विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष
  • 4 years ago
जोधपुर. आखिर कोई तो कारण रहा होगा हरे वृक्ष खेजड़ी के लिए अमृता देवी विश्नोई के एक आह्वान पर 363 लोगों ने अपनी अमर शहादत की घटना आज भी विश्नोई समाज ही नहीं बल्कि समूचे विश्व को प्रकृति और पर्यावरण बचाने की प्रेरणा दे रहा है। खेजड़ली गांव में चिपको आन्दोलन की प्रणेता अमृतदेवी बिश्नोई तथा उनकी तीन मासूम पुत्रियों आसु,रतनी, भागु ने पेड़ों की रक्षा के लिए पेड़ों से लिपट कर एक आह्वान किया .... सिर साटे रूंख रहे,तो भी सस्तौ जाण। अर्थात पेड़ बचाने के लिए यदि शीश भी कट जाता है तो यह सौदा सस्ता है। जोधपुर शहर से 28 किलोमीटर दूर खेजड़ली वो धरती है जहां 15वीं सदी में विश्नोई समाज प्रर्वतक गुरु जम्भेश्वर के 29 नियमों की सदाचार प्रेरणा से 363 महिला-पुरुषों ने पर्यावरण संरक्षण को अपना धर्म मानते हुए 290 वर्ष पूर्व सन 1730 में अपने प्राणों का बलिदान किया। मरुभूमि का कल्पवृक्ष कहे जाने वाला खेजड़ी का पेड़ ऐसा है जिसकी पूरा बिश्नोई समाज मातृतुल्या भगवत् स्वरुप की तरह पूजा करता है। कोरोना महामारी सहित सैकड़ों प्राकृतिक आपदाओं के संकट की परिस्थिति में गुरु जम्भेश्वर के वन और वन्यजीवों को संरक्षण देने का संदेश आज भी प्रासंगिक है।
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