है। इसमें उर्दू विषय में ग्रेड दिया गया है। यानी इस स्कूल में उर्दू पढ़ाई जाती है, उर्दू में इम्तिहान भी बच्चों ने दिया, तब उन्हें इसमें ग्रेड दिया गया। हालांकि इन माक्र्सशीट में उर्दू के नीचे विकल्प में 'मदरसों के लिए' लिखा गया है, जो कि शिक्षा विभाग की गलती ही है। जबकि माक्र्सशीट राजकीय स्कूल की है।

2019 का आदेश भी देखें
माक्र्सशीट में इस गलती पर भी बवाल मचा था और कार्यालय, निदेशक प्रारंभिक​ शिक्षा एवं पंचायती राज प्रारंभिक शिक्षा विभाग बीकानेर से आदेश जारी किए गए थे। इस आदेश के मुताबिक प्रारंभिक शिक्षा अधिगम स्तर पर मूल्यांकन 2020 के संबंध में निर्देश दिए गए। इसमें लिखा गया कि मदरसों और उर्दू माध्यम के विद्यालयों के लिए सामान्य विद्यालयों के चार प्रश्नपत्रों के अतिरिक्त उर्दू विषय का मूल्यांकन किया जाएगा। इसी के आधार पर मूल्यांकन पत्रक भी तैयार किया जाएगा। यह आदेश 30 दिसंबर 2019 को जारी किया गया था। इसमें आदेश में साफ लिखा है कि प्रारंभिक स्तर के 'उर्दू माध्यम के विद्यालय।' इसके बाद भी शिक्षा विभाग प्रारंभिक स्तर के उर्दू विद्यार्थियों के लिए किताबों की उपलब्धता खत्म कर रहा है।

प्राथमिक स्तर पर यह तृतीय विषय नहीं है...

आम लोगों से लेकर अधिकारी स्तर तक यही भ्रम है कि उर्दू भाषा तृतीय भाषा है। जबकि राजस्थान में शिक्षा विभाग के तय मानकों के तहत उर्दू, सिंधी, पंजाबी और गुजराती भाषाई अल्पसंख्यक मातृभाषा हैं। यह माध्यम या ​अतिरिक्त विषय के तौर पर प्राथमिक स्तर पर पढ़ाई जाती रही हैं। राइट टू एजुकेशन की धारा 29 में बिंदू संख्या एफ में लिखा है कि 'यथा संभव बालक को उसकी मातृभाषा में एजुकेशन दी जाए। वहीं संविधान के अनुच्छेद 350 ए में कहा गया है कि भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा की व्यवस्था राज्य करें। इसके बाद भी राज्य सरकार प्राथमिक स्तर से इस भाषा को खत्म करने पर अमादा है।

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