बाबा कपिलेश्वर नाथ ।। Baba Kapileshwar nath ।। Rahika ।। Kakraul।।Madhubani।।

  • 4 years ago
बाबा कपिलेश्वर नाथ का मिथिलांचल में अनोखा महत्व है ।लाखों साल पहले यहापर एक ऋषि रहा करते थे। वो ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उस ऋषि का नाम कर्दम ऋषि था। वह ऋषि भगवान शिव की कड़ी तपस्या करते थे और ध्यान किया करते थे लेकिन उसके लिया उन्हें जल नहीं मिल रहा था। तभी वहापर चमत्कार हुआ, वरुण देव प्रकट हुए और उन्होंने ख़ुद एक तालाब निर्माण किया। वो तालाब आज भी वहा मौजूद है।



श्रावण के महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए पुरे मिथिलांचल से लोग यहापर इकट्टा होते है। मंदिर के अगल बगल का इलाका बहुत ही बड़ा है और परिसर के बीचोबीच भगवान शिव का मंदिर है और उसके सामने और बगल में पार्वती मंदिर और हनुमान मंदिर और आदि देवो के मंदिर है।
इस मंदिर के पवित्र गर्भगृह में भगवान शिव का मधु के रंग का लिंग स्थित है। यह लिंग काले पत्थर पर स्थित है और यह दिखने में अष्टकोनी है। सबसे पहले यह मंदिर भी अष्टकोनी हुआ करता था। लेकिन 1934 में आये भकंप से मंदिर को बड़ी क्षति पहुची जिसके कारण मंदिर को अपना अष्टकोनी रूप खोना पड़ा। बाद में फिर दरभंगा महाराजा ने इस मंदिर की मरम्मत करके अच्छा बनाया।

शिव मंदिर के उत्तर पश्चिमी दिशा में बटुक भैरव का भी एक छोटासा मंदिर है। मंदिर के उत्तर पश्चिमी दिशा में करीब 300 फीट की दुरी पर एक तालाब भी है। ऐसा कहा जाता है की जब ऋषि कर्दम ध्यान करते थे तो वो इस तालाब के पानी का इस्तेमाल किया करते थे। तब यह तलब बहुत ही छोटा था और इसे ख़ुद वरुण देव ने बनाया था।

यहापर देवी पार्वती के दो मंदिरे है। पश्चिम दिशा में स्थित इस पार्वती मंदिर का निर्माण भी दरभंगा महाराज ने 1937 में करवाया था। पार्वती देवी का मंदिर भगवान शिव के मंदिर से लगभग 100 फीट की दुरी पर है। देवी पार्वती की मूर्ति की उचाई 2 फीट है।

पवित्र गर्भगृह के पश्चिम दिशा में भगवान विष्णु का एक छोटा सा मंदिर है जिसमे भगवान गणेश, विष्णु, नंदी और ब्रह्मदेव की छोटी छोटी मुर्तिया भी दिखाई देती है। वहा पर एक काला पत्थर भी है जिस पर भगवान विष्णु के चरण की प्रतिमा भी दिखाई देती है।

महाशिवरात्रि के दिन यहापर भगवान शिव की बड़ी धूमधाम से बारात निकाली जाती है। माघ महीने के कृष्ण पक्ष में यानि महाशिवरात्रि के दिन यहापर सभी लोग उपवास रखते है।

श्रावण के महीने में यहापर बड़ा मेला लगता है और सभी श्रद्धालु लोग गंगा के जल से शिवलिंग पर जलाभिषेक भी करते है।

भगवान शिव को सबसे पहले मख्खन के चावल, फल, शक्खर और मीठे चीजों का भोग लगाया जाता है। यहाँपर एक और परंपरा भी है की हिन्दू पूर्णिमा और संक्रांति के अवसर पर हर महीने में दो बार भगवान शिव को 56 प्रकार के भोग लगाने की परंपरा है।

मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव को खिचड़ी भोग लगाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है इस मंदिर के तालाब में नहाने से इन्सान के सारे पाप धुल जाते है और वो पवित्र बन जाता है। जिन लोगों को बच्चे नहीं होते उन्हें यहापर भगवान के दर्शन करने पर संतान की प्राप्ति होती है।
हर हर महादेव

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