अनन्य प्रेम का क्या अर्थ है? || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2019)
- 4 years ago
वीडियो जानकारी:
विश्रांति शिविर
7 सितम्बर, 2019
चंडीगढ़, पंजाब
प्रसंग:
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 7, श्लोक 1)
भावार्थ :
हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर
योग में लगे हुए तुम जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त,
सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानोगे, उसको सुनो!
------------------------
अनन्य प्रेम का क्या अर्थ है?
यह साधारण प्रेम से अलग कैसे?
क्या हम अनन्य प्रेम में जी सकते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते
विश्रांति शिविर
7 सितम्बर, 2019
चंडीगढ़, पंजाब
प्रसंग:
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 7, श्लोक 1)
भावार्थ :
हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर
योग में लगे हुए तुम जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त,
सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानोगे, उसको सुनो!
------------------------
अनन्य प्रेम का क्या अर्थ है?
यह साधारण प्रेम से अलग कैसे?
क्या हम अनन्य प्रेम में जी सकते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते