खतरे में मारवाड़ का डायनासोर

  • 4 years ago

वन्यजीवों की सुरक्षा पर सवाल
प्रदेश में हो रही पैंगोलिन की तस्करी
सभी आठ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर
पहले से ही दुर्लभ वन्यजीवों में शुमार मारवाड़ का डायनासोर खतरे में है। प्रदेश के प्रतापगढ़ में दुर्लभ वन्य जीव पेंगोलिन या चींटीखोर यानी मारवाड़ के डायनासोर के अंग बेचने का प्रयास करते हुए स्थानीय सरपंच सहित दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। जिससे पैंगोलिन सहित अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं। वन विभाग और पुलिस ने संयुक्त कार्रवाई में वन्यजीव संरक्षित सूची में प्रथम श्रेणी के दुर्लभ वन्यजीव पेंगोलिन के अंग बेचते सरपंच समेत दो लोगों को गिरफ्तार किए गए।
सरपंच कर रहा था तस्करी
प्रतापगढ़ में वन विभाग ने कार्रवाई इंटरनेट के माध्यम से खुद ग्राहक बनकर की। जिले में पेंगोलिन का शिकार कर अंग बेचने का यह पहला मामला है। स्पेशल टीम को इंटरनेट के माध्यम से जानकारी मिली थी कि पेंगोलिन के अंग बेचने के लिए ग्राहक ढूंढा जा रहा है। इस पर टीम ने फर्जी ग्राहक बनकर तस्करों तक पहुंच बनाई। इस गिरोह के देवगढ़ थाना इलाके के सीतामगरी बड़ीलांक निवासी मुकेश मीणा से वनकर्मी ने खुद को मध्यप्रदेश निवासी बताकर सम्पर्क किया। पेंगोलिन के अंगों के साथ मुकेश को दबोच लिया। पूछताछ में सामने आया कि कमलाकुड़ी निवासी एवं जोलर सरपंच मांगीलाल मीणा भी इस काम में शामिल है।
चींटीखोर के नाम से भी जाना जाता है
पैंगोलिन के शरीर पर शल्क होने से यह वज्रशल्क नाम से जाना जाता है तथा कीड़े.मकोड़े खाने के कारण चींटीखोर भी कहते हैं। 80 के दशक यह चींटीखोर रेगिस्तानी इलाकों के अलावा देश के लगभग हर भौगोलिक क्षेत्रों में दिखाई देता था।
आपको बता दें कि पैंगोलिन दुर्लभ प्रजाति का जीव होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके अंगों की काफी डिमांड है। खास तौर पर इसके शल्क काफी ऊंचे दामों पर बिकते हैं। प्रतापगढ़ के वन क्षेत्र में यह कभी बड़ी संख्या में पाया जाता था, लेकिन अवैध शिकार के कारण इसकी संख्या भी काफी कम हो गई है। इसके बाद भी शिकारी इसके शल्क के काला बाजार में ऊंचे दाम मिलने के कारण इसका शिकार करते रहते हैं।

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