ब्रह्ममुहूर्त स्वस्तिवाचन - अज्ञेय By Ranjit Kumar

  • 5 years ago
प्रेम में समर्पण की अद्भूत अभिव्यक्ति है ये कविता। सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन "अज्ञेय" की कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्ति के कई आयाम हैं। समर्पण का भाव उसमें सबसे ज्यादा प्रबल दिखाई देता है। ब्रह्मुहूर्त स्वस्तिवाचन नाम की इस कविता में जब कहते हैं कि तुम्हें सागर तक पहुंचाने का उदार उद्यम ही मेरा हो, फिर वहां जो लहर हो, तारा हो, सोनतरी हो, अरूण सवेरा हो, वह सब वो मेरे वर्य (आप जिसका वरण करते हैं) तुम्हारा हो, तुम्हारा हो, तुम्हारा हो...यह निष्काम प्रेम का शीर्ष है...
हिंदी के चोटी के उपन्यासकार, कहानीकार, कवि और पत्रकार अज्ञेय की कविताओं में अनुभूतियों की सघनता इस कदर होती है कि कई बार वो एक रहस्यबोध से घिरी मालूम पड़ती है। कविता में नए प्रयोगों के जरिए उन्होंने नई कविता की जो बुनियाद रखी उसने हिंदी कविता को काफी समृद्ध किया है।