ज्ञान, कर्म, और कर्ता के तीन प्रकार || आचार्य प्रशांत, सांख्य योग पर (2013)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
१० जून २०१३
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा

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नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।
अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते ।।
(अध्याय १८ श्लोक २३)

मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते।।
(अध्याय १८ श्लोक २६)

रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।
हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः।।




(अध्याय १८ श्लोक २७)

अयुक्तः प्राकृतः स्तब्धः शठो नैष्कृतिकोऽलसः।
विषादी दीर्घसूत्री च कर्ता तामस उच्यते।।




(अध्याय १८ श्लोक २८)
~ भागवत गीता

मन के बहुतक रंग है,
छिन छिन बदले सोय ।
एक रंग मे जो रहे,
एैसा बिरला कोय ॥
~ गुरु कबीर

प्रसंग:
सात्विक ज्ञान क्या होता है?
सात्विक ज्ञान ऐहसास कैसे हों?
प्रकृति में कितने तरह के ज्ञान होते है?
सतयुग क्या है?
तत्वबोध को कैसे समझें?
सात्विक अहंकार क्या है?
कर्म के तीन प्रकार क्या होते हैं?
सात्विक, राजसिक और तामसिक कर्ता के क्या-क्या लक्ष्ण होते हैं?

संगीत: मिलिंद दाते