क्यों नहीं करने चाहिए भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन l Should not see Lord Krishna Back
  • 6 years ago
जानिए क्यों नहीं करने चाहिए भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन

सनातन धर्म के वैदिक व पौराणिक शास्त्रों में पूजा-पाठ से संबन्धित अनेक निर्देश दिए हुए हैं । नित्य कर्म के संदर्भ में इशौप्निषद जैसे कुछ शास्त्रों में दैनिक कर्म से लेकर पूजन प्रणाली और देव दर्शन तक निर्देश दिए हुए हैं । शास्त्रों ने कुछ निर्देश देवस्थान जाने को लेकर भी बनाए गए हैं । कुछ निर्देश सामान्य हैं जैसे स्नान करके ही मंदिर जाना, साफसुथरे कपड़े पहन कर ही मंदिर जाना, तथा सदैव शुद्ध होकर ही देवस्थान जाना व पवित्र स्थिति में ही देवदर्शन करना इत्यादि।
शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि श्रीभगवान के दर्शन मात्र से ही जन्म-जानमंतार के पाप धुल जाते हैं । इसी कारण श्रीभगवान के दर्शन पाने हेतु कई प्रकार के अनुष्ठान और जतन किए जाते हैं । भक्तगण तीर्थों, देवालयों, धार्मिक स्थलों व मंदिरों में देवी-देवताओं के दर्शन हेतु जाते हैं । मान्यतानुसार सर्व देवी-देवताओं की मूर्तियों के दर्शन मात्र से पुण्य ही प्राप्त होता है परंतु ऐसा एक अपवाद शास्त्रों में उल्लेखित मिलता है । मान्यतानुसार भगवान श्रीकृष्ण के पीठ के दर्शन करना शास्त्रों में वर्जित माना गया है ।

भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन ना करने का नियम शास्त्रों में दिया गया है । इसलिए जब भी कृष्ण मंदिर जाएं तो यह जरुर ध्यान रखें कि भगवान कृष्ण की मूर्ति के पीठ के दर्शन कभी ना करें । दरअसल शास्त्र सुख सागर में पीठ के दर्शन न करने के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण की लीला जुड़ी हुई है । कृष्णलीला अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी उनसे युद्ध करने आ पहुंचा ।तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे इसी तरह कालयवन कृष्णा की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया कृष्ण एक गुफा में चले गए। जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था। मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निंद से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पढ़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया।

श्रीमद्भागवत में द्वितीय स्कंध के, द्वितीय अध्याय के श्लोक ३२ में शुकदेव जी राजा परीक्षित को भगवान के विराट स्वरूप का वर्णन करते हुए कह रहे है- कि धर्म भगवान का स्तन और अधर्म पीठ है
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